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________________ । १३ । पाले आगये श्रीराणकपुर की यात्राकर कुछ भाई बहनों साध्वीयों के साथ केसरियाजी की यात्रार्थ उदयपुर होते हुए श्री केसरीयाजी की यात्रा की चार पांच दिन ठहरे । पर वहाँ भी प्लेग का उपद्रव था श्रादमी भी नही मिलता था । भण्डारीजी के साथ ईडर के लिये विहार किया मार्ग में एक दिन तो मरणान्त कष्ट हुआ पर क्रमशः अहम्दाबाद पहुँचगये वहाँ भी अच्छा स्वागत संमेलन हुआ। १ मास ठहरकर पन्यास श्री हर्ष मुनिजी म० के साथ खेड़ामातर वड़ोदरा होकर झगड़िया पहुँच गये। उधर से योगिराज श्री भी विहार कर झगड़िये पधार गये-सबका समागम मगड़िया में हुआ । वही सुरत के सेठलोग यात्रार्थ आये थे उन लोगो का आग्रह पूर्वक विनती होने से पन्यासजी गुरुवर्य आदि सब साधुमण्डल सूरत के लिये विहार कर गये । सूरत के श्रीसंघ ने ऐसा संम्मेलन किया कि वह अपूर्व ही था साथमें दुःख इस बात का हुआ कि उसीदिन पन्यासजी का अकस्मात स्वर्गवास हो गया इसके लिये का अफवाएं भी उठती रही। ___12-सं० १९७५ का चातुर्मास सुरत गुरुवर्य के सेवा में हुआ वहाँ भी व्याख्यान में आपनी ने श्री भगवती सूत्र बाँचा वही कई ईर्षालु साधुओंने यह सवाल उठाया कि दुढ़िया साधु को बड़ी दीक्षा किसने दी आपको योगोद्वहन किसने करवाया इत्यादि परन्तु गुरुवर्य ने ऐसा समाधान कियाकि इसको मैंने बड़ी दीक्षा दी तथा मैंने ही योगोद्वहन करवाया मैं वड़ा का योगो को नहीं मानता हूँ इत्यादि । चातुर्मास के वाद आपने श्री शत्रुब्जय तीर्थ की यात्रा की । गुजरात के साधुओं का प्राधार व्यवहार देख परमात्मा सीमंधर के नाम पर कागद हुन्डी पैठ पर पैठ और मेजरनामा लिखना शुरु किया वह शत्रुब्जय में जाकर पूरा किया । गुजरात के विहार में प्रायः सब साधुओं से मिलाप हुआ यात्राकर चलता हुआ फिर सूरत आये वहाँ पर आचार्य विजय धर्मसूरिजी म० तथा प्राचार्या सागरानन्दसूरी जी पधारे उनके दर्शन मिलाप हुआ। श्री सागरानन्द्रसूरि जी से एक अभव्य के विषय में प्रश्न पूछा पर यथार्थ उत्तर नहीं मिला। 13-सं० १९७६ का चौमासा झगड़िया तीर्थ में हुआ वह निवृत्ति का स्थान था इसलिये संस्कृत का अभ्यास करने का मौका मिला। पर आसपास के बहुत से लोग पर्युषणपर्व आराधने के लिये आये । गुरुवर्य का चातुर्मास ३ साधुओं के साथ सीनोर में हुआ । झगड़िया में सुरत के तथा वम्बई के श्रावक विनंती करने के लिये आये पर ओसियों से पत्र आया कि वोडिंग में केवल ४ लड़के रहगये हैं ज्ञानसुन्द्रजीम० को जल्द भेजें, यद्यपि आपकी इच्छा गुरुमहाराज के साथ रहने की थी पर गुरुमहाराज की आज्ञा से मारवाड़ आनापड़ा ओसियाँ आकर वोडिंग की स्थति सुधारी तथा वड़ाहोलका उपदेश दिया कितने ही समय वहाँ ठहर कर अपने पास की सब पुस्तकों का एक ज्ञान भंडार स्थापन कर उसका नाम श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञानभंडार श्रोसियाँ रख दिया था। 14/15/16-सं० १९७७ सं० १९७८ सं० १९७९ यह तीन चतुर्मास फलोदी ही में हुए इन तीन चतुर्मास में धर्म का अच्छा उद्योत हुआ समवसरणकी रचना जैसलमेर का संघ और ७५००० पुस्तकों का प्रकाशन और भी अनेक भव्यों को ३७ आगम १४ प्रकरणादि सुनने का लाभ हुआ। पर कलिकाल के राज में ऐसा धर्मोद्योत क्यों होगया एक ऐसा विप्लव खड़ा हुआ कि जिससे आपको तीन चतुर्मास लगातार करना पड़ा। इस विषय में कई पुस्तकें भी बन चुकी हैं अतः अधिक नहीं लिखा । 17-सं० १९८० का चतुर्मास लोहावट में हुआ वहाँ भी धर्म का काफी प्रभाव पड़ा । भगवती सूत्र वांचा । १०००) ज्ञान पूजामें आये जैननवयुवक मित्रमण्डल की स्थापना तथा श्री सुखसागर ज्ञान प्रचार सभा की स्थापना हुई ३००००पुस्तकें छपी इत्यादि । "18-सं० १९८१ का चतुर्मास नागोर में हुश्रा यहां भी श्रीभगवतीसूत्र षांचा ५००० पुस्तकें थी .org Jain Education
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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