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________________ वि० पू० २१७] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास उत्साह फैल गया बड़े समारोह से सूरिजी का नगर प्रवेश करवाया था भगवान महावीर की यात्रा कर सूरिजी ने अपनी ओजस्वी वाणी द्वारा धर्म देशना दी जिसका जनता पर खूब ही प्रभाव हुआ विशेषतयः वहाँ के राजा सारंगदेव ने अपनी वृद्धावस्था में सूरिजी महाराज के समागम मिल जाने से बहुत हर्ष मनाया और अपने आत्मकल्याण के लिये तत्पर हो गया। एक समय राजा सारंगदेव सूरिजी के पास आया और अपने कल्याण के लिये पूछा ? इस पर सूरिजी महाराज ने फरमाया कि नरेश ! यदि आप अपना कल्याण चाहते हो तो सबसे पहले इस राज सम्बन्धी सब झगड़ों को छोड़कर निवृति पथ के पन्थिक बन जाइये यह सबसे उत्तम रास्ता है। क्योंकि इस गज से किसी को तृप्ती न तो आई है और न आने की है । जब तक आप राज खटपट में रहेंगे वहाँ तक निवृत्ति का समय मिलना मुश्किल है और निर्वृति बिना कल्याण नहीं है । मैं खुद भी अब इसी मार्ग का अनुकरण करना चाहता हूँ और मेरा अधिकार मैं मुनि रत्न को देने का निश्चय भी कर लिया है । सूरिजी के बचन सुनकर महाराजा सारंगदेव समझ गया कि जब यह त्यागी महात्मा धर्म कार्य एवं गच्छ को निर्वाहने को प्रवृति समझ कर इनसे अलग होना चाहते हैं तो मैं इस राजरूपी अनेक कर्म बन्ध के कारणों में कर्दम में हस्ती की भाँति खूचा हुआ हूँ अतः इस राज खटपट में रहकर कल्याण की आशा ही क्यों रक्खू । फिर भी आखिर यह राजऋद्धि मेरे साथ चलने वाली नहीं है तो सूरिजी के साथ मैं भी अपना राज अधिकार योग्य पुत्र को देकर यदि वृद्धावस्था के कारण दीक्षा न ले सकें तो भी कम से कम एकान्त में रहकर आत्म कल्याण करने में तो लग जाऊं । इत्यादि राजा सारंगदेव ने सूरिजी से प्रार्थना की कि प्रभो ! आपका कहना सोलह आना सत्य है और आपकी कृपा से मैंने यह निश्चय भी कर लिया है कि आप जिस शुभ दिन अपना अधिकार मुनिरत्न को दें उसी शुभ दिन में मैं मेर। बड़ा पुत्र धर्मदेव को मेरा उत्तराधिकारी बना दूंगा और आवश्री के चरण कमलों में रह कर अपना कल्याण करुंगा । ___इस पर सूरिजी ने कहाँ राजेश्वर ? मुमुक्षुओं का यही कर्त्तव्य है जो आप ने निश्चय किया है पर अब इस शुभ कार्य में बिलम्ब करना अच्छा नहीं है क्योंकि शुभ कार्यों में कोई विघ्न उपस्थितहो जातेहैं । राजा सारंगदेव ने कहा पूज्ववर मेरी ओर से किसी प्रकार का विलम्ब नही है आप जिस शुभ दिन को निश्चय करें मैं सूरि पद का महोत्सव का लाभ के साथ मेरे पुत्र को राज देकर निवृति पाने को तैयार हूँ। सूरिजी ने बसन्त पंचमि" जो भगवान् महावीर के मन्दिर की प्रतिष्ठा का शुभ दिन था वह दिन निर्धारित कर दिया जिसको राजा सारंगदेव ने खूब हर्ष के साथ वधा लिया। बस ! उपकेशपुर नगर में इस बात की खबर मिलते ही जनता का उत्साह कई गुना बढ़ गया और वे लोग अपने घरों के काम छोड़कर इस पवित्र कार्य के महोत्सव में लगगये इस एक कार्य के साथ तीन कार्य शामिल थे । जैसे सूरिपद का महोत्सव, महावीर मन्दिर में अष्टान्दिका महोत्सव और राजरोहण महोत्सव बस फिर तो कहना ही क्या था सब लोग इन शुभ कार्य का यथा साध्य लाभ लेने को कटिबद्ध हो गये। सूरिजी महाराज का व्याख्यान हमेशा त्याग वैराग्य और निर्वृति पर होता था जिसका प्रभाव जनता पर इस कदर का हुआ कि कोई ६४ नरनारियाँ सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेने को भी तैयार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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