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वि० पू० २८८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
उस समय कश्मीर, नैपाल, हिन्दुकुश पर्वत तक का सारा अफगानिस्तान बलुचिस्तान, और पंजाब मिले हुए थे। तक्षशिला का विश्वविद्यालय आयुर्वेदीय शिक्षा के लिए उस समय जगत् प्रसिद्ध था । अशोक ने बहुत उद्योग करके उस विश्वविद्यालय की बहुत उन्नति की उस समय सारे भारतवर्ष के धनी मानी लोगों के लड़के और विद्याप्रेमी लोग विद्या प्राप्त करने के लिए तक्षशीला जाते थे ।
वीर राजा अशोक ने तक्षशिला में रद्द कर एक होनहार राजा की तरह शासन को सुचारु रूप से चलाया। बैरियों पर अशोक की बड़ी भारी छाप पड़ गई कि वे किसी प्रकार से शिर ऊँचा न कर पाते थे। जब सम्राट् बिन्दुसार ने अशोक का राज प्रबन्ध अच्छा जान कर उसको उज्जैन भेज दिया तो वहाँ भी उसने अपनी कार्य कुशलता से राजतन्त्र सुव्यवस्थित रूप से चलाया ।
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जब बिन्दुसार का देहान्त हो गया तो राजतन्त्र अशोक के हस्तगत हो गया ४ वर्ष तक राज्याभिषेक नहीं हुआ। उसने अपने भाइयों को समझाने में चार व सार के एक रानी का पुत्र सुसीम था उसने अशोक पर चढ़ाई की थी परन्तु उस युद्ध
tart में यह भी लिखा मिलता है कि अशोक ने अपने ९९ भाई बहिनों को मार डाला था पर यह बात प्रमाणित नहीं होती है। कारण, अशोक के राज्यरोहण होने के बाद कई भाई और बहिन जीवित थे । शायद् पहिली अवस्था में अशोक जैन था अतः बौद्धों ने जैनत्वकाल में अशोक को क्रूर प्रकृतिवाला चित्रित कर दिया हो । वास्तव में बात ऐसी नहीं थी । अशोक ने ४ वर्ष तक अपना राज्याभिषेक करवाया इसका मुख्य कारण अपने भाइयों को समझाने का ही था तो फिर यह कैसे समझा जाय कि अशोक ने अपने सब भाई बहिनों को मारडाला था ।
फिर भी अशोक का
व्यतीत किये । विन्दुमें वह मारा गया |
जब सम्राट् अशोक का मगध की राजधानी पाटलीपुत्र में राज्याभिषेक हुआ इसके पश्चात् अशोक ने अपनी राजसीमा को भारत के बाहर के प्रदेश तक प्रसारित करदी थी । सम्राट अशोक जैसा वीर था वैसा उदार भी था । वह अपनी प्रजा को सब तरह से आराम पहुँचाना चाहता था पर साथ में जनता में अन्याय और अत्याचार को रोकने का भी पूरा पूरा प्रवन्ध रखता था। कहा जाता है कि अशोक ने दंडविधान में एक जैन शास्त्रों के अनुसार नरकवास भी बनाया था। उस नरकवास की सजा उसको ही दी जाती थी कि जिसका बड़े से बड़ा अपराध हो । हां, कभी कभी निरपराधी लोग भी इस नरकवास का दंड सहन करते हुए अपने प्राणों की बलि दे देते थे । जब सम्राट् को इस नरकवास की क्रूरता मालूम हुई तो फौरन उसने उसको तोड़ दिया ।
कुछ भी हो पर अशोक ने अपनी प्रजा के अन्दर सदाचार के ऐसे प्रबन्ध कर रक्खा था कि इसके दीर्घकाल के शासन में ऐसी कोई घटना नहीं पुकार कह सकें ।
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यह तो पहिले ही लिखा जा चुका है कि अशोक ने प्राय: भारत और भारत के अलावा कई प्रान्त पर भी अपनी विजय ध्वजा फहरा दी थी पर मगध के निकटवर्ती कलिंग देश के राजाओं ने अशोक की अधीनता स्वीकार नहीं की थी। यह बात अशोक को खटकती थी । वस समय पाकर अशोक ने कलिंग पर धावा बोल दिया ।
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संस्कार डाल दिये थे तथा ऐसा घटी कि जिसको प्रजा की
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