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________________ आचार्य यक्षदेवसरि का जीवन ] [ ओसवाल संवत् १४ ___ सूरिजी-जब आपके एक कांटा लगने से यह हाल है तो बिचारे निरपराधी मूक प्राणी जो जंगल की घास पर अपना निर्वाह करते हैं, उनके प्राणों को नष्ट कर डालना अर्थात् मार डालना, इससे क्या उन्हें दुःख न होता होगा । और किसी भव में वह समर्थ होगा तो आपको फांसी नहीं लटका देगा। हे भद्रो ! सब जीव सदा-काल एक ही अवस्था में नहीं रहते हैं, पर कर्मानुसार सबल निर्बल हुआ ही करते हैं । आज आप सबल हैं और वे विचारे पशु निर्बल हैं, पर कभी वे पशु सबल होगये और आप निर्बल हो गये तो वे अपना बदला अवश्य लेंगे। इस बात को सदैव ध्यान में रखना चाहिये । ___ सूरिजी के हितकारी एवं रोचक वचनों ने उन सवारों पर बहुत कुछ प्रभाव डाला और उन लोगों ने भी सूरिजी के शब्दों पर विश्वास कर सूरिजी से प्रार्थना की कि महात्माजी ! यदि आप हमारे नगर में पधारें तो हम आपसे और भी धर्म के विषय कुछ पूछ कर निर्णय करेंगे क्योंकि यहाँ जंगल में कहां तक ठहरें ? इधर दिन भी बहुत चढ़ गया है आप भले तपस्वी हैं पर हमे तो खुद्या लग रही है। सूरिजी-आप का नगर यहां से कितनी दूर है ? दूसरा सवार-महात्माजी ! हमारा शिवनगर यहाँ से दो कोस के फासले पर है । यह शिवनगर के राजा रुद्राट का पुत्र कक्ककुवर है । नगर में पधारने से आपको बहुत लाभ होगा और हम लोगों को भी सुविधा रहेगी, अतः आप कृपा करके हमारे नगर में अवश्य पधारें। सूरिजी-आपने सोचा कि मेरी पहिले से धारणा थी कि यह पुरुष कोई उच्च खानदान का होना चाहिये यह सोलह श्राना सत्य ही निकली । खैर, इन लोगों का इतना आग्रह है तो अपने को तो कहीं न कहीं जाना ही है । सूरिजी बँधी कमर अपने शिष्य मंडल के साथ उन राजकुमारादि सवारों के साथ हो गये। जब मनुष्य का भाग्योदय होता है तब निमित भी ऐसा ही मिल जाता है बस ! उन सवारों के मनमंदिर में सूरिजी के प्रति इतना पूज्यभाव हो आया कि वे सूरिजी के साथ ही साथ पैदल चल कर शिवनगर के पास एक बगीचा था वहाँ आये और सूरिजी के ठहरने के लिये उस बगीचे में सुन्दर व्यवस्था कर अपने मकान पर चले गये राजकुवर कक और साथ के सवार जो मंत्रि पुत्र वगरह थे उन्हों ने जाकर सब हाल राजा रुद्राट को सुना दिये । इस पर राजा ने प्रसन्नता प्रगट की तथा उनकी भी इच्छा महात्माजी के दर्शन कर वार्तालाप करने की हुई। इधर यह समाचार सारे नगर में बिजली की भांति फैल गया कि श्राज एक महात्मा श्राया है, उनके साथ बहुत साधुओं की जमात भी है और उसने राजकुवर शिकार के लिये जाता था, उसकी शिकार बन्द करवा दी है। सुनाजाता है कि वे यहां पर अपने धर्म का प्रचार भी करेगा, इत्यादि । * जैन आचार्योर लखेली जूनी पहावलियों अने प्रशस्तियों मां एवा सेंकड़ों प्रमाणों मले छै के जेमा जैनाच यॊना सिन्ध मां विचरवाना उल्लेख मलै छैः । जूनामाजूनो प्रमाण वि० सं० पूर्व लगभग ४०० वर्षना समयानोछ के जे वखते रस्नप्रभसूरि ना पट्टधर यक्ष देवसूरि सिन्धमा आध्याहता भने सिन्ध में आवतां तेमने घणु कष्ट उठाव पडूयु हतुं मा पक्षदेवसूरिना उपदेशथी कक्कनाम ना एक राजपुत्रे जैन मन्दिरो बन्धमा हता भने पछी दीक्षा लीधी हती। म्हारी सिन्ध-यात्रा पृष्ठ १२ नर्ता मुनि श्री विद्याविजयजी Jain Education International For Private & Personal Use Only ..२१%ary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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