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________________ [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास इन्हीं परमार जाति के उत्पलदेव को और हमारे श्रीमालनगर के राजवंश में उत्पन्न हुआ सूर्यवंशी उत्पलदेव को एक ही समझ लेना यह एक अक्षम्य भूल है देखिये । वि ० पू० ४०० वर्ष ] तत्र श्री राजा भीमसेनः तत्पुत्र उत्पलदेव कुमार अपर नाम श्री कुमारः तस्य वान्धवः श्री सुरसुन्दरो युवराजो राज्य भारे धुरन्धरः " || " उपकेशगच्छ पट्टावली” इस उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि श्रीमाल के राजवंश के साथ परमार वंश का कोई सम्बंध नहीं है । वंशावलियों में श्रीमालनगर के राजा भीमसैन को सूर्य्यवंशी कहा है । “तत्र श्रीमालनगरेसूर्यवंशी भीमसेन राजा राज्यं करोति" । अब आगे चल कर देखिये श्रीमालनगर कितना पुराणा है । श्रीमालनगर की प्राचीनता के संबंध में श्रीमालपुराण में लिखा है : [विमल प्रबन्ध श्रीमाले s हं निवत्स्यामि, श्रीमालं दयितं मम । श्रीमाले ये निवत्स्यन्ति, ते भविष्यन्ति मे प्रियाः " || श्रीकारस्थापनापूर्व, श्रीमालेद्वापरान्तरे । श्रीश्रीमाले इतिज्ञाति, तत्स्थाने विहिता श्रिया || श्रीमालमितियन्नाम, रत्नमालमितिस्फुटम् । पुष्पमालंपुनर्भिन्नमालं, युगचतुष्टये ॥ चत्वारि यस्यनामानि, वितन्वन्ति प्रतिष्ठितम् । अहो ! नगरसौन्दर्य, प्रहार्यं त्रिजगत्यपि ॥ I श्रीमाल पु० 'इन्द्र हंस गणि कृत उपदेश कल्पवल्ली" इस प्रकार अनेक प्रन्थों में श्रीमालपुर ( भिन्नमाल ) की प्राचीनता के सम्बन्ध में प्रमाण मिलते हैं । इस नगर की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में यह कथन ठीक है कि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी में भिन्नमाल के शासनकर्त्ता परमार थे । परमार कृष्णराज के दो शिलालेख विक्रम संवत् १९१३ और ११२३ के मिले हैं । इसके पूर्व भिन्नमाल नगर पर किसका राज्य था ? इस विषय में पं० गौरीशंकरजी ओझा ने अपने राजपूताने के इतिहास के पृष्ठ ५६ पर लिखा है कि वि० संवत् ४०० और इसके पूर्व भिन्नमाल पर गुर्जरों का राज्य था । विक्रम की ६ ठीं शताब्दी में हूण तोरमाण पंजाब की ओर से मारवाड़ में आया, उस समय भी भिन्नमाल पर गुर्जरों का ही राज्य था । तोरमाण ने गुर्जरों को पराजित कर दिया श्रतएव वे गुर्जर लाट प्रान्त की ओर चले गये। उन गुर्जर लोग के नामानुसार ही उस प्रान्त का नाम गुर्जर पड़ गया । हूण तोरमाण आया था उस समय मारवाड़ में नागपुर, उपकेशपुर, जावलीपुर, माण्डव्यपुर एवं भिन्नमालादि अनेक प्रसिद्ध नगर थे । इन नगरों में से भिन्नमाल नगर को अधिक पसंद कर हूए तोरमाण ने वहीं पर अपनी राजधानी कायम की। इन प्रकरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय भिन्नमाल नगर अच्छा आबाद नगर होगा । जिस समय तोरमाण ने भिन्नमाल में अपनी राजधानी स्थापित की, उस समय वहां पर जैनाचार्य हरिदत्त एवं देवगुप्त विराजते थे । उन्होंने तोरमाण को जैनधर्म का उपदेश देकर जैनधर्मानुरागी बनाया था । और जैनधर्म का अनुरागी होकर तोरमाण ने भिन्नमालनगर में भगवान् ऋषभदेवजी का मन्दिर बनाया । श्रतएव इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि उस समय भिन्नमालनगर में जैन-धर्मानुयायियों की खूब अच्छी आबादी होगी इत्यादि । ( कुवलयमाला कथा से) माजी के उपरोक्त लेख में यह भी लिखा मिलता है कि वि० सं० ६८५ में भिन्नमालनगर पर Jain Edi? 9 International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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