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________________ वि० पू० ४०० वर्ष] [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास 'ओसवालोत्पत्ति विषयक शंकाओं का समाधान' लेखक-मुनिराज श्रीज्ञानसुन्दरजी प्रकाशकश्रीरत्नप्रभाकर ज्ञाव पुष्पमाला मु? फलौदी ( मारवाड़) कीमत-पठन पाठन, पृष्ट ५४ प्रथमावृति श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमालना १५२ मां प्रन्थांक तरीके प्रगट थयेल ___"आप्रन्थ ओसवाल जातिना इतिहास ने लागती विगतो थी भरपुर छे, उपके शवंश-ओसवालवंशनी विगतो अनेक रीते बोधदायक छे आ जातिना प्रथमस्थापक श्रीरत्नप्रभसूरि जो वि० सं० पूर्व ४०० मा अर्थात् वीरनिर्वाणसस्वत् ७२ मां मरुधरप्रान्तमां अाव्या हता ने उपकेशपुरमा अजैनों ने जैनधर्म मां मेलववानु भागीरथ कार्य क्र्यु हतुं । आ पुस्तक ओसवालवंश नी उत्पत्ति थी लई आधुनिक स्थिति सुधी नी सुन्दर रीते सवाल जवाब नी ढब थी चर्चा करे छे । मुनिराज श्रीज्ञानसुन्दरजीना ऐतिहासिक ज्ञान थी जैनजगत परिचित ज छे श्रा ग्रन्थ तेमना उड ज्ञान नी विशेष खातरी आपे छ । ५-ऊसवंश-उकेशवंश-उपकेशज्ञाति - उमेशज्ञाति के ओसवालज्ञातिना नामे ओलखातो जथो मूल माँ श्रीमालनगर थी छुटो पड़ी ने जुदा जुदा स्थान माँ जाइ बसेला लोकोनो समूह छे । उत्पलदेव नामनो राजाकुँवर अने उहड़नामनो श्रीमाली वाणियो (मन्त्री) अवे पोतपोताना कुटुम्बियो थी दुभाइने श्रीमालनगर छोड़ी चाल्या गया । तेमणे राजपूतानाना मध्य भाग मे रेतीली-रणनी बीच्चे उस (उह) वाली एक जगाने नबु नगर वसाव्यु । नवानगर नुं नाम उस अथवा ओस नगर पाइयु । ज्याँ वधारे वस्ती होय त्याँ केटलाक लोको ने धंधा रोजगार ने माटे मुझावू पडतु होय ते स्वाभाविक छे आवा लोको कोई नवू द्वार खोजताज होय छे । एकाद स्थान नवु वसे छे अने त्यां पोतानो लगवग लागे एवंछे अने एवँ जाणताना साथे तुरतज तेश्रो ते तरफ पयाण करे छे । राजकुँवर उत्पलदेव अने तेमना साथी उहड़ श्रेष्टिले श्रीमालनगर माँ थी पोताना कुटुम्बियों ने तोड़ावी लीधा ते साथे श्रीमालनगर माँ थी घणा लोक नवानगर माँ जाइ वस्या x x x x महावीरस्वामी पछी ७० वर्षे अटले बिक्रम संवत् पहिला ४०० वर्षे रत्नप्रभसूरि श्रे श्रोस नगरना निवासियो ने अने त्यांना राजा उत्पलदेव ने जैनधर्मी बनाया। "मणिलाल बकोरभाई व्यास कृत श्रीमाली वाणिया ना शातिभेद ग्रन्थ पृष्ट ६४" ६-इतिहास-प्रमी मरुधरकेसरी पूज्य मुनिराज श्री श्री १००८ श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज साहिब की पवित्र सेवा में बम्बई-६-८-३७ सादर वन्दना के पश्चात् बड़े ही हर्ष के साथ सेवा में निवेदन किया जाता है कि आपश्री की भेजी हुई 'श्रोसवालोत्पत्ति विषयक शंकाओं का समाधान' नामक पुस्तक मिली,जिसको आद्योपान्त पढ़ने से हमारे चिरकालीन संस्कार जो ओसवालों की उत्पत्ति वि. सं. २२२ में होने के थे वह आज रफूचक्कर हो गये और हमारा इतिहास ६२२ वर्ष पूर्व पहुँच गया है अर्थात् हमारी जाति की उत्पत्ति वि. पू ४०० में हुई थी। आपकी लिखी पुस्तक ने अच्छा प्रभाव डाला है। तदर्थ श्रापको कोटिशः धन्यवाद । सेवा कार्य लिखावें आपका चरण किंकर “नथमल उदयमल' ७-विक्रम सम्वत् प्रारम्भ से ठीक चार सौ वर्ष पूर्व अर्थात आज से करीब चौबीस सौ वर्ष पूर्व जैन समाज के संगठन और वृद्धि के निमित्त श्वेताम्बर आम्नाय के जैनाचार्य श्रीमद् रत्नप्रभसूरिजी महाराज ने १६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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