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________________ वि० पू०४०० वर्ष] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास ४-श्रोसवालों का धर्म-श्रोसवालों का धर्म जैनधर्म है । बचपन से ही वे अपने लड़कों को ऐसी शिक्षा देते हैं कि जिससे उनके संस्कार जैन धर्म पर दृढ़ जम जाते हैं वे लोग अपने जैन मन्दिर मूर्तियों की त्रिकाल प्रार्थना, पूजा, पाठ, सेवा, भक्ति, उपासना करना अपना धर्म समझते हैं और जैनमुनियों की सेवा, उपासना व व्याख्यानादि उपदेश श्रवण कर आत्मज्ञान, अध्यात्मज्ञान, तत्वज्ञान और ऐतिहासिक ज्ञान प्राप्त करते हैं और अपने सत्यज्ञान द्वारा अन्य लोगों को ही नहीं, पर गजा महाराजाओं के चित्त को इस पवित्र जैन धर्म की ओर आकर्षित करना अपना परम कर्त्तव्य समझते हैं । ५-ओसवालों के धर्म-कार्य-जैन मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्टा करवानी, पुराणे मन्दिरों का जीणोंद्धार करवाना, जैन तीर्थों की यात्रा के लिये बड़े बड़े संघ निकालना, स्वामिवात्सल्य करना, अर्थात् स्वधर्मी भाईयों को हर प्रकार से मदद करना, शासन की प्रभावना अर्थात् किसी प्रकार से अपने धर्म का प्रभाव जनता पर डालना, स्थान स्थान पर ज्ञान-भण्डारों की स्थापना करना, अहिंसा परमोधर्मः का प्रचार विश्वव्यापि कर देना इत्यादि धर्मकार्य एवं परोपकार करना ओसवाल अपना परम कर्त्तव्य समझते हैं। ६-ओसवालों की परोपकारिता -दानशाला (शत्रुकार), अनाथालय, औषधालय, विद्यालय, मुसाफिरखाना. कुंवे, तालाब, बावड़ियां, सदाव्रत, पानी की प्याऊ, दुष्कालादि में अन्नदानादि से दीन दुःखियों का उद्धार करना, गौशाला पांजरापोलादि अनेक सुकृत कार्य कर देशवासी भाइयों की सेवा में हजारों लाखों क्रोड़ों द्रव्य खरच करना ओसवाल लोग अपना परम कर्तव्य समझते हैं ।। ७-ओसवालों की पंचायतियों- ओसवालों के न्याति जाति पंचायतियों का संगठन इतना उत्तम रीति से रचा गया है कि ग्राम में झगड़ा-टंटा-फिसाद व लेन-देन सम्बन्धी किसी प्रकार से वैमनस्य हो जाय तो उनको अदालतों का मुंह देखने की आवश्यकता नहीं रहती है, कारण भोसवाल पंच उन वादी प्रति वादियों को इस उत्तम रीति से घर के घर में समझा देते हैं कि फिर अपील तक का अवकाश ही नहीं रहता है। इतना ही नहीं पर ओसवाल पंच प्राम-सम्बन्धी अनेक कार्य करने में अपना समय व द्रव्य खरच कर स्वयं कष्ट उठा लेते हैं। पर ग्राम वालों को गरम हवा तक नहीं पहुँचने देते हैं. इसलिये ही पंच परमेश्वर और मां-बाप कहलाते हैं। ८-ओसवालों के पर्व दिन-कार्तिकवद १५ महावीर-निर्वाण, कार्तिक शुक्ला १ गौतम-केवल महोत्सव, शुक्ला ५ ज्ञान पंचमी पूजा, शुद ८ से १५ तक अठाई महोत्सव; मार्गशीर्ष शुद ११ मौन-एकादशी, पोष वद १० पार्श्वनाथ जन्म-कल्याणक, माघ वद १२ मेस्त्रयोदशी, फाल्गुन शुद ८ से १५ तक फाल्गुन अठाइ महोत्सव, चैत्र शुद ७ से पूर्णिमा तक आंबिल तपश्चर्या के साथ अठाई महोत्सव, वैशाख में अक्षय तृतीया, ज्येष्ठ मास में शान्तिनाथकल्याणक, आषाढ़ मास शुद ८ से पुनम तक अठाई महोत्सव, श्रावण शुद्ध ५ को नेमिनाथ भगवान का जन्मदिन, भाद्रपद में पर्वाधिराज पर्युषण पर्व ८ दिन महोत्सव, आश्विन मास में श्रांबिल की तपश्चर्या के साथ अठा महोत्सव । इनके सिवाय जिनल्याणक तिथि, प्रतिष्ठा दिन श्रादि जैनों में पर्व माना गया है। इन पवित्र दिनों में धर्म-कृत्य विशेष किया जाता है, पाप कर्म का त्याग कर आत्मभाव में रमणता करना ओसवाल लोग अपना कर्तव्य समझते हैं। Jain Edoenternational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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