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________________ आचार्य कक्कसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ११२ मौर्य साम्राज्य का समय मोर्य साम्राज्य का समय निश्चित करना एक प्रकार की विकट समीक्षा बन गयी है। इतिहासकारों का इस विषय में एक मत नहीं पर पृथक २ मत है । जैन काल गणना में भी इस विषय का काफी मतभेद है । कई लोगों का मत है कि भगवान महावीर के पश्चात् १५५ वें वर्ष में चन्द्रगुप्त मगध के सिंहासन पर आरूढ़ हुआ। तब कई एकों का मत है कि महावीर निर्वाण के बाद २१० वें वर्ष चन्द्रगुप्त मगध के राजा हुऐ। और कई लोगों का इन दोनों से अलग ही मत है । अतः इन सबों का उल्लेख यहां पर दर्ज कर दिया जाता है । - आचार्य मेरुतुंगसूरि कृत विचारणी पूर्वाचार्य निर्मित तित्थोगाली पइन्नो वीर निव्वाण रयणीओ चंडपज्जोय राय पट्टम्मि । जरयणि सिद्धि गओ, अरहा तित्थंकरो महावीरो । उज्जेणीए जात्रो पालय नामा महाराया ॥ तरयणिमवंतीए अभिसित्तो पालो राया ।। ६२० सट्ठी पालगरायो, पणवन्न संयं तु होइ नन्दाणं । पालग रगणे सट्ठी पुण पणासयं वियाणि णंदाणाम् असयं मुरियाणं तीसञ्चिया पूसमित्तस्स ॥ मुरियाणं सट्ठिसयं पणतीसा पूस भित्ताणाम् ।।३२१ बलमित्त भाणुभित्राण सठ्ठि वरिमाणी चत नहवहणे । बलभित्त भाणुमित्ता सठ्ठा चताय होती नहासणे। तह गद्दभिल्लस्स रज्जं तरेस वासे सगस्स चउ ॥ गद्दभसयमेगं पुण पडिवन्नो तो सगो राया ॥६२२ विक्रम रज्जाणंतर सतरस वासेहिं बच्छर पविती। | पंचयमासा पंचयवासा छच्चेव होति बास सया । सउँपुण पणतीस सय विक्कम कालम्मिय पविट्ठ ।। | परिनिव्वुअस्सऽरिहंतो उपन्नो सगो गया ॥ ६२३ अर्थात उपरोक्त गाथाओं का भाव अर्थात उपरोक्त गाथाओं का भाव पालग का राज ६० वर्ष पालग का राज नौ नंदो का राज नौ नंदो का राज मौर्य वंश का गज मोर्य वंशियों का राज पुष्पमित्र का राज पुष्पमित्र का राज बलमित्र भानुमित्र का राज बलमित्र भानुमित्र का राज नभबाहन का राज नभसैन का राज गर्दभभिल्ल का राज शाकों का राज शाकों का राज विक्रम संवत्-४७० शाक संवत्-६०५ विक्रमादित्य का राज इस तित्थोगाली पाइन्ना की गाथाओं में केवल धर्मादित्य का , शाक संवत् का ही उल्लेख है । पर विक्रम संवत् का भाइल का कहीं पर न जिक्र है और न गणना से ही हिसाब मिलता नाइल का है। हाँ नभसैन के राज का ५ वां वर्ष जाने के बाद विक्रम नाहाड़ का | संवत् माना जाय तो वी०नि० सं० ४७० आ सकता है । पर इसके मानने के लिये कोई भी कारण नहीं शाक संवत-६०५ | पाया जाता है कि संवत् किसने एवं क्यों चलाया। ४० , १४ , ३०७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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