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वि० पू० २१३ वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
अलग मनुष्यों को मुकर्रर कर दिये राज तंत्र चल ने वाले मंत्री के लिये इस संघ का कितनाक काम था उसने ऐसी सुव्यवस्था करदी कि थोड़ा ही समय में सब साधन तैयार कर लिया।
___लोहाकोटनगर आज एक यात्रा का धाम बन गया हजारों साधु साध्वी और लाखों स्वधर्मी भाई आज मंत्री पृथुसेन के ग्रह भूमि को पवित्र बना रहे हैं सूरिजी ने संघ प्रस्थान का शुभ दिन मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी का निश्चित कर दिया था उस शुभ दिन में मंत्री पृथुसेन के संघपतिपने का तिलक एवं वासक्षेर कर के आचार्य श्री की अध्यक्षत्व में संघ प्रस्थान किया साथ में भगवान का देरासर और हस्त अश्व रथ पालकिये गाडा उठ पोठ नकारा निशान वगैरह जो सामग्री चाहिये वह सब ले ली थी द्रव्य की मंत्री की ओर से खूब उदारता थी और संघ की सुंदर व्यवस्था थी तथा आप स्वयं साधु साध्वियां वगैरह चतुर्विध श्री संघ की सार संभाल रखता था श्रीसंघ प्रस्थान करने के बाद रास्ता में सब तीर्थों की यात्रा सेव पूजा भक्ति ध्वजरोहण जीर्णोद्धार करता हुश्रा तीर्थधिराज श्रीसम्मेतशिखरजी पहुँच गया तीर्थ दर्शन स्पर्शन से सब का चित प्रसन्न था दूसरे दिन सुबह होते ही आचार्यश्री एवं संघपति के साथ चतुर्विध श्रीसंघ पहाड़ पर जाकर बीस तीर्थंकरों के चरण कमलों की स्पर्शना की सेवापूजा करने वाले सेशपूजा की इस प्रकार कई दिन तीर्थ सेवा का खूब लाभ लूटा पूजा प्रभावना स्वामिवात्सल्यादि अनेक शुभ कार्य कर पुन्योपार्जन किया।
___ आचार्य रत्नप्रभसूरि ने विचार किया कि अब मेरी अवस्था वृद्ध हो गई है तो मैं मेरा अधिकार योग्य शिष्य को देकर इस पवित्र भूमि में निवृति के साथ आत्म कल्यान करूं यह केवल विचार ही नहीं था पर सूरिजी ने श्रीसंघ को बुला कर अपने विचारों को सुना दिया परन्तु श्रीसंघ यह कब चाहता था कि संघ के साथ पधारे हुए सूरिजी महाराज यहां ही ठहर जाय ।
संघपति पृथुसेनादि श्रीसंघ ने कहा कि पूज्यवर ! आपके विचार के सहमत हम कैसे हो सकते हैं कृपा कर जैसे श्रीमान संघ लेकर पधारे हैं वैसे ही संघ को वाविस यथा स्थान पहुँचादे ।
सूरिजी--- आपका कहना भले ठीक हो पर आप जानते हो कि अब मेरी अवस्था वृद्ध हो गई है फिर का इस तीर्थ पर आने का मौका बनता है और यह बीस तीर्थङ्करों की निर्वाण भूमि निर्वृति का स्थान है अतः मेरा दिल चाहता है कि अब मैं गच्छ सम्बन्धी कार्यों से निवृति पाकर विशेष आत्म अल्याण सम्पादन करूँ । दुसरे वहाँ चलकर भी आप लोगों को धर्मोपदेश सुनाना है यदि मेरी आयुष्य अधिक होगा तो इस कार्य की यहाँ भी आवश्यकता कम नहीं है । श्राप रास्ता में देखते आये हो कि बौद्ध धर्म के भिक्षु उपदेश देकर अपने धर्म का किस प्रकार प्रचार कर रहे हैं यदि इस प्रान्त में योग्य साधुओं का विहार न हुआ तो जैन धर्म को बड़ी भारी हानि पहुँचने की संभावना है इत्यादि :--
___ संघपति आदि श्रीसंघ ने कहा पूज्यवर । आपका फरमाना तो सत्य है इसके सामने तो हम क्या कह सकते हैं अतः हम लोग तो आपकी आज्ञा का पालन करना ही अपना कर्त्तव्य समझते हैं।
सूरिजी-संघपतिजी आप बड़े ही भाग्यशाली हैं आपने तीर्थ यात्रा का संघ निकाल कर लाभ हाँसिल किया सो तो किया ही है पर मैं इस समय आपके सुपुत्र मुनि धर्मसैन को मेरा अधिकार देकर आचार्य पद देने का निश्चय कर लिया है यह भी आपके लिये बड़े ही गौरव की बात है कि आपके कुल में एक ऐसा रत्न उत्पन्न हुआ है
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