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वि० पू० २८८ वर्षे ]
। भगवान् पाश्र्वनाथ को परम्परा का इतिहास
समय इस क्षेत्र को पावन करते रहे हैं कि उन महा पुरुषों का लगाया हुआ वृक्ष आज फलाफूला है। भविष्य के लिये भी आशा की जाती है कि आप श्री तथा आपके शिष्यगण इस क्षेत्र को ध्यान में रखते रहेंगे जैसे कि आज आपश्री की शुभ दृष्टि हुई है इत्यादि समय हो जाने से भगवान महावीर और आचार्य रत्नप्रभसूरि की जयध्वनि के साथ सभा विसर्जन हुई ।
प्राचार्य देवगुप्त सूरि का व्याख्यान हमेशा त्याग वैराग्य एवं तात्विक विषय पर होता था और श्रोताजन वीर वाणि रूपी सुधारस का पान कर अपनी आत्मा को पावन बनाने में सलग्न थे कारण उपकेशपुर के श्रद्धा सम्पन्न लोग ऐसा सुअवसर हाथों से कब जाने देने वाले थे सूरिजी के विराजने से उपकेशपुर और आस पास के प्रदेश में धर्म की खूब प्रभावना एवं जागृति हुई कई नर नारियों ने संसार त्याग कर सूरीजी के पास दीक्षा ग्रहण की कई मन्दिरों की प्रतिष्ठाएँ भी करवाई इत्यादि ।
जब सूरिजी महाराज विहार का विचार किया तो राजा सारंगदेव आदि श्रीसंघ ने सूरिजी से चतुर्मास की साग्रह विनती करते हुए प्रार्थना की कि भगवान् । आपश्री के विराजने से यहाँ बहुत लाभ होगा। इस पर सूरीजी महाराज ने लाभालाभ का कारण जान कर श्रीसंव की प्रार्थना को स्वीकार करली बाद सूरिजी उपकेशपुर के आस पास के गाँवों में बिहार कर वहां की जनता को धर्मोपदेश सुनाया तथा अन्यान्य प्रामों में थोड़े थोड़े साधुओं को चतुर्मास करने की आज्ञा दे दी और आप यथा समय उपकेशपुर पधार कर वहां चतुर्मास कर दिया ।
उपकेशपुर में आज घर घर खुशियां मनाई जा रही हैं क्यों नहीं सूरिजी महाराज का चतुर्मास हो गया। सूरिजी का व्याख्यान जैनागमों का तात्विक दार्शनिक एवं त्याग वैराग्य पर इस प्रकार होता था कि श्रवण करने वालों को बड़ा ही श्रानन्द आता था इतना ही क्यों पर कई लोगों को तो इतना वैराग्य हो आया कि ये संसार के बन्धनों को छोड़ सूरिजी के चरण कमलों में दीक्षा लेकर अपना कल्याण करने को भी तैयार हो गये । हाँ जिनके शेष थोड़े ही कर्म रहे हो उनके लिये ऐसा होना स्वभाविक ही है। राजा सारंगदेव ने जिनमन्दिरों में आष्टान्हिका महोत्सव करवाये चतुर्मास के चारो मास में अमरी पहड़ा वजवादिया कि कोई भी व्यक्ति जीव हिंसा शिकारादि नहीं कर सके तथा नागरिक लोगों ने भी अनेक प्रकार से सूरिजी के उपदेश से धर्म कार्य साधन कर अपना कल्याण किया बहुत से जैनेत्तर लोगों ने सूरिजी का सत्योपदेश श्रवण कर मिथ्या मत का त्याग कर जैनधर्म को स्वीकार किया इत्यादि जैनधर्म की खूब उन्नति हुई । जब चतुर्मास समाप्त हो गया तो कई ५० नरनारियों ने सूरिजी के पास भगवती जैन दीक्षा स्वीकार की जिसका महोत्सव राजा सारंगदेवादि श्री संघ ने बड़े ही ठाठ से किया : जनता यह नहीं चाहती थी कि सूरिजी महाराज हमसे पृथक् हो यहां से विहार करे पर साधु धर्म के नियमों के अनुसार सूरिजी महाराज उपकेशपुर से बिहार कर मारवाड़ के प्रत्येक प्रामों में बिहार करते हुए माडव्यपुर बागपुर. मेदनीपुर, रत्नपुर, हर्षपुर, पालिकापुर होते हुए कोरण्टपुर के नजदीक पधारे यों तो आप जहां पधारे वहां श्री संघ ने आपका समारोह से स्वागत किया ही था पर जब इस बात की खबर कोरंटपुर और आसपास के ग्रामों में हुई तो जनता सूरिजी के दर्शनार्थ बहुत दूर दूर तक सामने गई और राजा प्रजा की ओर से आपका आलीशान स्वागत हुआ कोरंटस्थित भगवान महावीर के दर्शन किये और श्रीसंघ को धर्मोपदेश दिया।
पाठक पहले पृष्ठों में पढ़ आये हैं कि प्राचार्य रत्नप्रसूरि के लघु गुरु भ्राता कनकप्रभसूरि से
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