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आचार्य ककसरि का जीवन ]
[ ओसवाल संवत् ११२
दुकाल के समय श्राप नगर में पधार जावे तथा दीर्घ दुकाल के कारण मुनियों के दिल में भी शिथिलता श्रा गई हो। कुछ भी हो पर उस समय के पूर्व जैननिर्ग्रन्थ प्रायः जंगल में ही रहते थे परन्तु उस दुकाल के कारण उन्होंने नगर में रहना स्वीकारकर लिया।
यही कारण है कि आचर्य भद्रबाहु को उस विषम समय की विकट परिस्थिति को लक्ष में रख कर छेद सूत्रों का निर्माण करना पड़ा था जैसे वृहत्कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र दशाश्रु तस्कन्धसूत्र और इन सूत्रों में अन्यान्य नियमों के साथ साधुओं को ठहरने के लिये मकान उपाश्रयों का भी विधान बतलाया है। व्यवहार सूत्र में मकान के दाता के घर का आहार पानी आदि कोई भी वस्तु लेना साधुओं को नहीं कल्पता है । इतना ही क्यों पर जिस दुकान में दूसरों के साथ मकानदाता का विभाग हो तो उस दुकान से भी कोई पदार्थ साधु नहीं ले सकेगा तथा मकान का मालिक साथ चल कर दूसरों से जरूरी वस्तु साधु को दिरावे वह भी साधु को लेना नहीं कल्पेंगा मतलब यह कि मकान के दातार को साधुओं की ओर से किसी प्रकार की तकलीफ न होनी चाहिये ताकि दातार मकान देने में संकोच न करे इत्यादि । ___ वृहत्कल्पसूत्र में यह भी लिखा है कि यदि साधु-गृहस्थ के मकान में ठहरे तो यह मकान कैसा होना चाहिये ? जिस गृहस्थ का मकान में साधु ठहरे उस गृहस्थ को किसी प्रकार का नुकसान न होना चाहिये ? देखिये थोड़े से अवतरण यहां उद्धत कर दिये जाते हैं यथाः
१-उवस्सयस्म अन्तो वगडाए सालीणि वा वीहीणि वा मुग्गाणि वा मासाणिवा तिलाणि वा कुलत्थाणि वा गोधुमाणि वा जवाणि वा जबजवाणि वा ओखिण्णाणि वा विक्खिण्णाणि वा विइगिण्णाणि वा विप्पइण्णाणिवा, नो कप्पई निग्गण्थाणा वा निग्गन्थीणा वा अहालन्दमविवत्थए ।
२-अह पुण एवं जाणेज्जा-नो ओखिण्णाईनो विक्खिन्णाइनो बिइगिण्णाई नो विप्पइण्णाई, रासिकडाणि वा पुंजकडाणि वा भित्तिकडाणि वा कुलियकडाणि वा लच्छियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गन्थाणा वा निग्गन्थीण वा हेमन्तगिम्हासु वत्थए ।
३-अह पुण एवं जाणेज्जा-नो रासिकडाई नो पुंजकडाइ नो भित्तिकडाई नो कुलियकडाई, कोट्ठाउत्ताणि व पल्लाउचाणि वा मंचाउत्ताणि वा मालाउत्ताणि वा ओलित्ताणि वा विलित्ताणि वा लंछियाणि वा मुद्दियाणि वा पिहियाणि वा, कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्श्रीण वा वासवासं वत्भए।
४-उवस्सयस्स अन्तो बगडाए सुरावियडकुम्भे वा सोवरियवियडकुम्भे वा उवनिकितने सिया, नो कप्पइ निग्गथाणवा निग्गन्थीण वा अहालन्दमवि वत्थए। हुरत्था य उवस्सयं पडिलेहमाणे नो लभेज्जा, एवं से कप्पइ एगरायं वा दुरायं वा वत्थए, नो से कप्पइ परं एअरायाओ वा दुरायाओ वा वत्थए । जे तत्थ एगरायाओ वा दुरायाअोवा परं वसेज्जा, से सन्तरा छए वा परिहारे वा।
५-उवस्सयस्स अन्तो वगडाय सीओदगवियडकुम्भे वा उसिणोदगावियडकुम्भे वा उवनिक्खित्त सिया, नो कप्पइ निग्गन्थाण वा निग्गन्थीण वा अहालन्दमवि वत्थए । हुरत्था य
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