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[ १४ ] श्री वीरमण्डल संस्था और समवरसण की रचना का अपूर्व महोत्सव मनाया गया। बाद चातुर्मास के कुचेरे पधारे वहां जैन पाठशाला तथा मित्रमण्डल की स्थापना करवाई वहां से खजवाने पधारे एक जैन पाठशाला
और मित्रमण्डल की स्थापना हुई । एवं महावीरजयंति बड़े समारोह के साथ मनाई गई। वहां से रुण पधारे वहीं भी ज्ञान प्रकाश मित्रमण्डल की स्थापना हुई। वहीं से फलौदी गये तथा मारवाड़ तीर्थ प्रबन्ध कारिणी सभा की स्थापना करवा कर मारवाड़ के तमाम मन्दिरों की सार संभार की।
19-सं० १९८२ में मेडतारोड़ फलोदी में चातुर्मास किया वहाँ जैन जाति निर्णय एवं जैन जाति महोदय नाम की पुस्तकें लिखीं। वहाँ के मन्दिरों में दिगम्बरों का प्रवेश था वह साफ करवाया इत्यादि। वहाँ अजमेर जाकर वीगत् ८४ वर्ष का शिलालेख देखना था वह देखा वहाँ से विहार कर पीसागण जेठाणे गये । वापिस वे पीसांगण आये वहां कई जाति सुधार हुए बाद कालु बलुदा जैतारण में व्याख्यान देते हुए वीलाड़े गये । वहां स्था० साधु शिरेमलजी के साथ शास्त्रार्थ कर श्रीनथमलजी संघी को प्रबोध कर वासक्षेप देकर पुनः जैन बनाया वहां से कापरडा तीर्थ की यात्रा कर पीपाड़ पधारे।
20-सं१९८३ का चातुर्मास पीपाड़ में किया वहां भी व्याख्यान में श्रीभगवती सूत्र ब्राचा । धर्म की बहुत अच्छी जागृत हुई। जैन मित्रमण्डल जैन लायब्रेरी जैन श्वेताम्बर सभा इत्यादि संस्थाए स्थापित करवाई । वहां से विहार कर कापरड़ा की यात्रा की वहां से वीलाड़ा आये । वहां स्थानकवासी साधु गंभीरमलजी को सं० १९८३ का चैत्रवद ३ को बड़े ही समारोह के साथ दीक्षा देकर उनका नाम गुणसुन्दरजी रखा बाद पुनः पीपाड़ पाये और वगड़ी की प्रतिष्ठा समारोह के साथ करवाकर वहाँ से सोजत पाये ।
21-सं० १९८४ कर चतुर्मास वीलाड़ा में हुआ यहां भी धर्म का अच्छी जागृति हुई । व्याख्यान में श्रीभगवतीसूत्रका वाचन हुआ। जैनपाठशाला मित्र मण्डलनाम की संस्था कायम करवाई। बाद विहार कर पाली आये गोडवाड़ की पन्चतीर्थ कर मेवाड़ (उदयपुर) गये। वहां माह शुद्ध पूनम को प्राचार्य रत्न प्रभसूरिश्वरजी की जयंति मनाकर केसरियाजी की यात्रा की वहां से गोडवाड वापिस आये । वहाँ से लूवाना शिबगंज वाली होकर सादड़ी आगये ।
22-सं० १९८५ का चतुर्मास सादड़ी में ही हुआ । वहाँ भी व्याख्यान में श्रीभगवती सूत्र का वाचन हुआ वहाँ खू डालावाला हजारीमलजी के कारण बड़ा भारी तनाजा पड़ा उसका समाधान करवाया । जैन जाति महोदय के लिये चार हजार रुपया का चन्दा करवाया। चातुर्मास के बाद वहीं से वाली प्राये वहाँ समवसरण की रचना से गोड़वाड़ में जागृति पैदा की हुई । वहाँ भी संघ में कलेश था जिसका समाधान करवाया बाद वहाँ से वरकाणा आये वहीं वगीचा में रह कर समरसिंह का इतिहास लिखा ।
23-सं० १९८६ का चातुर्मास लूनावा में हुआ वहां भी धर्म की खूब जाहोजलाली हुई। पुस्तक प्रकाशन के लिये अच्छा चन्दा हुआ । धर्म की अच्छी जागृति हुई एक कन्याशाला की स्थापना करवाई वहीं से पाली आये वहां भी एक कन्याशाला की स्थापना हुई बाद कापरड़ा आये । वहाँ से नागोर पधारे वहाँ के मन्दिरों के शिखरों की प्रतिष्ठा करवाकर बाद में पाली आये ।
24-सं० १९८७ का चातुर्मास पाली में हुआ। यहां भी धर्म की अच्छी जागृति हुई । विशेष श्रामह कर समवसरण की रचना बड़ी ही मनोरम बनवाई। हाथी आदि समारोह के साथ प्रभु सवारी निकाली आदि बहुत ही अच्छी उन्नति हुई । वहाँ से विहार कर कापरड़ाजी आये वहाँ से जोधपुर पधारे । जोधपुर में कई मन्दिर थे परन्तु ध्वजदण्ड किसी पर नहीं था अतः श्रीगौड़ीपार्श्वनाथ और शान्तिनाथ के मन्दिरों की प्रतिष्ठा करवा कर सब मन्दिरों पर ध्वजदण्ड चढवाया जिसमें श्रीसंघ के पन्द्रह हजार रुपये
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