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आचार्य यक्षदेवसूरि का जीवन ]
(आसवाल संवत् १४
डाला है कि जिसके द्वारा मिथ्या तिमिररूपी-अज्ञान स्वयं नष्ट हो गया और इसकी बदौलत ही हम उन दुराचार से घृणा कर प्रतिज्ञा पूर्वक आप श्रीमानों के समक्ष बचन देते हैं कि मांस, मदिरा, शिकार और व्यभिचार इन चारों ब्यसनों का कमी सेवन नहीं करेंगे इतना ही नहीं परन्तु हमारी संतान भी इन दुर्व्यसनों का कभी स्पर्श तक न करेगी । महाराजकुमार कक्क खड़ा होकर कहने लगा कि मैं तो यहाँ तक कहता हूँ कि मेरी राज. सीमा में कोई भी शख्स किसी भी प्राणी को मारेगा तो जीव के बदले अपने प्राणों का ही दंड देना पड़ेगा।
उपसंहार में प्राचार्य श्री ने फरमाया कि महानुभावो ! मैं आप स नों को एक वार नहीं पर कोटिशः धन्यवाद देता हूँ। मुझे यह विश्वास नहीं था कि चिरकाल से चली आई कुरूड़ियों को आप एक ही साथ में तिलांजखी दे देंगे । परन्तु मोक्षभिलाषी जीवों के लिये ऐसा होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। कारण सच्चे क्षत्रिय शूरवीरों का यह ही धर्म है कि सत्य बात समझ में आ जाने के बाद असत्य अहितकारी कोई भी रूढ़ि हो परन्तु उसको उसी क्षण त्याग देते हैं। आज आप लोगों ने ठीक उसी क्षत्रिय धर्म का यथार्थ पालन कर अपनी शूरवीरता का प्रत्यक्ष परिचय करवा दिया है । अन्त में मैं उम्मेद रखता हूँ कि जिनवाणि-अर्थात् सत्योपदेश श्रवण करने मे आप अपना उत्साह आगे बढ़ाते रहेंगे कि जिसमें आपका कल्याण हो ।
राजा, राजकुमार, मन्त्री और नागरिक लोग आचार्यश्री का महान उपकार मानते हुए सूरिजी को वंदन नमस्कार कर जयध्वनि पूर्वक विसर्जन हुये।
शिवनगर में एक तरफ आचार्य श्री और जैन धर्म की तारीफ हो रही थी तब दूसरी ओर कई एक पाखण्डी लोग गुप्त बातें कर रहे थे कि देखिये इन साधुओं ने लोगों पर कैसा जादू डाला! गडरी परवाहकी तरह एक के पीछे प्रायः सभी लोगों ने मांस मदिरा और शिकार का त्याग कर दिया! अब तो यज्ञ में बलि व पिंडदान मिलाना ही मुश्किल होगा। अगर इस तरह कुछ दिन और चलेगा तो सनातन धर्म का सर्वनाश होना नजीक ही है इस लिए अपने को भी इनके सामने कुछ प्रयत्न करना चाहिये इत्यादि, उन लोगों ने अपने मों में विशेष मोरचाबन्दी करनी शुरू कर दी।
राजा, मन्त्री आदि बुद्धिमान लोग बड़े ही हर्ष के साथ श्रात्मकल्याण के लिए खूब विचार कर रहे थे। तो इतना सब को विश्वास होगया था कि यह महात्मा खासकर निर्लोभी,सदाचारी, परोपकारी, तपस्वी और ज्ञानी जो कि भूखे प्यासे रहने पर भी निःस्वार्थ वृत्ति से अपने पर उपकार किया है । मन्त्रीश्वर ने कहा, महाराज! आपका कहना सर्वथा सत्य है कारण कि अपने लोगों से इनको लेना देना क्या है ? तथापि केवल निःस्वार्थ भाव से इतना परिश्रम उठा कर जनता पर उपकार कर रहे हैं । श्रेष्ठ जनों का वचन है कि जो परमार्थी होते हैं वे ही सांसरिक जीवों पर करुणा दृष्टि से उपकार करते हैं। महाराज कुमार कक्क ने कहा कि यह सब तो ठीक है परन्तु उनके खाने पीने का क्या बन्दोबस्त है ? दरबार ने कहा कि यह तो अपनी बड़ी भारी गलती हुई है ! उसी समय मन्त्रीश्वर को हुक्म दिया कि तुम जाओ और शीघ्र ही सब से पहिले जनके खान-पान का सुन्दर इन्तजाम करो इस पर महाराज कुमार कक्क और मंत्रीश्वर चलकर आचार्य श्री के पास आये और अर्ज करी कि महात्माजो ! आप भोजन अपने हाथ से पकावेंगे या तयार भोजन करने को पधारेंगे ? जैसी अज्ञा हो वैसा इन्तजाम करवा दिया जाय ।
प्रियवर ! आप लोग जैन मुनियों के प्राचार ब्यवहार से अनभिज्ञ हैं । कारण जैन मुनि न तो हाथों
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