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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ]
[वि० पू० ४०० वर्षे
का आग्रह करने वालों से हम प्रश्न करते हैं कि अपने जिन पूर्वजों को आप मानते हैं, क्या उन सब के शिलालेख ही क्यों पर नाम को भी आप जानते हैं ? संभवतः २-४ पीढ़ी से पूर्व के कोई ऐतिहासिक साधन नहीं होंगे ? इस प्रश्न के उत्तर में या तो आपको अपने पूर्वजों को मानने से इन्कार करना होगा या हमारी हीपद्धति का अनुकरण करना पड़ेगा । अतएव दुराग्रह मात्र से वस्तुतत्व की सिद्धि में गति नहीं हो सकती।
सुज्ञ पाठक ! उपरोक्त समाधानों से यह स्पष्ट रूपेण विदित हो गया होगा कि जैनसाहित्य में एवं अन्य प्रन्थों में कहीं भी प्रोसवाल वंशोत्पत्ति का समय आठवीं, नवमी दशवी अथवा ग्यारहवी शताब्दि नहीं बताया गया है किन्तु इसके विरुद्ध विक्रम पूर्व ४०० वर्ष में महाजनसंघ; उपकेशवंश,-पोसवालों की उत्पत्ति सिद्ध करने वाले अनेक प्रमाण मिलते हैं और भविष्य में ज्यों ज्यों अधिक शोध होगी त्यों २ अनेक प्रमाण उपलब्ध भी होंगे। जितने प्रमाण हमें मिले हैं वे इसी ग्रंथ में मुद्रित करवा दिये हैं जिससे स्पष्ट सिद्ध हो चुका है कि वि० सं० पू०४०० वर्ष में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा उपकेशपुर में क्षत्रिय वर्ण से ओसवाल जाति बनी है अतः उन परमोपकारी आचार्यदेव का जितना उपकार हम माने उतना ही थोड़ा है यदि उन महापुरुषों का उपकार भूल कर हम कृघ्नी बन जाय तो हमारे जैसा पापी इस संसार में कौन हो सकता है? देखिये पं० वीरविजयजी महाराज ने बारहव्रत की पूजा में क्या फरमाया है कि
" मांसाहारी मातगी बोले । भानु प्रश्न घरयोरे । मो० ।
जूठानर पग भूमिशोधन । जल छटकाव करयोरे । मा० । जिस चांडालनी के शिर पर भ्रष्टा की ओड़ी और हाथ में मांस की बोंटी है पर वह भूमि को जल छटकाव से शुद्ध करती जा रही थी इसको देख किसी भानु ने उसको प्रश्न पूछा जिसके उत्तर में चांडालनी (भंगण) ने कहा कि यदि इस भूमि पर झूठा बोला कृघ्नी लोग निकला हो तो मैं भूमि को शुद्ध कर पैर रखती हूँ। क्योंकि झठा बोला कृतघ्नी बड़े भारी पापी होते हैं उसके परमाणु इतते खराब होते हैं कि जिस भूमि पर पैर रखने से वह भूमि अपवित्र हो जाती है कि उस पर कोई दूसरा पुरुष चले तो वे परमाणु उसके लगने से उसकी चित्तवृत्ति मलीन हो जाती है । अतः मैं भूमि को शुद्ध करके पैर रखती हूँ।
पाठकों मूंठ बोलना और किया हुआ उपकार को भूल कर कृतघ्नी बन जाने का कैसा जबर पाप है अतः उपकारी पुरुषों का उपकार मान कर कृतज्ञ बनो यही मेरी हार्दिक भावना है।
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