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आचार्य कक्कमरि का जीवन ]
[ ओसवाल सं० ११२
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६-वृक्ष पर पक्षी आदि बेठे रहते हैं। भृष्टा कर देने से पोशाक खराब हो जाती है इस लिए छात तान कर शरीर को आच्छादित किया होगा।
७-रास्ते में चलते समय शरीर पर छाता करने से शरीर को ताप और छाया दोनों के होने से सर्द-गरमी एवं जुखाम तथा सिर के रोग का भय रहता है।
८-मनुष्य ने मृत्यु से पहले कुछ जनोपयोगी एवं पुन्य कार्य किया हो तो वह मुर्दा भी जिन्दा है नहीं तो ऐसा मुदी, मुर्दा ही कहा जाता है ।
९-जिस औरत के पीछे बाल-बच्चे हैं वह बंधी हुई कही जाती है।
बतलाये इसमें उसने क्या बुरा कहा । ये सब बातें बुद्धिमता की ही हैं। आप यह बतलाइये कि आज वह देवदत्त कहां पर ठहरा हैं । सेठ ने कहा बाजार में किसी दूकान पर होगा। नंदा ने अपनी दासी के साथ थोड़ा सा गरम पानी एक मासा तेल भेज कर कहलाया कि आप इस तेल से मालिश कर रास्ते की थकावट को दूर कीजिये ? दासी बाजार में आई तो पंसारी की दुकान पर एक मुसाफिर ठहरा हुआ था। दासी ने जरा सा तेल देकर नंदा का समाचार कह दिया। उस समय मुसाफिर के पास ५-६ मनुष्य और भीबैठे थे, उन्होंने दासी को कहा कि तूं मासा भर तेल लाकर क्या मश्करी करने आई है ? मुसाफिर ने कहा नहीं तेल भेजने वाली बड़ी चतुर है । तेल थोड़ा नहीं, पर, गहरा है । पास में पड़ा हुआ एक गरम जल के लोटे में तेल डालने से वह तेल सर्वत्र फैल गया जिससे मुसाफिर ने मालिश कर थकावट को दूर किया। दासी ने पास की दुकान वाले को कहा-लो पैसा मुझे वस्तु दीजिये
मठ माहें योगी वसे, विच दीजे जीकार ।
सहचारी को दीजिये, वस्तु रूप विचार ॥ विचारा दुकानदार दासी के दोहे को सुनकर विचार में पड़ गया। कि क्या वस्तु दूँ ?
मुसाफिर ने कहा कि पौन पैसे की मजीठ और छदाम की हदो दे दो क्यों कि म...ठ के बीच जी जोड़ने से मजीठ हाती है और इसकी सहचारिणी मेंहदी होती है । दृकानदार की दी हुई दोनों वस्तु लेकर दासी ने नंदा के पास जाकर सब हाल कहा । तब नंदा ने अपने पिता से कहा कि ऐसा बुद्धिनिधान पुरुष रत्न श्राप के हाथ आ गया है, आप उसको हरगिज न जाने दें अपने यहां बुलालें । सेठजी सुवह जाकर मुसाफिर को अपने यहां बुला लाये । अब तो मुसाफिर और नन्दा के हमेशा विद्वत पूर्वक वार्तालाप होने लगी । देवदत्त ने अपना असली नाम आरम्भ से ही बदल दिया था और अब सेठ जी की दूकान पर जाकर व्यापार की तरफ भी अपना ध्यान लगाना प्रारम्भ किया। सेठ जी की व्यापार कोठी ( दूकान ) बहुत बड़ी थी। उनकी एक कोठरी में उनके पूर्वजों की सींची हुई धूल ( तेजमतुरी ) का ढेर पड़ा हुआ था। सेठजी ने उस ढेर को फैंक देने की आज्ञा दे दी थी मगर देवदत्त ने उस ढेर को देखकर बाहर फेंकने की मनाई करदी। और कहा कि यह धूल मुझे दे दीजिये ? सेठजी ने धूल तो दे दी पर उसको मूर्ख समझा
एक समय बैनातट नगर में विदेश से व्यापारी आये । उनको बहुत दिन हुए पर उनके माल खरीदने वाला नगर में कोई भी नहीं मिला । अतः वे व्यापारी निराश होकर वापिस जाने की तैयारी की। साथ में व्यापारियों ने राजा से मिलना भी उचित समझ कर कुछ भेट लेकर राजा के पास मिलने को गये । राजा ने
(अनुसंधान देखो इसी पुस्तक के पृष्ठ ७१५ पर)
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