________________
वि० पू० २८८ व]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
वर्ष में वे स्वर्गवासी हूये थे। आगे हम सम्प्रति का समय को देखते हैं तो आर्य सुहस्तीसूरि के समय सम्प्रति का राजा होना भी भालूम नहीं देता है कारण वि०नि० सं० २१० वर्ष चन्द्रगुप्त का गज प्रारम्भ होता है। सव २४ चन्द्रगुप्त के २५ विन्दुसार के ४१ अशोक के एवं ९० वर्ष मिलाने पर वि०नि०सं० ३०० के बाद सम्पत्ति का राज प्रारम्भ होता है इससे तो आर्यसुहस्तीसूरि ने सम्प्रति को देखा भी न होगा । जो यह बात बिलकुल असम्भव सी प्रतीत होती है कारण राजा सम्प्रति को जैनधर्म की दीक्षा आचार्यसुहस्तीसूरिने ही दी थी और उनके द्वारा कई अनार्य देशों में जैनधर्म का प्रचार भी कराया था। अर्थात् आर्य सुहातीसूरि अपने ४६ वर्ष के युगप्रधान काल में राजा सम्प्रति से जैनधर्म का प्रचार करवाया था । क्योंकि आर्यसुहस्ती सूरि का युगप्रधान समय वीर निर्वाण सं० २४५ का है । तब सम्राट् सम्प्रति का राज्याभिषेक वीर निर्वाण संवत २४५ में हुआ था। इससे २४, २५, ४१ एवं ९० वर्षों के बाद करदें तो भी वीर निर्वाण सं० १५५ नंदों के राज का समय कहा जा सकता है । और प्राचार्य सुहस्ती का स्वर्गवास वी. नि० सं० २९१ में हुआ था। तब सम्राट सम्प्रति का स्वर्गवास वी. नि. सं. : ९९ में हुवा एवं आर्यसुहस्तीसूरि के स्वर्गवास के बाद ८ वर्ष तक सम्राट् सम्प्रति जीवित रहा था। अतः इन प्रमाणों से चन्द्रगुप्त का राज वी० नि० सं० २१० की बजाय १५५ मानना अधिक उपयोगी समझा जा सकता है ।
उपरोक्त काल गणना से मौर्यवंशी राजाओं के समय तक तो हम ठीक पहुँच सकते हैं कि मौर्यवंशीय राजाओं का राज वी० नि० सं० ३२३ में समाप्त होता है और आगे चल कर मगद के राज का समय गिना जायतो ३० वर्ष पुष्पमित्र का मिला दिया जायतो वी० नि० सं ३५३ वर्ष का श्राता है इसके बाद मगद के सिंहासन पर किस का राज रहा इसको जानने के लिये हमारे पास कोई भी साधन इस समय विद्यमान नहीं है।
जब भगवान महावीर के निवार्ण के बाद विक्रम संवत् का प्रारम्भ के लिये हमे चलमित्र भानुमित्र का समय देखना पड़ता है जिसका राज भरूच्छ और उज्जैन में रहा था और ६० वर्ष उन्होंने राज किया था बलमित्र भानुभित्र के समय कालकाचार्य और आपकी बहेन सरस्वती साध्वी की घटना बनी थी जिसका समय जैनपट्टावलियों के आधार पर ४५३ का है यदि इस समय को बलमित्र भानुमित्र के राज का अन्तिम समय भी मान लिया जाय तो उनका राज वी नि० सं० ३९३ से प्रारम्भ होता है जब मगद के पुष्पमित्र का राज वी०नि० ३५३ वर्ष में समाप्त हो चुका था अतः इसमें कम से कम ४० वर्ष का अन्तर तो रही जाता है यदि यह कल्पना की जाय कि बलमित्र भनुमित्र के राज के बाद नभसैनका ४० वर्ष राज रहा था यह बल० भानु० के पूर्व हुआ होतो काल गणना मिल सकती है जैसे ३५३ मगद के राजाओं का ४० नमसैन ६० वर्ष बल० भानु० और १७ वर्ष शाकों का सब मिल कर ४७० वर्ष के बाद विक्रम संवत् प्रारम्भ हुआ है । और आचार्य भेरूँ तुंगसूरि की विचारश्रेणी के मत से '३५ वर्ष शाकों का राज मान लिया जाय तो वी० नि० सं० ६०५ वर्ष से शाक संवत् प्रारम्भ हुआ भी मिल सकता हैं।।
परन्तु यहाँ एक बात और भी विचारणीय है कि मगद के सिंहासन पर अन्तिम राजा पुष्पमित्र हुआ उनके बाद मगद की राजधानी पर किसका राज रहा ? इसके लिए तो हमारे पास कोई भी साधन नहीं है कि हम इसका निर्णय कर सकते । तब महावीर के बाद विक्रम संवत् का समय मिलाने के लिये
३१०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org