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________________ आचार्य रत्नप्रभसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् १८७ ख्यान में तीर्थङ्करों के निर्वाण भूमिका वर्णन हो रहा था अतः आपश्री ने फरमाया कि अष्टापद और गिरनार के अलावे बीस तीर्थङ्करों की निर्वाण भूमि पूर्व देश ही है जिसमें भी चम्पापुरी पावापुरी के अलावे बीस तीर्थङ्करों की निर्वाण मूमि सम्मेतशिखर है जिस भूमिपर तीर्थंकरों की मोक्ष हुई है वहाँ की भूमि महान् पवित्र समझी जाति है जिस तीर्थकर गणधर मुनिराजों ने अपने अन्तिम शुभ अध्यवसायों के परमाणु वहां छोड़े थे वहां जाने वालों के अध्यवसायों को स्वच्छ बना देते है यही कारण है कि मोक्षमार्ग की साधनामें तीर्थयात्रा भी एक बतलाई है पूर्व जमाने में बड़े राजा महाराजा आलीशान संघ लेकर तीर्थयात्रा निमित दोदो चार चार मास घूम घूम कर यात्रा करते थे और जिस दिन यात्रार्थ संघ प्रस्थान करते थे उस दिन से घरके झगड़ों से निर्वृति, रास्ता में कम से कम एकासनाका तप, ब्रह्मचार्यव्रत का पालन, गुरुदेवों की सेवा, स्वाधर्मी भाइयों का समागम, नये नये तीर्थों की यात्रा, एवं पूर्व संचित पापों को धो डालना, इत्यादि बहुत लाभ हैं इतना ही क्यों पर तीथों के संघ निकालने वाले महानुभाव संघपति पद को प्राप्त कर पूजनीक बन जाता है इत्यादि। सूरिजी के उपदेश का प्रभाव उपस्थित जनता पर इस कदर हुआ कि उनकी अन्तरात्मा तीर्थ यात्रा करने के लिये उत्सुक बन गया उसी समय उसी सभामें बैठा हुआ वहां के राजा सहसकरण का प्रधान मंत्री पृथुसेन खडा होकर प्रार्थना की कि पूज्याचार्य देव के उपदेश ने हम लोगों पर खूब ही प्रभाव डाला है अतः मेरी भावना है कि मैं सम्मेतशिखरजी आदि तीर्थों के लिये संघ निकालू अतः श्रीसंघ मुझे आज्ञा दिरावे । सब लोग सूरिजी महाराज की ओर टकटकी लगा कर देख रहे थे सूरिजी महाराज ने फरमाया कि जब एक भाग्यशाली इस प्रकार की प्रार्थना कर रहा है तो श्रीसंघ का कर्तव्य है कि उन की भावना को सफल बनाने की आज्ञा देकर उनके उत्साह को बढ़ावे । संघ अप्रेश्वरों ने कहाँ पूज्य महाराज संघ के नायक तो आपही हैं हमतो सब आपश्री की आज्ञा को पालन करने वाले हैं फिर भी इतनी अर्ज तो हम आपश्री से भी करलेते हैं कि मंत्रेश्वरजी को तो श्री संघ श्राज्ञा दे देगा पर आप श्रीमानों को अपने शिष्य मंडल के साथ संघ में पधारना अवश्य पड़ेगा? तब ही हम मन्त्रेश्वर को पूर्णतय आज्ञा देंगे ? सूरिजी ने लाभालाभ का कारण जान अपनी ओर से स्वीकृति देदी बस भगवान महावीरदेव की जयध्वनि के साथ श्रीसंघ ने मन्त्रेश्वर को श्राज्ञा प्रदान करदी जिसको मन्त्रेश्वर ने बड़े ही हर्ष के साथ शिरोधार्य कर अपना अहोभग्य समझा। मन्त्रेश्वर बड़ा ही भाग्यशाली था उनकी उदारता की बराबरी कुबेर भी नहीं कर सकता था फिर संघपति बनने का सौभाग्य मिल गाया अतः श्राप का उत्साह और भी बढ़गया । राजा सहसकरण ने भी मन्त्री को कहा कि मन्त्री तुं वास्तव में पुन्यशाली है और यह महान लाभ तेरे ही तकदीर में लिखा हुआ था संघ निकालने वाले मेरे नगर में बहुत है पर उस समय किसी से न कहा गया खैर अब संघ के लिये जो कुछ भी सामग्री चाहिये वह बिना पुछे ही ले जाया करो, मैं आजसे ही इजाजत देता हूँ मन्त्री ने राजा का हुक्म को शिरोधार्य कर लिया। ___ मंत्री ने नजदीक एवं दूर दूर विहार करने वाले सब साधु साध्वियों को आमन्त्रण के लिये अपने खास आदमियों को भेज दिये और आमन्त्रण पत्रिकाएं भी सब ग्राम नगर एवं प्रान्तों में भिजवादी । घर आप सकुटुम्ब संघ सामग्री एकत्र करने में लग गये। और सब कामों को कई विभाग में विभक्त करके अलग ३४१ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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