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________________ आचार्य रत्नप्रभसूरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् २१७ ३-उडुवाटिकागच्छ-आर्य भद्रयश से उडुवाटिका गच्छ निकला जिसके तीनकुल और चार शाखाएं। कुलों के नाम :-१ भद्रयशिका २ भद्रगुप्तिका ३ यशोभद्रिक और शाखाओं के नाम :-१ चंपिज्जिया २ मदिज्जिया ३ काकंदिया ४ मेघहलिज्जिया ।। ४-वेसवाटिकागच्छ-आर्य कामर्द्धि से वेसवाटिक नामक गच्छ पैदा हुआ जिसके चार कुल और चार शाखा-कुल १ गणिक २ मेधिक ३ कामाद्धिक ४ इन्द्रपरक तथा शाखाएं:-१ श्रावस्तिका राज्यपालिका ३ अन्तरिज्जिया और ४ क्षेमलिज्जया। ५-मानवगच्छ-आर्य ऋषिगुप्त कार्कदिक से मानवगच्छ निकाला इस गच्छ के तीन कुल और चार शाखा-यथा कुलों केनाम :-१ऋषिगुप्तक २ ऋषिदतिका ३ अभिजयन्त,-शाखाएं:-१काश्यपिका २ गोतमिका ३ वाशिष्टका ४ सौराष्टिका । ६-कोटिकगच्छ-आर्य सुस्थी और सुप्रतिबुद्ध से कोटिक गच्छ निकला इसके भी चार कुल और चार शाखाएं जिसके नाम :-२ बंभलिप्त २ वस्त्रलिप्त ३ वाणिज्य ४ प्रश्नवाहन तथा चार शाखाएं जिसके नाम :-१ उच्चनागरी २ विद्याधरी ३ ३ वनी ४ मध्यमिका। इस प्रकार इन आचार्यों से ही गच्छों की सृष्टि प्रारम्भ होती है आगे चलकर इन गच्छ कुल और शाखाएँ से भी प्रतिशाखाएँ रूप कई भेद हुए है उसको भी यथा स्थान लिखा जायगा । पर इसमें एक बड़ी भारी विशेषता यह थी कि इस प्रकार के गच्छ कूल शाखा प्रतिशाखाएँ निकलने पर भी जैनागमों की श्रद्दा प्ररूपना में किसी प्रकार का मतभेद नही पाया जाता है जैसे एक पिताके अनेक पुत्र होने पर ग्राम एवं व्यापार के नामसे अलग अलग विशेषणों से पहचाने जाते हो और पिता का हुकम सब एकसा एवं एकमत से मानता हो तो पिताको किसी प्रकार का रंज एवं दुःख नही होता है । हाँ समुदायक शक्ति का छिन्न भिन्न हो जाना जरूर उपेक्षणीय कहा जा सकता है इसी प्रकार इन गच्छ कुल शाखाओं को भा समझ लेना चाहिये । और न्यूनाधिक प्ररूपना करने वाले को निन्हव करार देते थे। पूर्वोक्त दोनों प्राचार्यों के स्वर्गवास का समय इस प्रकार पट्टावलियों में प्रतिपादन किया है आर्य महागिरि गृहवास ३० वर्ष, सामान दीक्षा व्रत ४० वर्ष, युग प्रधान पदाधिकार ४० वर्ष, एवं १०० का सर्व आयुष्य पूर्णकर वीरात् २४५ वें वर्ष में आप श्रीमान् स्वर्ग वासी हुए। आर्य सुहस्तिसूरि-गृहवास में ३० वर्ष, सामान दीक्षाव्रत २४ वर्ष, और युगप्रधान पदाधिकार ४६ वर्ष, एवं सर्व आयुष्य १०० वर्ष पूर्णकर वीरात् २९१ वर्ष में स्वर्ग वासी हुए । आर्य महागिरि के पट्टपर आर्य बलिस्सह आचार्य हुए इनके बाद क्रमशः आर्य उमास्वाति तत्वार्थादि ५०० प्रन्थों के निर्माण कर्ता,-आर्य श्यामाचार्य पन्नवणासूत्र की संकलना करने वाले संडिल-समुद्र माँगू-नंदिल-नागहस्ति-रेवति-सिंह-खन्दिल-हेमवान्-नागाजुन-गोविन्द-भूतदिन-लोहित्य दुष्पगणि और देवद्धिगणि ( इस प्रकार के नाम पट्टावलियों में लिखे मिलते है ) और इन की शाखा सदैव के लिए अलग होगई जिसकों हम आगे चलकर लिखेंगे। आर्य सुहस्ति के पट्टपर दो आचार्य हुए १-आर्य सुस्थी २-आर्य सुप्रतिबुद्ध-इनकी परम्परा भी सदैव के लिये अलग हो गई थी। जिसको हम यथा क्रम से लिखते जायेंगे इति भगवान् महावीर के आठवें पट्टधर आर्य महागिरि और आर्य सुहस्तिसूरि : wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwww. Jain Education International For Private & Personal Use Only ३५१ www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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