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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ] [ वि० पू० ४०० वर्ष उपकेश शब्द का अपभ्रंश है। प्राचीन कालमें जो जैन धर्मानुयायी उपकेशवंशीय थे वे ही आज ओसवाल नाम से विख्यात हैं। श्रोसवाल शब्द की प्रसिद्धि का प्रारम्भ वि० की ११ वीं शताब्दी के निकट होता है । श्रीमान बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर अपने जैन लेखसंग्रह तृतीयखंड के पृष्ठ २५ पर "ओसवाल ज्ञाति" नामक लेख में लिखते हैं कि :___ "इतना तो निर्विवाद कहा जा सकता है कि "श्रोसवाल" में श्रोस शब्द ही प्रधान है। 'श्रोस' शब्द भी उएश शब्द का रूपान्तर है और उएश शब्द उपकेश (संस्कृत रूप) का प्राकृत रूप है । इसी प्रकार मारवाड़ के अन्तर्गत "ओसियां" नामक स्थान भी उपकेशनगर का ही रूपान्तर है। जैनाचार्य रत्नप्रभसूरि ने वहां के राजपूतों से जीवहिंसा छुड़ा कर उन्हें दीक्षित किया । पश्चात वे राजपूत लोग उपकेश अर्थात् ओसवाल नाम से प्रसिद्ध हुये ।" श्रीमान् बाबूजी का कथन भी ऊपर के प्रमाणों से सर्वथा मिलता है । अतएब यह सिद्ध होता है कि "श्रोसिया" शब्द उपकेश का ही अपभ्रंश है । और इस नगर को बसाने वाले श्रीमालनगर के राजकुमार उत्पलदेव के साथ पॅवार (परमार) शब्द किसी स्थान पर नहीं है । अतएव जिन्हें आज हम श्रोसियां कहते हैं प्राचीन समय में उपकेशनगर था और जिसको आज हम ओसवाल कहते हैं। प्राचीन काल में उन्हीं का मूलनाम उपकेशवंश था । उपरोक्त दोनों बातों का निर्णय करने पर हमें इस सारांश को लक्ष्य में लेना चाहिये किः १-ओसवाल शब्द की प्राचीनता के सम्बन्ध में विक्रम की ११ वीं शताब्दी से पूर्व अन्वेषण करने में अपने समय को व्यर्थ व्यय न करें और न इस विषय की व्यर्थ दलीलों द्वारा दूसरों का समय नष्ट करें । कारण, ओसवाल शब्द मूल नहीं अपितु उपकेश शब्द का अपभ्रंश है । श्रतएव जिन्हें ११ वीं शताब्दी से पूर्व इस जाति की प्राचीनता के प्रमाण हूँढने हों वे "उपकेशवंश" के नाम का प्रमाण दृढ़े; क्योंकि ग्यारहवीं शताब्दी से पूर्व इस ओसवाल जाति का यही नाम प्रचलित था । और एक यह भी बात स्मरण रहे कि उपकेशवंश की प्राचीनता साबित हो जायागी तब ओसवाल जाति की प्राचीनता तो स्वतः सिद्ध हो जायगी; क्योंकि एक ही जाति के समयानुसार दो नाम व्यवहार में पाये हैं। २-दूसरा निष्कर्ष-कि उपकेशपुर बसाने वाले श्रीमाल (भिन्नमाल) नगर के राजकुमार उत्पलदेव और हैं तथा आबू के उत्पलदेव परमार और हैं । दोनों के समय में १४०० वर्ष का अंतर है । अतएव कोई भी व्यक्ति उपकेशपुर बसाने वाले श्रीमाल नगर के राजकुमार उत्पलदेव को परमारवंशीय समझने की भूल न करें । कारण, वे वस्तुतः परमारवंशी नहीं पर सूर्यवंशी थे। केवल दोनों के नाम की सौम्यता होने से कई इतिहासानभिज्ञ मनुष्यों ने एक ही समझने की भूल की है । इसी कारण ये शंकाएँ उत्पन्न हुई हैं; किन्तु भविष्य के लिये ये शंकाएँ निर्मूल हो जायें, इसी निमित्त ही हमारा यह प्रयास है अस्तु ।। ___ अब हम यहाँ यह बतलाना आवश्यक समझते हैं कि आज कल के कई लोग विचार-स्वातंत्र्य के नाम पर ओसवाल जाति की उत्पत्ति के विषय किस प्रकार की शंकाएं करते हैं और वास्तव में वे शंकाएं ठीक हैं या स्वपर का समय शक्ति का व्यर्थ व्यय कराने वाली हैं, देखिये। __ शंका नं० १ -मुनीयत नैणसी की ख्यात में लिखा है कि बाबू के उत्पलदेव परमार ने ओसियां बसाई और इस उल्पलदेव का समय वि० की दशवीं शताब्दी है । यदि ओसवालजाति इसी श्रोसियां से उत्पन्न हुई है तो यह जाति वि० की दशवीं शताब्दी से प्राचीन किसी दशा में नहीं हो सकती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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