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________________ वि० पू० २८८ वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ___ ऊपर दी हुई तालिका का यह साराँश है कि 'विचारश्रेणीकार' के मत से नवनंदों का राज १५५ वर्ष का, और पुष्पमित्र का राज ३० वर्ष का है । तव तित्थोगाली पइन्ना का मत से नंदों का राज १५० वर्ष और पुष्पमित्र का राज ३५ वर्ष माना है । इसमें ५ वर्ष का रहोबदल अन्तर होने पर भी हिसाब में फरक नहीं आता है। आगे विचारश्रेणीकार मौर्यवंश का राज १०८ और शकों का १५२ वर्ष बतला कर दोनों का मिला कर २६० वर्ष पुरा किया हैं। तव तित्थोगाली पइन्ना में मोर्यवंश को १६० वर्ष और शकों का १०० वर्ष मान कर २६० वर्ष का हिसाब मिलाया गया है । अतः वी०नि० सं० से शाक संवत् का प्रारम्भ होने में दोनों प्रन्थकारों का एक ही मत है जो ६०५ वर्ष बतलाते हैं । ___ उपरोक्त गणना में खास अन्तर तो मोर्यवंश के राजाओं का ही है । जो विचारश्रेणीकार १०८ वर्ष बताते हैं जब पइन्ना १६० वर्ष का प्रतिपादन करता है । अतः मोर्य राज में ५२ वर्ष का अन्तर पड़ता है। जब मौर्य राजाओं के राज काल की गणना लगाई जाय तो १६० वर्ष का मानना ठीक बैठता है। क्योंकि मौर्य चन्द्रगुप्त ने २४, विन्दुसार ने २५,अशोक ने ४१,सम्प्रति ने ५४ और उनके बाद शालीशुक से वृहद्रथ ने १९ वर्ष राज किया बतलाया जाता है । इन सब की जोडलगाई जाय तो १६३ वर्ष आता है। जो पइन्नो के मत से मिलता जुलता है फिर विचार-श्रेणीकरों ने ५२ वर्ष का अन्तर क्यों डाला होगा। वास्तव में यह भूल मौर्यवंश के राजाओं की नहीं, पर यह भूल नंद वंश के राजाओं के समय की पाई जाती है । कारण आचाय हेमचन्द्रसूरि ने अपने परिशिष्ट पर्व नामक ऐतिहासिक ग्रंथ में लिखा है किः अनन्तरं वद्ध मानस्वामिनिर्वाणवासरात् । गतायाँ पष्ठिवत्सर्यामेष नन्दोऽभवन्नृपः ।। भगवान महावीर के निर्वाण के बाद ६० वर्ष व्यतीत होने पर मगध के सिंहासन पर नंदवंशीय राजा का राज स्थापित हुआ अर्थात् ६० वर्ष तक शिशुनागवंशी राजा कोणिक और उदाई का राज रहा । बाद में नंद का राज हुआ। अब नन्दों का राजा कहां तक रहा इसके लिये कहते हैं कि एवं च श्रीमहावीर मुक्तर्वर्षशते गते । पञ्चपञ्चाशदधिके चन्द्रगुप्तोऽभवन्नृपः ॥ जब १५५ वें वर्ष में मगध के सिंहासन पर चन्द्रगुप्त मोय का राज प्रारम्भ होता है तो ६०-१५५ बीच में ९५ वर्ष रहे । इससे नंदों का राज ९५ वर्ष रहा, जिसको १५० या १५५ वर्ष का मान लेना ही इस अंतर का मूल कारण हो सकता है। इस विषय में कई विद्वान अपनी शोध एवं खोज के बाद इस निर्णय पर आये हैं कि मगध की गद्दी पर नंदों का राज ९५-१०० वर्षों से अधिक नहीं रहा था । उदाहरण यहां पर दर्ज कर दिया जाता है । (१) डा० त्रिभुवनदास लहेरचन्द ने अपने 'प्राचीनभारतवर्ष' नामक पुस्तक में मौर्यवंश के राजा चन्द्रगुप्त का राज्याभिषेक समय इ० स० पू० ३७२ का लिखा है । अतः वी० नि० सं० १५५ का आता है। (२) बंगाल का इतिहासज्ञ बा० नागेन्द्र बसु ने अपने 'वैश्यकाण्ड' नामक पुस्तक में लिखा है कि चन्द्रगुप्त का समय इ० स० पू० ३७५ से शुरु होता है । अर्थात् वीर निर्माण से १५२ वर्ष आता है । (३) श्रीमान् सूर्यनारायणजी व्यास उज्जैनवाले ने एक विस्तृत लेख नागरी प्रचारणी त्रिमासिक पत्रिका वर्ष १६ अंक १ में मुद्रित करवाया है, जिसमें उन्होंने चन्द्रगुप्त का राज समय इ० सं० पू० ३७२ का जैसे हा०त्रिलेल्ने सिद्ध किया है । इससे वि० १५५ वर्ष चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण समय स्थिर होता है। ३०८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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