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वि० पू० २८८ वर्ष
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
ने बन्धा को फिर से बनबाया और इस बन्धा तथा मील का संक्षिप्त इतिहास उसने एक शिलालेख में लिख दिया जो गिरनार की चट्टान पर खुदा हुआ है।
चाणक्य के कथन से यह भी ज्ञात होता है । कि कृषि विभाग के साथ साथ "अन्तरिक्षविद्या विभाग" ( Beteorological Department ) भी था। यह विभाग एक प्रकार के यन्त्र के द्वारा इस बात का निश्चय करता था कि कितना पानी बरस चुका है । बादलों की रंगत से भी इस बात का पता लगाया जाता था कि पानी बरसेगा या नहीं और बरसेगा तो कितना । सूर्य, शुक्र और वृहस्पति की स्थिति और चाल से भी यह निश्चय किया जाता था कि कितना पानी बरसने वाला है ।
साम्राज्य की सड़कें-सुव्यवस्थित दशा में रखी जाती थीं । श्राध कोस पर पथ-प्रदर्शक पत्थर ( माइलस्टोन ) गड़े रहते थे। एक बड़ी सड़क आजकल की प्राण्डट्रक रोड (कलकत्ते से पेशावर वाली सड़क ) के समान पश्चिमोत्तर सीमाप्रान्त में तक्षशिला से लगाकर सीधे मौर्य साम्राज्य की राजधानी अर्थात् पाटलिपुत्र तक जाती था। यह सड़क लगभग १००० मील लम्बी थी। अर्थशास्त्र से पता लगता है कि मोर्यसाम्राज्य में सड़कें सब दिशाओं को जाती थीं, जिस दिशा में यात्रियों और व्यापारियों का आना जाना अधिक रहता था उसी दिशा में अधिकतर सड़कें बनवाई जाती थीं। उन दिनों जो दक्षिण की ओर सड़कें जाती थीं वे अधिक महत्व की गिनी जाती थीं। क्योंकि वहाँ ब्यापार अधिक होता था और वहीं से हीरा, जवाहिर, मोती, सोना इत्यादि बहुमूल्य वस्तुएं आती थीं । सड़कें कई किस्म की होती थी । भिन्न २ प्रकार के मनुष्यों और पशुओं के लिए भिन्न २ सड़कें थीं । जिस सड़क पर राजा का जुलूस वगैरह निकलता था वह “राजमार्ग" कहलाता था जिस सड़क पर रथ चलते थे, वह 'रथपथ' कहलाता था, जिस सड़क पर खच्चर और ऊंट चलते थे, वह "खरौष्ट्रपथ" कहलाता था; जिस सड़क पर पशु चलते थे वह 'पशुपथ' कहलाता था। और जिस सड़क पर पैदल मनुष्य चलते थे वह “मनुष्य पथ" कहलाता था। इसी तरह से कुछ सड़के ऐसी थीं जिन का नाम उन देशों या स्थानों के नाम पर पड़ा हुआ था, जिन देशों
और स्थानों को वे जाती थीं इसी तरह की एक सड़क राष्ट्र-पथ की छोटे-छोटे जिलों को जाती थी। विविध पथ' नामक सड़क चरागाहों को जाती थी जो सड़क सेना के रहने स्थानों जाती थी, वह “ब्यूहपथ" के नामसे पुकारी जाती थी। और जो सड़क स्मशान को जाती थी वह स्मशान-पथ कहलाती थी । बन की
ओर जाने वाला मार्ग 'बन-पथ' के नाम से पुकारा जाता और जो मार्ग पुलों तथा बान्धों की ओर जाता था वह सेतु-पथ कहलाता था।
राज्य के सभी काम राज-कोष पर निर्भर रहते हैं। इसलिये कर लगाना राजा के लिये बहुत आवश्यक है। अर्थ शास्त्र में एक स्थान पर मौर्यसाम्राज्य के श्राय के द्वार निम्न रूप से लिखे गये हैं:(१) राजधानी (२) ग्राम और प्रांत (३) खाने (४) सरकारी बाग (५) जंगलात (६) जानवर और चरागाह तथा (७) 'वणिक पथ' ।
___ चन्द्रगुप्त की शासन-व्यवस्था का उल्लेख कौटिलीय अर्थशास्त्र और मेगास्थानीज के भ्रमण वृतान्त में विस्तार पूर्वक मिलता है । उसी वृतान्त को अत्यन्त संक्षेप में गुरुकुल-विश्वविद्यलय काङ्गड़ी के इतिहास लेखक एवं प्रोफेसर श्रीसत्य-केतु विद्यालंकार ने अपने मौर्यसाम्राज्य के इतिहास में उल्लिखित किया है । यहाँ उक्त पुस्तक से अत्यन्त अवश्य-कीय, ज्ञातव्य, और रुचिकर अंश उद्धृत किया जाता है
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