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________________ वि० पू० २८८ वर्ष 1 [ भगवान पार्श्वनाथ को परम्परा का इतिहास बाजौर प्रान्त भी इनके साम्राज्य में मिले हुए थे। काश्मीर की राजधानी "श्रीनगर" को स्वयं सम्राट् ने ही बसाया था । नेपाल में भी उन्होंने "ललितपुर" नामक एक नवीन राजधानी बसाई थी । जो कि काटमाण्डू से दो तीन मील दक्षिण-पूर्व में है । समाट की लड़की चारुमति ने भी नैपाल में अपने पति देवपाल के स्भारक स्वरूप देवपाटन नामक एक नगर बसाया था । यह तो साम्राज्य की उत्तर सीमा हुई । पूर्व में सारा बङ्गाल अशोक के साम्राज्य में सम्मिलित था । दक्षिण में कलिगु, आन्ध्र और पूर्वी किनारे का सारा दक्षिण प्रान्त अशोक के अधीन था ।। केवल चौल पाण्ढय; करेलपुत्र ओर सतीयपुत्र अशोक साम्राज्य से बाहिर थे ! इस सारे साम्राज्य को अशोक ने कई भागों में विभक्त कर दिया था । इनमें भिन्न २ भागों में एक एक राजप्रतिनिधि राज्य करता था। एक राजप्रतिनिधि तक्षशिला में, दूसरा कलिंग के अन्तगत तोसली में, तीसरा उज्जैन में और चौथा दक्षिण देश में रहता था । इन प्रतिनिधियों में राज्य घराने के अथवा सम्राट के पूर्ण विश्वास पात्र लोग ही रहा करते थे। सम्राट अशोक की तीर्थयात्रा-जेब कि सम्राट अशोक ने अपने तमाम बौध तीर्थों की यात्रा करना प्रारम्भ किया। सबसे पहले वे मुजफ्फरपुर (आधुनिक) और चम्पारन के जिलों में होते हुए नैपाल गये । मार्ग में उक्त स्थानों पर उन्होंने पांच बड़े २ स्तम्भ खड़े करवाये । वहां से चलकर वे महात्मा बुध के जन्मस्थान लुम्बिनि कानन में पहुँचे । भगवान बुद्ध की माता मायादेवी को नैहर जाते समय रास्ते में इसी स्थान पर प्रसव वेदना हुई थी, और यहाँ पर सिद्धार्थ कुमार का जन्म हुआ था। इस स्थान सम्राट ने एक स्तम्भ खड़ा करवाया वहां से चलकर सम्राट् बुद्धदेव के पिता शुद्धोद्धन की राजधानी कपिल वस्तु गये । इसके पश्चात् वे सारनाथ, जहां पर कि, भगवान् बुद्ध ने सर्व प्रथम उपदेश किया था, गये। सारनाथ से श्रवति होते हुए वे बुद्ध गया पहुँचे । इस स्थान पर भगवान् बुद्ध को बोधी ज्ञान प्राप्त हुआ था। वहां से कुशिनगर लौटते हुए वे पुनः अपनी राजधानी लौट गये । सम्राट अशोक के खुदाये हुए शिलालेख--पुरातत्त्व विभाग के शोध खोज द्वारा भगवान महावीर के ८४ वर्ष बाद का तथा एक लेख महात्मा बुद्ध का इन प्राचीन दो लेखों के बाद मौर्य राजाओं का नम्बर आता है और इनके शिलालेखों में कलिंग के दो शिलालेख, सात बड़े स्तम्भ लेख, तराइ के दो शिलालेख, चट्टानों के दो शिलालेख, चौदह पहाड़ियों के शिलालेख, गुफाओं के तीन लेख, छोटे स्तम्भ लेख, सारनाथ, गिरनार, गया वगैरह स्थानों से जो शिलालेख मिले हैं इन सब शिलालेखों की एक पुस्तक भी प्रकाशित हो गई है कई विद्वानों का मत है कि यह शिलालेख सम्राट अशोक के खुदवाये हुए हैं तथा कई विद्वानों का मत है कि सम्राट अशोक के पौत्र सम्प्रति के खुदवाये हुए हैं। इस मत भेद का कारण यह है कि प्रस्तुत शिलालेखों में न तो शिलालेख खुदाने वाले राजा का नाम है और न उसमें संवत् मिती भी है कि जिसके जरिये स्पष्ट निर्णय किया जाय । उन शिलालेखों में नाम के स्थान पर प्रियदर्शी एवं देवानुप्रिय और संवत् के स्थान मेरे राज के इतने वर्ष के बाद में यह शिलालेख खुदवाये गये हैं। इससे कई लोगों में प्रियदर्शी एवं देवानुप्रिय अशोक का विशेषण मान लिया है तब कई लोगों ने सम्प्रति का विशेषण समझ लिया है । सम्राट अशोक पहली अवस्था में जैन था पर बाद में बौद्ध बन कर बौद्धधर्म का प्रचार किया था तब सम्राट् सम्प्रति शुरू से आखिर तक जैनधर्मो ही था । और उसने जैनधर्म का प्रचुरता से प्रचार भी किया Jain Ed 2 nternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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