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वि० पू० २८८ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
प्रान्तों का शासन-दूरस्थित प्रान्तों का शासन राजप्रतिनिधियों के द्वारा होता था। राजप्रतिनिधि आम तौर पर राजघराने के लोग हुआ करते थे। उनके अधीन अनेक कर्मचारी होते थे। 'अर्थशास्त्र' के अनुसार प्रत्येक राज्य चार मुख्य प्रान्तों में विभक्त होना चाहिये और प्रत्येक प्रान्त एक एक राजकुमार या 'स्थानिक' नामक शासक के अधीन होना चाहिये । इस बात का पता निश्चित रूप से नहीं है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का विस्तृत साम्राज्य कितने प्रान्तों में बटा हुआ था, पर अशोक के लेखों से पता लगता है कि उसका साम्राज्य चार भिन्न २ प्रान्तों में बटा हुआ था। 'तक्षशिला' 'उजयनि' 'तोसली' और 'सुवर्णगिरि' नामक चार प्रान्तीय राजधानियों के नाम अशोक के शिला-लेखों में मिलते हैं। 'तक्षशिला' पश्चिमोत्तर प्रान्त की और 'सुवर्णगिरि' दक्षिण प्रान्त की राजधानी थी। ऐसा कहा जाता है कि अशोक अपने पिता के जीवन काल में तक्षशिला और उज्जैन दोनों जगह प्रान्तिक शासक रह चुका था । राज-प्रतिनिधि या राजकुमार के बाद "राजुकों" का ओहदा था जो आज कल के कमिश्नरों के समान थे। उनके नीचे 'युक्त' 'उपयुक्त' 'प्रादेशिक' श्रादि अनेक कर्मचारी राज्य का काम नियमपूर्वक चलाते थे। "अर्थशास्त्र" और अशोक के लेखों से पता लगता है कि चन्द्रगुप्त और अशोक की शासन प्रणाली बहुत ही सुव्यवस्थित और ऊंचे ढंग की थी।
दूरस्थित राजकर्मचारियोंकी कार्यवाही की सूचना देने और रत्ती २ भर के समाचार सम्राट को भेजने के लिये "प्रतिवेदक" ( सम्वाददाता ) नियुक्त थे ये लोग प्रतिदिन हर एक नगर या ग्राम का सच्चा समाचार राजधानी को भेजा करते थे।
अर्थशास्त्र के अनुसार राज्य-शासन काम लगभग ३० विभागों में बटा हुआ था। इन विभागों के अध्यक्ष या सुपरिण्टेण्डेण्टों का कर्तव्य बहुत ही विस्तार के साथ "अर्थशस्त्र" में दिया गया है । इन विभागों में से मुख्य-मुख्य "गुप्तचर-विभाग, सैनिक-विभाग, व्यापारबाणिज्यविभाग, नौ-विभाग, शुल्क विभाग, ( चुगी का महकमा ) आकरी विभाग, सुरा-विभाग, (आबकारी का महकमा ) कृषि-विभाग, नहरविभाग, पशु रक्षा विभाग, चिकित्सा विभाग, मनुष्य गणना विभाग" आदि-आदि थे।
गुप्तचरविभाग-सेना के बाद राज्य की रक्षा गुप्तचरों पर निर्भर थी । अर्थशास्त्र में गुप्तचरविभाग तथा गुप्तचरों का बड़ा अच्छा वर्णन मिलता है । गुप्तचर लोग भिन्न भिन्न भेषों में गुप्तरीति से घूमफिर कर हरएक प्रकार के समाचार राजा को दिया करते थे। वे न केवल साम्राज्य के भीतर बल्कि साम्राज्य के भी बाहर उदासीन तथा शत्रु-राज्यों में जाकर गुप्त बातों का पता लगाया करते थे। जिस तरह “जर्मनी के केसर ने" गुप्तचरों का एक अलग विभाग खोल रखा था और उसके द्वारा वह शत्रु-मित्र तथा उदासीन सबों का समाचार प्राप्त किया करता था, उसी तरह चन्द्रगुप्त ने भी एक गुप्तचर-संस्था स्थापित की थी और इसी संस्था के द्वारा वह सब बातों का पता लगाया करता था। वेश्याओं से भी गुप्तचर का काम लिया जाता था। गुप्तचर लोग “गूढ़ या सांकेतिक" द्वारा गुप्त संवाद भेजा करते थे जिस तरह जर्मन लोग युद्ध में कबूतरों से चिट्टीरसा का काम लेते थे उसी तरह चन्द्रगुप्त के गुप्तचर भी कबूतरों के द्वारा खबरें भेजा करते थे।
कृषि-विभाग-राज्य की ओर से एक “सीताध्यक्ष" नामक अफसर नियुक्त था जो "कृषि
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