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________________ आचार्य ककसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् ११२ विभाग" का शासन करता था। उसका पद वही था जो आज कल के "डाइरेक्टर आफ एग्रिकल्चर" का है। खेती की भूमि राजा की सम्पत्ति गिनी जाती थी और राजा किसानों से पैदावार का चौथाई भाग करके रूप में आम तौर पर वसूल करता था। इस बात का पता नहीं लगता कि लगान का बन्दोबस्त हर साल होता था या कई साल के बाद । किसान लोग सैनिक सेवा से अलग रखे जाते थे । मेगास्थनीज साहब इस बात को देखकर बड़े चकित थे कि जिस समय शत्रु सेनाएँ घोरसंप्राम मचाये रखती थीं उस समय भी खेतीकर लोग शान्ति पूर्वक अपने खेती के काम में लगे रहते थे । __ भारतवर्ष सदा से कृषि-प्रधान देश रहा है। अतएव इस देश के लिये सिंचाइ का प्रश्न हमेशा से बड़े महत्व का गिना जाता है । चन्द्रगुप्त के शासनके लिये यह बड़े गौरव का विषय है कि उसने सिंचाई का एक विभाग ही अलग नियत कर दिया था । इस विभाग पर वह विशेष ध्यान देता था, मेगास्थनीज साहब ने भी लिखा है कि "भूमिके अधिकतर भाग में सिंचाई होती है इसी से साल में दो फसलें पैदा होती हैं राज्य के कुछ कर्मचारी नदियों का निरीक्षण और भूमि की नाप जोख उसी तरह करते हैं; जिस तरह मिश्र में की जाती है वे उन गूलों अथवा नालियों की भी देख भाले करते हैं जिनके द्वारा पानी खास नहरों से शाखा नहरों में जाता है, जिसमें कि सब किसानों को समान रूप से नहर का पानी सिंचाई के लिये मिल सके ।" मेगास्थनीज का उक्त कथन अर्थशास्त्र से पूरी तरह पुष्ट हो जाता है । सिंचाई के बारे में कुछ बातें अर्थशास्त्र में ऐसी भी लिखी हैं जो मेगास्थनीज के बर्णन में नहीं पाई जाती हैं। अर्थशास्त्र के अनुसार सिंचाई चार प्रकार से होती थी, यथा (१) "हस्तप्रावर्तिम' अर्थात् हाथ के द्वारा (२) "स्कान्ध प्रावर्तिम" अर्थात् कन्धों पर पानी ले जाकर ( ३ ) "स्रोतयंत्रप्रावत्तिम" अर्थात् यंत्रके द्वारा ( ४ ) "नदीसरस्तटाकूपोद्घाटम्" अर्थात् नदियों, तालाबों और कूपों के द्वारा, सिंचाई के पानी का महसूल क्रम से पैदावार का पंचमांश, चतुर्थाश और ततीयांश होता था । अर्थशास्त्र में कुल्या का नाम भी आता है । जिसका अर्थ "कृत्रिमासरित" अथवा नहर है । इससे विदित होता है कि उन दिनों भारतवर्ष में नहरें बनाई जाती थीं । और उनके द्वारा खेत सींचे जाते थे । पानी जमा करने के लिये सेतु या बान्धा भी बान्धे जाते थे और तालाब या कूप इत्यादि की मरम्मत हमेशा हुआ करती थी। इस बात की भरपूर देख-रेख रवखी जाती थी कि यथा समय हर एक मनुष्य को आवश्यकतानुसार जल मिलता है या नहीं । जहां नदी सरोवर तलाव इत्यादि नहीं थे वहाँ राजा की ओर से तालाब बगैरह खुदवाये जाते थे । गिरनार में (जो काठियावाड़ प्रांत में है) एक चट्टान पर क्षत्रपाल रुद्रायम का एक लेख खुदा हुआ है । उससे विदित होता है दूरस्थित प्रान्तों में भी सिंचाई के प्रश्न पर मौर्यसम्राट कितना ध्यान देते थे। यह लेख ई० सन १५० के बाद ही लिखा गया था । इसमें लिखा है कि पुष्यगुप्त वैश्य ने जो चन्द्रगुप्त की ओर से पश्चिमी प्रान्तों का शासक था गिरनार की पहाड़ी पर एक छोटी नदी के एक ओर बन्धा बनावाया जिससे एक मील सी बन गई । इस मील का नाम 'सुदर्शन' रक्खा गया और इससे खेतों की सिंचाई होने लगी । बाद सम्राट अशोक ने उसमें से नहरें भी निकलवाई। नहरें अशोक के प्रतिनिधि राजा "तुषस्फ" की देख भाल में बनवाई गई थी ! .... मौर्य सम्राटों की बनवाई हुई मील तथा बान्ध दोनों ४०० वर्ष तक कायम रहे । उसके बाद सन् १५० में बड़ा भारी तूफन आने से झील और बन्ध दोनों नष्ट हो गये तब शक क्षत्रप रुद्रदामन Arriam-marwarrar २६७ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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