SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्य ककसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ११२ (४) सिंहली इतिहास के अनुसार सम्राट अशोक का राज्याभिषेक बुद्ध निर्वाण के २१८ वे वर्ष बाद हुआ और सिंहली लोगों की गणना बुद्ध निर्वाण (बोधप्राप्त) ई० पू० ५४३ है इस तरह ५४३ --२१८ = ई० पू० ३२५ में अशोक का राज्याभिषेक मानना पड़ेगा जिससे २४ चन्द्रगुप्त के २५ विन्दुसार के एवं ४९ वर्षों को निकाल दिया जाता है तो ३७४ आता जो वी० नि० सं० १५३ वर्ष कहा जाता है। (५) सुदर्शन विभाश जो चीनी प्रन्थ है, उसमें लिखा है कि अशोक बुद्ध सं० २१८ में राजा हुआ था। चीनी लोग भी सिंहाली गणना के अनुसार ही अपनी संवत् गणना करते हैं। अतः उसका काल ई० पू० ३२५ ही माना जायगा । पूर्ववत् वी० नि० स० १५३ वर्ष आता है। (६) डा० फ्लीट भी अशोक का राज्याभिषेक बुद्ध संवत् २१८ में उपरोक्त प्रगाणों से मानते हैं पूर्ववत् वी०नि० स०१५३ वर्ष आता है। (७) जनरल सर कनिंगहम अपनी पुस्तक ( काँप्से इन्स्क्रोशन्स इन्डीकरम ) की प्रस्तावना पृ० ९ में लिखते हैं कि अशोक का राज्य काल बुद्ध सं० २१५ से २५६ तक ४१ वर्ष तक रहा है । (५४४२१५= ई० पू० ३२९ से ई० पू० २८८ तक ) पूर्ववत् वी० नि० सं० १४९ आता है। (८) ब्राह्मणों के पुराणों में भी नंदों का राजा १०० वर्ष का हो लिखा है अतः पर्व प्रमाणों से नंदों का गज्य ९५ - १०० तक रहा है । ऐसा सिद्ध होता है इनके अलावा एक और भी प्रमाण मिलता है जो कि उपरोक्त मान्यता को परिपुष्ट करता है। अन्तिम नन्द राजा के मन्त्री शकडाल था । जैसे कहा है कि:ततस्त्रिखण्डपृथिवीपतिः पतिरि व श्रियः। समुत्खातद्विषत्कन्दो नन्दोऽभून्नवमो नृपः ।। विशङ्कटः श्रियाँ वासोऽसङ्कटःशकटोधियाम् । शकटाल इति तस्य मन्त्र्यभूत्कल्पकान्वयः ।। इसमें लिखा है कि नौवा नन्द राजा का मन्त्री शकडाल था । उस शकडाल के दो पुत्र थे । स्थुलभद्र और श्रीयक। शकडाल के रहस्य मय हाल कहने से श्रीयक ने शकडाल को मार डाला। नन्द राजाने स्थुलभद्र को मन्त्री पद देने का निश्चय किया पर स्थुलभद्र इस प्रकार मन्त्री पद ग्रहण कर राज के अनेक झगड़ों में पड़ने की अपेक्षा दीक्षा लेकर आत्म कल्याण करना अच्छा समझा । अतः स्थूलभद्र ने आचार्य संभूतिविजय के पास दीक्षा स्वीकार करली थी। प्राचार्य संभूतिविजय का स्वर्गवास वी० स० १५६ वर्ष में हुआ है । अतः स्थूलभद्र की दीक्षा का समय १५६ वर्ष पूर्व का ही था। और जिस समय स्थलिभद्र की दीक्षा हुई उस समय मगद के सिंहासन पर अन्तिम नंद का राज था अतः आचार्य हेमचन्द्रसूरि का लिखना ठीक साबित होता है । कि वि० १५५ वें वर्ष नंदों का राज समाप्त और मौर्य का राज्य प्रारम्भ हुआ। और यह बात ऊपर के प्रमाणों से सत्य भी कही जा सकती है । एक दूसरा प्रमाण यह भी है कि हम चन्द्रगुप्त का राजरोहण समय २१० का मान लेते हैं । तो हमारे सामने एक बड़ी भारी आफत यह खड़ी हो जाती है कि आर्य सुहस्तीसूरि का युगप्रधान पद वीर निर्वाण से २४५ वर्ष से प्रारम्भ होता है । और ४६ वर्ष युगप्रधान पद पर रह कर वीर नि० सं० २९१ वें * स्थूलभद्रोऽपि गत्वा श्रीसम्भूतिविजयान्ति के । दीक्षाँ सामाषिकोच्चारपूर्विकाँ प्रत्यपाद्यता । ३०९ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy