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________________ वि० पू० ३८६ वर्ष ] । भगवान् पाश्र्वनाथ की परम्परा का इतिहास फहरा दिया था। जब आपने अपनी अन्तिमावस्था जानी,तब चतुर्विधश्रीसंघ के समक्ष मुनि कक्क को श्राचार्य पद पर नियुक्त कर शासन का सब भार उनको सुपुर्द कर आप कई मुनियों को साथ लेकर विहार करते हुये पवित्र सिद्धगिरि की शीतल छायामें शेषायु निर्वृतिमे बिताने लगे । अन्तमें पन्द्रह दिन के अनशन और समाधिपूर्वक श्रावणशुक्ल अष्टमी को नाशवान शरीर को त्याग कर स्वर्गवास किया। उस समय आपके उपासक साधु साध्वी श्रावक श्राविकाओं की उपस्थिति बहुत विशाल संख्या में थी।श्रीसंघ ने श्रापश्री की भक्ति एवं स्मृति के लिये सिद्धगिरि पर एक बड़ा भारी स्तूप बनवाया था। महाराज उत्पलदेव के पांच पुत्र थे-सोमदेव, जगदेव, श्रासलदेव, ब्रह्मदेव और भोजदेव; जिसमें सोमदेव को तो अपना उत्तराधिकारी बनाया, शेष चार पुत्रों को अलग २ भूमि दे दी गई थी और उन्होंने अपने नामों से छोटे २ ग्राम आबाद कर लिये थे, उन ग्रामों के नाम भी अपने २ नाम पर रक्खे थे जैसे जंगालु आसलपुर ब्रह्मसर और भोजपुर । वंशावलियों में इनका परिवार भी विस्तार से लिखा है। राजा उत्पलदेव के पाँचों पुत्र पाँच पाण्डवों की तरह शूरवीर एवं बड़े ही योद्धा थे। उन्होंने अपने अपने राज की अच्छी श्राबादी की थी। परमाईत महाराजा उत्पलदेव राजकार्य अपने पुत्रों को सौंप कर आप जैनधर्म की अराधना एवं आत्मकल्याण में संलग्न हो गया । मंत्री उहद ने भी अपना गृहभार अपने पुत्रों के सुपुर्द कर राजा उत्पलदेव के साथ निर्वृति मार्ग का अनुसरण किया और जैनधर्म के इन दोनों श्राद्य प्रचारकों ने स्वात्मा के साथ अनेक परआत्माओं का कल्याण कर स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर दिया : इधर आचार्य कनकप्रभसूरि मरुधर से श्राबू तक के प्रदेश में विहार कर धर्म का प्रचार बढ़ा रहे थे। वे जब कभी अजैनों को प्रतिबोध कर जैन धर्म में दीक्षित करते थे तो उधर बसने वाले जैनों के शामिल मिला देते थे जो आचार्य स्वयंप्रभसूरि के प्रतिबोधित श्रावक थे । आचार्य कनकप्रभसूरि ने जैसे श्राद्धवर्ग में अभिवृद्धि की थी उसी प्रकार श्रमण संघ में भी खूब वृद्धि की आपके आज्ञावृति हजारों साधु साध्वी चारों ओर विहार कर जैन धर्म का प्रचार और अपना विहारक्षेत्र विशाल बना रहे थे। ___ अन्त में आचार्य कनकप्रभसूरि कोरंटपुर श्रीसंघ के महा महोत्सव पूर्वक अपने योग्य शिष्य सोमप्रभ को अपना उत्तरदायित्व देकर अर्थात् आचार्य बना कर आप श्रीं एक मास का अनशन कर कोरंटपुर में समाधिपूर्वक स्वर्गवास किया। आचार्य सोमप्रभसूरि ... आप महाराजा चन्द्रसेन के ग्यारह पुत्रों में से एक थे आपने अपनी किशोर व्यय में राज साहबी को तिलाजली देकर आचार्थ कनकप्रभसूरि के चरण कमलों में दीक्षा ली थी। आचार्यश्री की श्राप पर बड़ी कृपा थी आप थोड़े समय में सामयिक साहित्य के धुरन्धर विद्वान एवं सर्वगुण सम्पादित कर लिये थे यही कारण था कि सूरिजी ने अपनी अन्तिमावस्था में अपना सर्वाधिकार सोमप्रभ को देकर अपने पट्ट पर सूरिपद से विभूषिम किये थे। । प्राचार्य सोमप्रभसूरि बड़े ही प्रतिभाशाली एवं क्रान्तिकारी आचार्य थे आपश्री भू भ्रमण करते हुए एक समम अपने शिष्य परिवार के साथ चन्द्रावती पधारे आपका शुभागमन सुन कर राजा प्रजा को बड़ा ही हर्ष हुआ क्यों न हो एक राजकुमर दीक्षा लेकर इस प्रकार आचार्य पद प्राप्त कर पुनः नगर में पधारे। Jain EducRoernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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