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वाला नहीं था। नवदीक्षित होने पर भी बीकानेर की विशाल परिषद में आपने करीब १५ दिन व्याख्यान देकर सुयश पैदा किया। वहां से बिहार कर पूज्य श्री के साथ में नागोर पाये वहां सेठजी अमरचन्दजी आये सिद्धाचल का महात्म्य और मूर्ति के विषय मध्यस्थापूर्वक बातें हुई बाद वहां से कुचेरे पधारे। मुनि श्री में वैयावच्च का भी अच्छा गुण था अतः पूज्यश्री ने आपको 'वानावली' का पद षक्सीस किया । इस समय आप एकान्तर तपस्या भी करते थे । नेत्रों के बीमारी में भी आपको फूलचन्दजी की सेवा में जोधपुर भेज दिया आपने स्वामी जी की सेवा के साथ २ सूत्रों की बाचना भी ली।
3-सं० १९६६ का चातुर्मास आपने जोधपुर में फलचन्दजी महाराज की सेवा में किया वहां आपने एक साधु के बदले में धोवण पानी पीकर मासक्षमण की तपस्या की थी वाद चातुर्मास के विहार कर सष पाली गये। वहां से पूज्यश्री का हुक्म आने पर मेवाड़ में जाने को साधु छगनमलजी के साथ विहार किया पर सीयाट में आपके नेत्रों में बीमारी हो गई इस पर भी छगनलालजी ने मुनिजी को बीमार अवस्था में छोड़ कर पुनः पाली चले गये यह तो मुनियों की दया है। खैर आपने तीन उपवास बिना पानी के किया जिससे आंखों की बीमारी स्वयं चली गई । वहां से आप कालू पधारे वहां पर स्वामी केवलचन्दजी जो पूज्य धर्मदासजी के समुदाय में थे उनसे मिले और उनके अत्याग्रह से वहां ठहर कर उनके साधु सावियों को भागमों की वाचनादी तथा कई एकों को थोकड़े भी सिखलाए ।
4- वि० सं० १९६७ का चातुर्मास काल में आपने अकेले ही कर दिया वहां देशी साधु केसरीमलजी तथा उदयचन्दनी का भी चातुर्मास था। वहीं के संघ ने यह ठहराव किया कि सुबह का व्याख्यान केसरीमलजी आर दोपहर का व्याख्यान गयवरचन्दजी यांचे पर केसरीमलजी ने कुछ दिनों के बाद उस ठहराव का भंग कर दोनों बार ( सुबहशाम ) व्याख्यान वाचना शुरू कर दिया तब आपने नवयुवकों के अत्याग्रह से तीन वार व्याख्यान शुरू कर दिया। वहां आपके नेत्रों में तकलीफ हो गई बस आप श्री ने अष्टमतप कर दिया और भी तपस्या चलती ही रहती थी । वहां दिगम्बर भट्टारक और तेरापन्थियों का भी चातुर्मास था। इसलिये परस्पर कुछ चर्चा भी चली जिसमें आपने विजय प्राप्त किया। उस समय पूष्यजी का चातुर्मास ब्यावर में ही था वहीं के वर्तमान श्राप सुनते ही थे । चातुर्मास उतरते ही आपको पूज्य महाराज ने अपने पास बुलवा लिया और बीकानेर चातुर्मास करने की अनुमति प्रदान की।
5-सं० १९६८ का चातुर्मास मुनि शोभालालजी के साथ बीकानेर में हुआ वहां पर श्री भगवती: सूत्र आदि ७ सूत्र की बाचनाली १२५ थोकड़ा कंठस्थ किया दो मास तक व्याख्यान भी वांचा अनेक श्रावकों को भी बहुत थोकड़ा कंठस्थ करवाये । बाद चातुर्मास के ब्यावर आये वहां आने पर एक भावक ने प्रश्न किया कि आप सूत्रों का अर्थ किस आधार पर करते हैं १ मुनिजी ने उत्तर दिया कि हम सूत्रों का अर्थ गुर्जर भाषा के टब्बा से करते हैं।
श्रावक-टबा किस आधार से बना है ? मुनि-टीका के आधार पर बना होगा । श्रावक-आप टीका मानते हो? मुनि-नहीं हम संवेगी थोड़े ही हैं कि टीका माने ।
श्रावक-इस बात को पाप जरा दीर्घ दृष्टि से विचारना। इतना कहकर वह भावक तो चला गया मिली ने अपने दिल से विचार किया कि जैसे समुद्र से एक घड़ा पानी का भर के लाया। तो यह कसे
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