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________________ वि० सं० २८८ वर्ष ] [ भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास रहे हैं, मैं भी आपके साथ चलूगा । सेठ ने देखा नवयुवक दीखने में तो कोई अच्छा भाग्यशाली दीखता है पर है कोई पागल, कारण, मैं इनकी माता का कब भाई था जिसमे इसने मुझे मामा कहा ? पर खैर, मुसाफिरी में एक से दो होना अच्छा ही है । सेठ ने नाम पूछा तो श्रेणक ने कहा कि मेरा नाम देवदत्त है खैर वे दोनों आगे बढ़े तो एक बड़ा नगर आया पर वहां उनको ठहरने को स्थान नहीं मिला और न किसी ने भी उनकी सार संभाल की। रात्री के समय देवदत्त ने कहा-क मामाजी अपन कैसे अबुम गांव में श्रा पड़े ? मामाजी ने कहा-पागल यह तो बड़ा नगर है । और बह आगे बढ़े तो एक छोटा प्राम आया वहां ठहरने को अन्ला मकान मिल गया लोगों ने उनकी अच्छी सार संभाल को । पुनः रात्री में देवदत्त ने कहा -मामाजी, यह कैसा रुंदर नगर है । पुनः आगे चलने पर एक नदी आई जिसमें पानी बह रहा था तब देवदत्त ने अपने बढ़िया जूते निकाल कर पहन लिये । सेठ ने सोचा कि यह बड़ा ही मूर्ख | जब नदी पार करली तो जूतों को उतार कर हाथ में ले लिया। जब एक वृक्ष के नीचे बैठे तो देवदत्त ने छाता तान कर शिर पर लगा लिया। जब वहां से चलने लगे तो धूप में छाता बंद कर हाथ में ले लिया। आगे चल कर उन्होंने देखा कि लोग एक मुद्दे को लेकर श्मसान जा रहे हैं तो देवदत्त ने पूछा क्यों भाई यह जिन्दा है या मुर्दा । पुन: आगे चले तो एक औरत औड़ रही थी जिसके पीछे २ लोग उसको पकड़ने को दौड़ रहे थे तो देवदत्त ने पूछा कि लोगो-औरत बंधी हुई है या खुली इत्यादि । सेठ ने इस प्रकार की बातें सुन कर अपने मन में निश्चय कर लिया कि ये तो सच्च ही पागल है । इससे तो इसका साथ छोड़ देना ही अच्छा है । चलते-चलते सेठजी का बेनातट नगर नजदीक आया तो देवदत्त से कहा कि मुझे तो अपने घर जाना है अब तुमकहां ठहरोगे ? अाज तो मैं बाजार में किसी दुकान पर ठहरूंगा कल आगे जाऊगा । इसके बाद सेठजी अपने घर आ गये। सेठजी के एक नन्दा नाम की पुत्री जो अच्छी पढ़ी लिखी, चतुर और विदुषी थी । पिता घर आथे तो रास्ते के कुशल क्षेम पूछा इसपर सेठजी ने कहा पुत्री और तो सब अच्छा था, पर, रास्ते में एक मूर्ख का साथ हो गया। उसने मुझे बड़ा ही हैरान कर दिया । नंदा ने कहा-पिता जी आपने उसको मुर्ख कैसे समझा ? पिता ने कहा कि बेटी सबसे पहले तो मिलते ही उसने मुझको मामा कहा बतलाओ मैं उसकी मां का कब भाई बना था बाद में ठजी ने गस्ते की सव बातें अपनी बेटी से कह सुनाई इस पर बेटी ने कहापिताजी, वह मूर्ख नहीं बल्कि बड़ा ही चतुर बुद्धिशाली एवं विद्वान है । इस पर, सेठ जी ने कहा कि बेटी ! संसार में एक तूं दूसरा वह बस । दो ही विद्वान हैं पर तूं यह तो बतला कि उसमें यया बुद्धिमता है ? इस पर नंदा ने जवाब दिया कि सुनिये पिता जी १-श्राप के साथ जो नवयुवक था, उसकी माता पतिव्रता-सती हैं। उसके पति के अलावा पुरुष मात्र उसके भाई हैं अतः आप उसके मामा हो हुए। २-बड़ा नगर होने पर भी मुसाफिर को आराम नहीं वह बड़ा नगर छोटा प्रामसे भी बुरा है। ३-छोटा ग्राम होने पर भी सुविधा मिले तो वह बड़े नगर से भी अच्छा हैं। ४- पानी में चलते समय कांटा खीला नजर नहीं आता है इस लिये जूता पहनना अच्छा है। ५-थल में जूता पहनने से रोग होता है। कारण, पग का परिसेवा पीच्छा उसपग में समा जाने से रोग होता है। jain Edu२५७(ख) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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