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वि० पू० ३४२ वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
वीरों की सन्तान भी वीर ही होती है । सूरिजी का वासक्षेप ही वीरता का था अतः ऐसा एक भी साधुसूरिजी के पास नहीं था कि इस कार्य में पीछे पैर रक्खे । साधुओं ने बड़ी प्रसन्नता प्रगः करते हुए कहा कि हे पूज्यवर ! परोपकार और जैन धर्म के प्रचार के लिये संकट परिसह तो क्या पर हम अपने प्राणों की आहुति देने को तैयार हैं। कीजिये आप विहार, हम सब साधु आपकी सेवा में चलने को तैयार हैं।
बस, फिर तो था ही क्या ? श्राचार्यककसूरि ने शेष साधु षों के लिए अच्छी व्यवस्था कर डाली और शिवनगर का राजा शिव तथा और भी संघ अग्रेश्वरों की सम्मति लेकर सूरिजी ने अपने ५०० शिष्य समुदाय के साथ कच्छ की ओर विहार कर दिया।
विहार के दरम्यान मार्ग का हाल तो जो सिन्ध में अाते हुये यक्षदेवसूरि का हुआ था वही हाल कक्कसूरि का हुआ । पर मुनिपुङ्गवों को इसकी कुछ भी परवाह नहीं थी। वे मार्ग में धर्म का उपदेश देते हुये एवं भूखे प्यासे रहते हुये भी आनन्द के साथ कच्छ की ओर जा रहे थे।
एक समय का जिक्र है कि एक ओर तो साधु तपस्वी थे । दूसरी ओर पानी तक भी नहीं मिला तो सूरिजी ने साधुओं को ओर्डर दे दिया कि जिधर ग्राम देखो उधर जाकर जो कुछ भिक्षा का योग मिले तो पारण कर पात्रो, हम इधर रास्ते होकर जा रहे हैं। शाम को सब शामिल हो जावेंगे।
जब साधु इधर उधर चले गये तो आचार्यश्री स्वयं रास्ते की भ्रान्ति से चार साधुओं के साथ एक महान अटवी में जा निकले जहाँ चारों ओर जंगल म.ड़ियें और विषम भूमि दिखाई दे रही थी। दिशाएँ अपनी भयंकरता का इतना प्रभाव डाल रही थीं कि मनुष्य तो क्या पर पशु-पक्षी भी वहां ठहर नहीं सकते थे। इधर तरुण सूर्य अपने प्रचण्ड प्रताप से विश्व को व्याकुल बना रहा था, पर हमारे आचार्यश्री उसकी पर्वाह नहीं करते हुए बड़ी खुशी के साथ अटवी का उल्लंघन कर रहे थे। उस भयंकर अटवी के अन्दर चलते हुए आपश्री क्या देख रहे हैं कि एक पर्वत के निकट देवी का मन्दिर है। एक तरफ अनेक भैंसे बकरे आदि पशु बंधे हुए हैं तब दूसरी ओर बहुत से जंगली आदमी खड़े हैं । देवी के सामने एक महान तेजस्वी तरुणावस्था में पदार्पण किया हुआ नवयुवक बैठा हुआ है, जिसकी भव्याकृति होने पर भी चेहरे पर कुछ ग्लानि छाई हुई दृष्टिगोचर हो रही थी। उस तरुण के पास में ही एक निर्दय दैत्य सा आदमी अपने कर हाथों में कुठार उठाये हुये खड़ा है । शायद तरुण की ग्लानि का कारण यह ही हो कि उस कुठार द्वारा उसकी देवी को बलि चढ़ाई जाय ।
___ उस घृणित दृश्य देख कर आचार्यश्री को उस तरुण पर वात्सल्य भाव हो आया; अतएव सूरिजी महाराज एकदम चल करके वहां गये और उन करवृत्ति वालों से कहने लगे कि महानुभावो! यह आप क्या कर रहे हैं ? उन लोगों ने उत्तर दिया कि तुमको क्या जरूरत है, तुम अपने रास्ते जाओ। सूरिजी ने कहा कि मैं आपके इस चरित्र को सुनना चाहता हूँ कि आपने इस सुकुमार के लिये यह क्या तजवीज कर रक्खी है ? एक मठपति बोला कि तुम नहीं जानते हो यह जगदम्बा महाकाली है, बारह वर्षों से इसकी महापूजा होती है । बत्तीस लक्षण संयुक्त पुरुष की बलि देकर सम्पूर्ण विश्व की शान्ति की जाती है । इस पर सूरिजी महाराज ने सोचा कि अहो आश्चर्य ! यह कितना अज्ञान ! यह कितना पाखण्ड !! यह कितना दुराचार !!! जहाँ नरबलि दी जा रही है।
२३४ Jain Educatio n ational
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