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[२२] ५ सं० १९७४ नरवाद मागहमदाबादे की यात्रा की । ६ सं० १९७५ श्री जपडियातीर्थ की यात्रा की। ७ सं० १९७५ स्तम्भनतीर्थ की यात्रा की। ८ सं० १९७५ तीर्थाधिराज श्री शत्रुरूजयादि की यात्रा की। ९ सं० १९७६ तीर्थ श्री कुबारियाजी की विकट यात्रा की । १० सं० १९७६ श्राबुदाचल देलवाड़ा अचलगढ़ की यात्रा की। ११ सं० १९७६ सिरोही आदि तीर्थों की यात्रा बड़े ही श्रानन्द से की। १२ सं० १९७६ कोरंटा तथा श्रोसियों तीर्थ की यात्रा की। १३ सं० १९७८ श्री जैसलमेर लोद्रवानी की संघ के साथ यात्रा की। १४ सं० १९८१ श्री फलोदी पाश्वनाथ की यात्रा की। १५ सं० १९८३ श्री कापरखाजी तीर्थ की यात्रा की । १६ सं० १९८९ श्री जैसलमेर लोद्रवानी की तीसरी वार श्री पांचूलालजी वैदमहता के निकाले हुए विराट् संघ के साथ यात्रा की और भी मुंडावा सोमेश्वर वगैरह तीर्थों की यात्रायें की।
स्थानकवासियों से पाये हुये साधुओं के दीक्षा १ सं० १९७३ स्थानकवासी साधु रूपचन्दजी को फलोदी में दीक्षा दे रूपसुन्दर नाम रखा । २ सं० १९७३ स्था० साधु धूलचन्द को फलोदी में दीक्षा दे धर्मसुन्दर नाम रखा। ३ सं० १९८२ स्था० साधु मोतीलाल की फलोदी तीर्थ पर मुहपत्ती का डोरा तुड़ाया। ४ सं० १९८३ स्था० गंभीरमलजी को बोलाड़ा में दीक्षा दे गुणसुन्दर नाम रखा। ५ सं० १९८५ स्था० जीवणमल को बीसलपुर में दीक्षा दे जिनसुन्दर नाम रखा। ६ सं० १९८८ तेरहपन्थी मोतीलाल को दीक्षा दे क्षमासुन्दर नाम रखा। ७.८-९ इनके अलावा खंचन्द, जोधपुर और नागौर इन तीनों स्थानों में तोन गृहस्थ महिलाओं को दीक्षा
दी तथा अनेक गृहस्थों को मिथ्या श्रद्धा से मुक्त कर मूर्तिपूजक श्रद्धा सम्पन्न श्रावक बनाये और विशेष में आपने २८ वर्ष तक भ्रमण कर अनेक चल चित वालों को धर्म में स्थिर किये यद्यपि योग्य साधुओं के अभाव आपका दूर २ प्रान्तों में विहार नहीं हो सका तथापि आपके कर कमलों से लिखी हुई पुस्तक का प्रचार प्रायः भारत के कोने कोने में होने से धर्म की जागृति हुई इतना ही क्यों पर जहां २ धार्मिक विषय का शास्त्रार्थ हुआ वहां वहां आपने जैनधर्म को विजय विजयंति
फहरा दी थी उदाहरण के तौर पर देखिये। १-देवगढ़ में तेरहपंथियों के साथ
६-फलोदी में स्था० साधुओं के साथ २-काल में दिगम्बरों के साथ
७-लोहावट में स्था० साधु हीरालालजी के साथ ३-काल में तेरहपन्थियों के साथ
८-जोधपुर में स्था० फूलचन्दजी के साथ ४-गंगापुर में , ,
९-बीलाड़ा में स्था० सिरेमलजी के साथ ५-ओसियों में स्था० श्रावकों के साथ १०-सादड़ी में स्था० बख्तावरमलजी के साथ
अन्त में हम शासनदेव से प्रार्थना करते हैं कि आप चिरकाल तक गजहस्ती की भांति विहार कर हमारे जैसे भूले भटके जीवों को सत्य पंथ के पथिक बनावे । श्राप श्री के चरणोपासक
केसरीचन्द चोरडिया
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