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________________ वि० पू० ४०० वर्ष ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास २३-श्रोसवालों के याचक-यों तो जितने याचक हैं उनकी याचना पर श्रोसवाल यथाशक्ति देते ही हैं, परन्तु एक संवग जाति ओसवालों के लिये मुकर्रर है और वे सेवग सिवाय ओसवालों के किसी से याचना नहीं करते, फिर भी ओसवालों की कृपा से वे अन्य याचकों की अपेक्षा बढ़-चढ़ के रहते हैं । श्रोसवालों के न्याति-जाति, पंच पंचायती शादी व संघ-सम्बन्धी हरेक काम काज अर्थात् एक घर सम्बन्धी व समुदाय. सम्बन्धी कोई कार्य हो, उनके लिये सेवग लोग हैं, वह श्रोसवालों के हरेक कार्य करने को व टैल-बन्दगी में हाजर रहते हैं और जैनमन्दिर उपासराओं का काजा-कचरा निकालना, बरतन चिरागबत्ती घीस के तय्यार रखना, इत्यादि और उन सेवग जाति के निर्वाह के लिये ओसवालों ने प्रतिदिन प्रत्येक घर से एकेक रोटी देणा, और लग्न-शादी में त्याग या इनाम वगैरह के रुपये देना कि जिससे उन सेवगों का सुखपूर्वक निर्वाह हो जाय और सेवगों ने भी ऐसी प्रतिज्ञा ले रखी है कि हम श्रोसवालों के सिवाय दूसरी ज्ञाति से याचना नहीं करेंगे। २४-श्रोसवालों की सर्व जीवों के प्रति मैत्री की भावना-पर्युषणादि पर्व-दिनों में ओसवाल स्वयं पापकर्म को त्याग करते हैं और दूसरी ज्ञातियों को उपदेश द्वारा व द्रव्य द्वारा उनका पापकार्य छुड़ाते हैं इतना नहीं पर इस विषय में बड़े बड़े राजामहाराजा और बादशाहों के चित्त को आकर्षित कर जीव दया व पर्वदिनों में अख्ते पलाने के विषय में पट्टे परवाने सनदें फरमान प्राप्त कर उनका अमल दर अमल देश-प्रदेश में करवा कर बिचारे निरपराधी अबोले जीवों का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। केवल पशुओं के लिये ही नहीं, बल्कि कई दुष्कालों में क्रोडों रूपैये खरच कर अपने देश भाइयों के प्राण भी बचाये हैं यह श्रोसवालों की उदारभावना का परिचय है। २५-श्रोसवालों के गोत्र जातियां-ये हम पहिले लिख पाये हैं कि श्रोसवाल जाति प्रायः क्षत्री वर्ण से ही बनी है। उन क्षत्रियों की अनेक जातियां इसमें शामिल हैं। जब से प्राचार्य रत्नप्रभसूरि ने उन वीर क्षत्रियों को ऐक्यता के सूत्र में संगठित कर महाजन संघ बनाया था, तब तो वे सब महाजन संघी कहलाते थे परन्तु बाद में कई २ कारणों से उनके गौत्र बन गये और ऐसे गौत्रों की आवश्यकता भी रहा करती है । क्योंकि जब गृहस्थों के लग्न शादी का काम पड़ता है तब वे कई गौत्र छोड़ कर शादी करते हैं। मारवाड़ में चार गौत्र १-बाप २-बाप की माता ३-अपनी माता ४ -- अपनी माता की माता इन चार गौत्रों को छोड़ कर शादी की जाती है । अतः गौत्रों की आवश्यकता है । __एक सेवग श्रोसवालों की जातियों की गिनती करने के लिये निकला और जहां पोसवाल बसते थे और उसको मालूम थी वहां घूम २ कर उसने ओसवालों की जातियां एक किताब में लिखनी शुरू कर दी। जब वह जातियां लिखते २ पुनः मकान पर आया तो उसकी औरत ने पूछा कि आपने ओसवालों की कितनी जातियां लिखी हैं? सेवगजी ने जवाब दिया कि मैंने ओसवालों के १४४४ गौत्र लिखे हैं। इस पर उस औरत ने पूछा कि मेरे पीहर में जो ओसवालों का गौत्र है वह भी आपने लिख लिया है न ? उसका क्या नाम है ? डोसी । सेवग ने कहा यह ओसवाल जाति एक समुद्र है, इसका पता मेरे जैसे से नहीं लगता है। 'रह गया एक डोसी तो बहुत सा होसी' अर्थात् यह ओसवालों की एक उत्कृष्ट उन्नति का ही दिन था जिसके आधार पर हमने यह ओसवाल जाति का आदर्श लिखा है। 10 . engin २१२ Jain Educator international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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