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वि० पू० २४७]
। भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
पाखण्डियों का पराजय करने के लिए उन महात्मा ओं के शरीर में जैनधर्म की पवित्रता की बड़ी भारी ताकत थी अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, निस्पृहीता, परोपकार परायणता, और स्याद्वादरूपी अनेक शस्त्रों से सजधजके वे सदैव तैयार रहते थे और उन्हीं शस्त्रों द्वारा आप श्रीमानोंने पास्खण्डियों का पराजय कर उनके मिथ्यात्व अज्ञान यज्ञ की घोर हिंसा और दुशीलरूपी किल्ले को समूल नष्ट कर विश्व में जैन धर्म का खूब झण्डा फहरा दिया अगर उन आचार्यों की सन्तान ने अपने पूर्वजों का अनुकरण कर प्रत्येक प्रान्त में विहार किया होता तो आज कितनीक प्रान्तों जैनधर्म विहीन न बन जाते तथापि आज उन प्रान्तों में पूर्व जमाने की जाहोजलाली के स्मृति चिन्दरूप जैन तीर्थ मन्दिर और थोड़े बहुत प्रमाण में जैन धर्मोपासक अस्तित्व. रूप में दिखाई दे रहे हैं वह उन पूर्वाचार्यों की अनुग्रह-कृपा का सुन्दर फल है।।
हमारे पूर्वाचार्यों की यह भी एक सुन्दर पद्धति थी कि वे देश विदेश में विहार करते थे पर किसी प्रान्त को साधुविहीन नहीं रखते थे अर्थात् प्रत्येक प्रान्त में योग्य पद्वी भूषित विद्वान मुनिवरों की अध्यक्षता में हजारों मुनियों को विहार की आज्ञा फरमा दिया करते थे कि जैन जनता सदैव के लिए उन्नति क्षेत्र में अपने पैर आगे बढ़ाती रहे । बात भी ठीक है कि जहां जैन मुनियों का सदैव विहार होता रहे वहां मिथ्यात्व अज्ञान और दुराचार को अवकाश ही नहीं मिलता है विद्वानों की अपेक्षा मध्यम कोटी के लोग सदैव अधिक होते हैं और उनका जीवन उपदेश पर निर्भर है जैसा-जैसा उपदेश मिलता रहे वैसा वैसा संस्कार पड़ जाता है अतएव प्रत्येक प्रान्त में मुनि विहार की आवश्यकता उस समय में भी स्वीकारी जाती थी।
अपने पूर्वजों की पद्धत्यानुसार आचार्य श्रीसिद्धसूरिजी महाराज ने पंचाल देश में विहार करनेवाले मुनियों के लिए अच्छी व्यवस्था कर आपश्री ५०० मुनियों के साथ विहार कर हस्तिनापुर मथुरा, शोरीपुर वगैरह तीर्थों की यात्रा के पश्चात आप श्रीमानों ने अपने चरण कमलों से मरूभूमि को पवित्र बनाई और शासनाधीश मगवान् महावीर की यात्रा के लिए उपकेशपुर की तरफ विहार किया। मरूस्थल में यह शुभ समाचार पहुँचते ही मानों वसन्त के आगमन से वनराजी नवपल्लव बन जाती है इसी भान्ति मरूस्थल की जैन जनता में बड़े ही हर्षोत्साह की लहरें उठ रही थी, सूरिजीमहाराज क्रमशः विहार करते हुए उपकेशपुर पधारे श्रीसंघ ने आपश्री का बड़ा भारी स्वागत किया देवगुरु की यात्रा कर धर्म पिपासु लोगों को धर्मदेशना दी जिसका प्रभाव जैन जैनेत्तर जनता पर बहुत ही अच्छा पड़ा उधर उपकेशगच्छ कोरंटगच्छ के साधु साध्वियों के झुण्ड के मुण्ड आपश्री के दर्शनार्थ आ रहे थे श्राद्धवर्ग की तो संख्या ही नहीं गिनी जाती थी मानों उपकेशपुर एक यात्रा का पवित्र स्थान ही बन गया था।
आप श्रीमानों के विराजने से उपकेशपुर और आसपास में अनेक सद्कार्यों द्वारा जैनधर्म का प्रचार, शासनौन्नति, और जैन जनता में धर्म जागृति के साथ कई गुणा उत्साह बढ़ गया श्री संघ के अत्याग्रह से आपश्री का चातुर्मास उपकेशपुर में हुआ तब आसपास के ग्राम नगरों की विनत्ती से अन्योअन्य साधुओं को वहां चतुर्मासा करवा दिया। नए जैन बनाना वहां जैन मंदिरों और विद्यालयों की स्थापना करवाना तो आपश्री के पूर्वजों से ही एक प्रचलित कार्य था और आपश्री ने भी उनका ही अनुकरण किया और आपश्री ने इस पवित्र कार्य में अच्छी सफलता भी प्राप्त की थी इनके सिवाय आपश्री का मधुर और रोचक उपदेश पान करते हुए बहुत से नर नारियों ने संसार का त्याग कर आपके चरण कमलों में दीक्षा भी धारण की थी।
चातुर्मास के पश्चात् आचार्य श्री ने मरूभूमि के चारों ओर खूब परिभ्रमण किया और पाहलीका
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