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आचार्य ककसूरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
सम्राट बिन्दुसार २५ वर्ष तक शान्तिपूर्वक शासन करके समाधि पूर्वक स्वर्गवासी हुये । उनके पश्चात उनके कनिष्ठ पुत्र " अशोक" राज्यसिंहासनारूढ़ हुये !
सम्राट अशोक- यह अपने पिता विन्दुसार का उत्तराधिकारी था। इतिहास काल में भारत सम्राटों में आपका नम्बर दूसरा है । यद्यपि सबसे प्रथम सम्राट् का यश चन्द्रगुप्त को ही है परन्तु अशोक भी उससे कम नही था किन्तु किसी अपेक्षा उसकी उदारता और भी विशाल थी जो कि आगे चलकर श्राप इसके जीवन को पढ़ेंगे तो स्वयं ज्ञात हो जायगा ।
अशोक का जन्म -- बौद्धों के प्राचीन साहित्य में " अशोकावदान" नामक एक प्रसिद्ध ग्रन्थ है । यह प्रन्थ प्रायः अशोक की जीवनी से ही अधिक सम्बन्ध रखता है । इसमें अशोक के जन्म से सम्बन्ध रखने वाली एक विचित्र घटना का उल्लेख किया गया है। उसमें लिखा है।
" चम्पानगरी में एक ब्राह्मण के घर पर एक सुन्दर कन्या का जन्म हुआ। एक ज्योतिषी ने उस कन्या के सब लक्षण देख कर कहा कि यह कुमारी अवश्य किसी चक्रवर्ती की माता होगी। यह सुनकर वह ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुआ, और जब यह कन्या युवती हुई तो उसे सम्राट् बिन्दुसार के पास ले गया, एवं योतिषी के द्वारा कही हुई भविष्यवाणी भी उन्हें कह सुनाई । उस कन्या के अलौकिक रूप को देखते ही सम्राट् बिन्दुसार उस पर मोहित हो गये और तुरंत ही उन्होंने उसे अपने रनवास में भेज दिया । रनवास की दूसरी रानियां इस कन्या के रूप को देखकर मन ही मन कुढ़ने लगीं। उसके मन में यह सन्देह होने लगा कि कहीं सम्राट् इस कन्या के रूप पर मोहित होकर हमारी उपेक्षा न करने लग जांय । इस आपत्ति से बचने के लिए उन्होंने एक युक्ति सोची । वे सब उस कन्या को "नापितानी" कह कर ज़ाहिर करने लगीं और उससे उन्होंने दासी की तरह काम लेना प्रारम्भ कर दिया। कुछ समय के पश्चात् एक दिन सम्राट् बिन्दुसार ने उसे देखा, वे उस पर फिर दुबारा मोहित हो गये । वे उससे कहने लगे कि, “तुम्हारी अपूर्व रूप राशि ने मेरे हृदय पर अधिकार कर लिया है, बताओ तुम्हारी क्या कामना है ? हम तुम्हारी सब कामनाओं को पूर्ण करेंगे" यह सुनकर उस ब्राह्म कन्या ने लज्जा से नीचा मुँह कर लिया । राजा के दूसरी वार प्रश्न करने पर उसने कहा कि मैं तो आपको चाहती हूँ । यह सुनकर राजा ने हंस कर कहा कि तो एक नापित कन्या हो और मैं भारतवर्ष का साट् हूँ, भला यह सम्बन्ध कैसे हो सकता है ? इस
तुम
ब्राह्मण कन्या हूँ । आपकी पत्नी
पर ब्राह्मण कन्या ने कहा,“भगवान ! मैं नापित कन्या नहीं प्रत्युत एक बनने का सोभाग्य मुझे प्राप्त हो, इसी उद्देश्य से मेरे पिता मुझे आपके सुपुर्द कर गये थे ।" यह सुनते ही राजा को तत्काल पूर्व घटना की स्मृति हो आई और उन्होंने उस ब्राह्मण कन्या को पटरानी बना दिया । इस कन्या के गर्भ से दो पुत्रों का जन्म हुआ । पहिला अशोक और दूसरा वीताशोक ।"
अशोक के पहिले सम्राट् विन्दुसार के पूर्व पट्टरानी से उत्पन्न "सुसीम" नामक एक और पुत्र था । एक बार सम्राट् विन्दुसार ने अशोक पर नाराज होकर उसे तक्षशिला के वलवाइयो को (एक बार तक्षशिला के लोगों ने बिन्दुसार के विरुद्ध बलवा किया था ) दबाने के लिये भेज दिया । अशोक सेना वग़ैरह से सुसज्जित होकर तक्षशिला पर चड़ गया और बिना युद्ध किये हुए अपने कौशल से उस बलवे को दबा दिया | इसके पश्चात् कितने ही दिनों तक वह तक्षशिला का राज्य प्रतिनिधि रहा । तक्षशिला के राज्य में
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