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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ]
[वि० पू० ४०० वर्ष
पीसना, गोबर उठाना वगैरह हलके कार्य वह नहीं करती हैं वैसे कार्य उन्होंके घरों में प्रायः मजूर ही किया करते हैं । ओसवालों की स्त्रियाँ प्रायः लिखी पढ़ी होती हैं । हुन्नर उद्योग में वह होशियार होती हैं। सलमासितारा व जरी के कसीदे वग़ैरह आवश्यक्ता माफिक गृहकार्य में वह दूसरों की अपेक्षा वगैर सब कार्य स्वयं कर लेती हैं | जैसे वह गृहकार्य में चतुर होती हैं वैसे धर्मकार्य में भी बड़ी दक्ष हुआ करती हैं। हाँ कई लोग छोटे ग्रामों में रहते हैं वह अन्य लोगों के संसर्ग के कारण पराधीन न रह कर सब कार्य स्वयं कर लेते हैं।
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१९ - सवालों की पोशाक - श्रोसवालों की पोशाक प्रायः मारवाड़ी है । वे श्रेष्ठ कपड़ों के साथ जेवर पहनना अधिक पसन्द करते हैं । मुसाफिरी के समय तलवारादि शस्त्र भी रखा करते हैं । श्रसवालों के घरों में औरतों की पोशाक जितनी सुन्दर व शोभनीय होती है उतनी ही अदबमय है। चाहे ओसवाल लोग विदेश में चले जावें परन्तु उनकी पोशाक तो अपने देश की ही रहेगी, परन्तु जो चिरकाल से विदेशवासी हो गये हैं उन्हों की पोशाक देशानुसार बदल भी गई है, पर वह कभी देश में आते हैं तब तो उनको अपने देश की पोशाकादि धारण करनी पड़ती है
२०- ओसवालों की भाषा - श्रोसवालों की मूल भाषा मारवाड़ी है पर वे प्राय: संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, मराठी, कनाडी, तैलंगी, बंगाली आदि बहुत भाषा-भाषी हुआ करते हैं। यह कहना भी अतिशय युक्ति न होगा कि जितनी भाषाओं का बोध ओसवालों को है उतना शायद ही किसी अन्य ज्ञाति को होगा । श्रीसवालों में उच्च भाषा व उच्च शब्दों का प्रयोग विशेष रूप में होता है । पत्रों की लिखावट में भी ऐसे प्रिय और उच्च शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिससे प्रेम-ऐक्यता का संचार स्वभाव से ही हो जाता है । श्रोसवालों को जैसे भाषा का विशाल ज्ञान है वैसे लिपियों का ज्ञान भी विस्तृत है । वह हरेक लिपि को इशारा मात्र से पढ़ सकते हैं। इसका कारण ओसवालों का व्यापार हरेक देशवासियों के साथ होना ही है । २९- ओसवालों का महत्व - श्रोसवाल ज्ञाति श्रन्यान्य ज्ञातियों से चढ़ बढ़ के होने पर भी अन्य अन्य ज्ञातियों के साथ प्रेम ऐक्यता के साथ उनकी उन्नति में आप सहायक बन मदद करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि ग्राम-सम्बन्धी कोई भी कार्य हो, उसमें आप कितने ही कष्ट व नुकसान उठा लेते हैं, राज दरबार में जाने का काम पड़ने पर आप अपना काम छोड़ वहां जावें, जवाब सवाल करें, पैसा खरच करें, पर ग्रामवासियों तक गरम हवा तक नहीं आने देवे इस परोपकार-वृत्ति से ही दुनिया में श्रोसवालों का मान - महत्व मशहूर है ।
२२ - सवालों के घरों में गौधन का पालन — सवालों के घरों में गौधन का पालन विस्तृत संख्या में होता है। ऐसा शायद ही घर होगा कि जिस घर में गौमाता का पालन न होता हो ? सन्तान वृद्धि और वीरता का मुख्य कारण कहा जाय तो गौ का पालन करना ही है। दूसरी बात यह भी है कि ओसवाल के घरों में गौ का पालन इतनी उत्तमरीति से होता है कि आप कष्ट सहन कर लेने पर भी गौ को तकलीफ नहीं होने देते । इसी कारण से दूसरों से पंच दश रुपये ओसवालों से कम लिये जाते हैं। किसानों को विश्वास है कि ओसवालों के घरों में गौधन बहुत सुखी रहते हैं । उन गौओं का लाभ केवल ओसवालों को ही नहीं, पर दूध दही छाछ वगैरह का बहुत से लोगों को भी लाभ मिलता है, यह उनकी उदारता का परिचय है ।
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