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वि० पू० २८८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
कवि होना भी बतलाता था प्रतिदिन राज सभा में १०८ नये काव्य बना कर राजा को सुनाया करता था जिससे खुश हो कर राजा उसको पुष्कल द्रव्य भी देता था और सबलोग उसकी प्रशंसा भी किया करते थे पर शकडाल उसको मिथ्यात्वी समझ कर उसकी प्रशंसा नहीं करता था । मंत्री शकडाल को यह भी ज्ञात हो गया कि वररुची की कविता मौलीक नहीं है पर यह कविताएं किसी अन्य विद्वानों की बनाई हुई है । वररुची तो केवल उनका छायावाद एवं अनुकरण करके राजा की अनभिज्ञता का लाभ उठाता है पर मैं राजा का नमक खाता हूँ तो मेरा कर्तव्य है कि मैं राजा को इस बात से जानकार कर दूं । एक समय शकडाल ने राजा नन्द से कहा कि वररुची की कविताएँ नयी एवं मौलीक नहीं पर विद्वानों का अनुकरण है विश्वास के लिये मंत्री ने अपनी पुत्रियों को राजा के पास बुलवा कर वे ही कविताएँ राजा को विश्वास हो गया कि मन्त्री का कहना सत्य है इस कारण राजा ने कर दिया । इस पर वररुची समझ तो गया कि यह सब कारस्तानी मन्त्री शकडाल फुसलाने के लिये वररुची ने एक नयी युक्ति निकाली कि वह गंगा के अन्दर गुप्त सुवर्ण मुद्रिका दाट दिया करता था और बाद जनता के सामने गंगा को अपनी कविता सुना कर द्रश्य की याचना कर पानी में जाकर वे दाटी हुए मुद्रिकाएँ ले आता और लोगों को कहता कि यदि राजा ने मुझे द्रव्य देना बन्ध कर दिया तो क्या हुष्प्रा मुझे तो गङ्गा माता देती है । कडाल इस बात का भी पता लगा लिया जब वररुची मुद्रिकाए गंगा में दाट आया तो शकडाल ने किसी चतुर मनुष्य द्वारा वे मुद्रिका वररुची के ये पहला ही मंगवा ली बाद वररुची आकर गंगा को कविता सुना दी एवं प्रार्थना कर पानी में गया पर मुद्रिका नहीं मिली अतः जनता को वररूची पर अविश्वास होने लगा । इस हालत में वररुची का मंत्री पर अधिक द्वेष बढ़ गया और वह ऐसे अवसर की ताक में फिरता था कि मंत्री शकडाल से मैं मेरा बदला लुं । पर शकडाल के लिये ऐसा कोई मौका ही नहीं मिला ।
रीति से जाकर ५००
मंत्री शकडाल के पुत्र श्रीयक के विवाह के दिन नजदीक आ रहे थे तो मंत्री ने विचार किया कि इस अवसर पर दरबार को अपने मकान पर बुलाकर राजाओं के योग्य शस्त्र एवं अस्त्र की भेट की जाय तो यह अच्छा मौका है अतः मंत्री ने बहुत बढ़िया २ शस्त्र अस्त्र तैयार करवाये । इस बात का पता वररुची को लगा तो उसने अपना बदला लेने का अच्छा मौका समझ लिया उसने सोचा कि यदि मैं दरबार के पास जाकर कहूँगा तो दरबार मेरी बात को नहीं मानेगा क्योंकि मुझे मंत्री का द्वेषी समझ लेगा अतः उसने पाठशाला के विद्यार्थियों को + एकत्र कर उन्हें खूब मिष्टानादि पदार्थ खीला कर कहा कि विद्यार्थियों तुम जानते हो कि मंत्री शकडाल तुमारे नगर के राजा नंद को मार कर अपने पुत्र श्रीयक जो उसको तुम अच्छी तरह से जानते हो' को राजा बनाना चाहते हैं यदि तुम अपने राजा के हितैषी एवं शुभचिंतक हो तो इस बात को सम्पूर्ण नगर के कौने कौन में शीघ्र ही फैला दो कि राजा का प्राण बच जाय जिससे तुमको इनाम भी मिलेगा ? पर मेरा नाम नहीं लेना नहीं तो मंत्री मुझे भी मार डालेगा ?
राजा को सुना दी अतः वररुची को द्रव्य देना बन्द
की है पर राजा को
+ समासाद्य बलज्ञस्तक्षलंवररुचिस्ततः । चणकादि प्रदायेति डिम्भरुपाण्य पाठयत् ॥ ४९ ॥ न वेतिराजा यदसौ शकटालः करिष्यति । व्यापाद्यनन्दं तद्राज्ये श्रीयकंस्थापयिष्यति ॥ ५० ॥ स्थानेस्थाने पठन्तिस्स डिम्भा एवं दिने दिने । जनश्रु त्यातदश्रौषीदिति चाचिन्तयन्नृपः ॥ ५१ ॥
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