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________________ वि० पू० ४०० वर्षे ] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास १४-श्रोसवालों का पेशा (धंधा )-जिन राजामहाराजाओं को मिथ्याचरण छुड़ा के ओसवाल बनाये गये थे । वह चिरकाल (कई पीढ़ियों ) तक राज हो करते रहे और कितनेक लोगों ने राजकर्मचारी बन राजतंत्र चलाये और कितनेक लोग व्यापार करने लगे उनके लिये यह कहना भी अतिशयोक्तिपूर्ण न होगा कि व्यापार में जितनी हिम्मत महाजनों की है इतनी शायद ही अन्य ज्ञाति की होगी। व्यापार करने का तात्पर्य केवल पैसा पैदा करने का ही नहीं था, किन्तु व्यापार देशोन्नति का एक अंग समझा जाता है। जिस देश में व्यापार की उन्नति है वह देश सदैव के लिए सुखी और समृद्धशाली रहता है, इसीलिये देशसेवा में श्रोसवाल अग्रेसर माने जाते हैं और प्रोसवालों ने खेती को भी व्यापार का एक अंग माना है और जो साधारण गाँव में रहते हैं वे ओसवाल व्यापार के साथ खेती भी कराया करते हैं । इसमें उन लोगों ने मुख्य दो बातें समम रक्खी हैं; १-पुरुषार्थी जीवन २-गृह जीवन में सुख शान्ति । यही कारण है कि वे खेती से अपना तमाम खर्चा निकाल सकते हैं। इतना ही क्यों पर वे अनेक गौ आदि का रक्षण भी करते हैं, जिससे अपने शरीर का स्वास्थ्य भी अच्छा रहे । दूसरे व्यापार में जो द्रव्य पैदा करते हैं वह धर्मकार्य में खुशी से लगा देते हैं। १५-ओसवालों की बोहरगत-श्रोपवाल लोग बहुत धनाढ्य थे। वे राजा महाराजा ठाकुरों जमीनदारों और किसान लोगों को द्रव्य कर्ज में दिया करते हैं । इसमें स्वार्थ के साथ देशसेवा भी रही हुई है कारण देश आबादी का अाधार किसानों पर है किसानों को जैसे जैसे साधन सामग्री अधिक मिलती है वैसे वैसे पैदावारी अधिक करते हैं। जिस देश में खाद्यपदार्थादि की अधिक पैदावारी है, वहां राजा प्रजा सब सुखी और उन्नत रहते हैं। १६-ओसवालों के व्यापारक्षेत्र की विशालता-भारतीय देशों के सिवाय सामुद्रिक जहाजों द्वारा अन्य देशों में भी ओसवाल व्यापारियों का व्यापार था, ज्ञाति भाइयों के सिवाय अपने देश-भाइयों को भी व्यापार में उन्नत बनाने की कोशिश करते हैं जो लोग देश में व्यापार करते हैं वह भी बड़े ही थोकबन्द व्यापार करते हैं कि एक बड़े व्यापारी के पीछे सैकड़ों लोग अपना गुजारा अच्छी तरह से कर सकें। ओसवालों को कुलदेवी का वरदान है कि वह व्यापार में बहुत द्रव्य पैदा करे। "उपकेश बहुलं द्रव्यं"। ओसवाल जैसे न्यायपूर्वक द्रव्योपार्जन करते हैं वैसे ही वह शुभ कार्यों में भी लाखों क्रोडों द्रव्य खरच के अपने जीवन को सफल बनाते हैं। १७-ओसवालों के ब्याह लग्न-जो राजपूतों से ओसवाल बनाये गये थे उनकी लग्न-शादी कितनेक अरसे तक तो राजपूतों के साथ ही होती रही। बाद ओसवाल ज्ञाति का एक बड़ा भारी जत्था बन गया, तब से उनकी लग्न शादी जैनधर्भ पालने वाली ज्ञातियों में होने लगी, अतः श्रोसवालों का लग्नक्षेत्र विशाल था। और इस ज्ञाति के पूर्वजों ने ऐसे उत्तम रीतरिवाज बाँध रखे हैं कि जिसमें धनाढ्य और साधारण एवं सब का निर्वाह अच्छी तरह से होता रहे। इस ज्ञाति में धर्म-विवाह बड़ी इज्जत के साथ होते हैं । कन्या का पैसा लेना तो दूर रहा पर कन्या के वर के वहाँ का पानी पीना भी पाप समझते हैं। इसी कारण से इस ज्ञाति की बड़ी भारी इज्जत मानी जाती है और विस्तार से फली-फूली है। १८-ओसवालों की गृहदेवियां-ओसवालों के घरों में महिलाओं की बड़ी भारी इज्जत मान-मर्यादा काण-कायदा है । बाहर जाने के समय दो चार इतर जाति की औरतें साथ रहती हैं पानी भरना, अनाज Jain Edm onternational For Private & Personal Use Only wow.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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