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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता] [वि० पू० ४०० वर्ष ९-ओसवालों का सम्मेलन-दीर्घदर्शी श्रोसवालों ने अपने सम्मेलन के लिये प्रत्येक प्रान्त में एकेक तीर्थों पर ऐसे मेले मुकर्रर कर दिये हैं कि वर्ष भर में एक दो सम्मेलन तो सहज ही में हो जाता है। वे भगवान की भक्ति के साथ अपने न्याति जाति सामाजिक और धार्मिक विषय में किसी प्रकार के नये नियम बनाना और पुराणे नियमों का संशोधन करना, खराब रूढियों को निकालना सदाचार का प्रचार करना इत्यादि समयानुसार कार्य कर सकते हैं कारण वहां सब प्रान्त के लोग एकत्र होने से न तो किसी के घर पर वह कार्य होता है न किसी को बुलाने के लिये खरचा उठाने का जोर पड़ता है और धर्मस्थान पर प्रेम एक्यता से किये हुय कार्य को चलाने में कोशिश भी नहीं करनी पड़ती है। १०-ओसवालों का आचार व्यवहार-जुवा, चोरी, शिकार, मांस, मदिरा, वैश्या, परनारी एवं सात कु-यसन और विश्वासघात धोखेबाजी, राजद्रोह, देशद्रोह, समाजद्रोह आदि लोक निंदनीय कार्य सर्वथा त्याज्य हैं और वासीअन्न ( भोजन ) द्विदल, बावीशअभक्ष, अनछाना पाणी, रात्रीभोजन, श्रादि २ जीवहिंसा का कारण और शरीर में बीमारी बढ़ाने वाले पदार्थ ओसवालों के लिये सर्वथा अभक्ष हैं। सुवा सुतकवाले घरों में अन्नजल नहीं लेना ऋतु-धम्म चार दिन बराबर टालना सदैव स्नान मज्जन से शरीर व वस्त्रशुद्धि कर पूजा पाठ आदि अपना इष्ट स्मरण करने के बाद स्त्री व पुरुष अपने गृह कार्य में प्रवृतमान होते हैं इतना ही नहीं पर यज्ञोपवीत लेना भी प्रोसवालों का कर्तव्य है ओसवाल लोग सदैव थोड़ा बहुत पुन्य अपने घरों से निकालते हैं जैसे अभ्यागतों को अन्नजल, गायों को घास, कुत्तों को रोटी, भिक्षुकों को भोजन यह ओसवालों की दिनचर्या है। ११-श्रोसवालों की वीरता-भारतीय अन्योन्य ज्ञातियों से श्रोसवालों की वीरता चढ़बढ़ के है। कारण यह ज्ञाति मूल गजपूतों से बनी है श्रोसवालों में ऐसे ऐसे शूरवीर हुये हैं कि सेंकड़ों जगह संग्राम में प्रतिपक्षी व अन्यायीओं को पराजय कर अपनी विजय पताका भूमण्डल में फहराते हुए देश का रक्षण किया जिनवीरों की वीरता का उज्ज्वल जीवन इतिहास के पृष्ठों पर आज भी सुवर्ण अक्षरों से अंकित है । १२-ओसवालों का पदाधिकार-दीवान, मंत्री, महामंत्री, सेनापति, हाकिम, तहसीलदार, जजजगतसेठ, नगरसेठ, पंच, चौधरी, पटवारी, कामदार, खजानची, कोठारी, बोहराजी, आदि ओसवालों को अपनी योग्यता पर पदाधिकार मिला एवं मिल जाता है तदनुसार वे जहाँ तहाँ नागरिकों का भला भी किया करते हैं और नागरिकों की तरफ से ही नहीं पर राजा महाराजाओं की तरफ से बड़ा भारी मान मरतबा भी मिलता है यह कहना भी अतिशयोक्ति न होगा कि उस समय राजदरबार में ओसवाल चाहत वह हो जनता का भला कर गुजरते थे । अर्थात इस पदाधिकार के जरिये ओसवालों ने दुनिया का बहुत भला किया देश और राजाओं की कीमती सेवा करके अच्छी तरक्की दी थी। १३-ओसवालों की मानमर्यादा-रीतिरिवाज इज्जत वगैरह अन्योन्य ज्ञातियों से खूब चढ़बढ़ के हैं कारण ओसवालों की शौर्यता वोरता, धैर्यता, गंभीर्यता, नीतिकुशलता, रणकुशलता, सन्धिकुशलता, साम, दाम, दंड, भेद प्रतिज्ञापालन, देशसेवा, राजपेवा समाजसेवा, धर्मसेवा और चतुर्यादि अनेक सदगुणों से आकर्षित हो राजा और प्रजा ओसवाल लोगों को इज्जत आदर सत्कार-मानमहत्व देना अपना खास कर्त्तव्य समझते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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