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वि० पू० ४०० वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
९-दूघड़ों की वंशावली में लिखा है कि दूधड़ समरथ कांना ने रत्नपुर में श्रीमहावीरका विशाल मंदिर बनाया था जैसे
वि० सं० २४७ माघशुद्धि ५ उकेशवंशे दूघड़गोत्र शा० समरथ काना केन निज मात कुमारदेवी श्रेयार्थ श्रीमहावीर बिंब करापितं प्र० श्री उपकेशगच्छे कक्क सूरिभिः ।
वि० सं० २१९ जेष्ठशुक्ला ७ उपकेशवंशे दूघड़ गोत्र शाह देदा भारमल ने रोहलीग्राम में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा उपकेशगच्छीय श्राचार्य यक्षदेवसूरि से कराई।
१०-गटिया गौत्र का शा० देवराज ने चंदेरी नगरी में सं० ५२१ में श्रीआदिनाथ का मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा सिद्धसूरि ने की तथा अपने शत्रुजयादि तीर्थों का सङ्घ निकाल कर यात्रा की और साधर्मी भाइयों को लेन-पहिरामणी दी। श्रापका पुत्र नगराज और नगराज का पुत्र नरदेव बड़े ही नामी हुये ।।
११-कुमट गौत्रे शा दुर्जनशाल ने वि० सं० ५३९ में आचार्य सिद्धसूरि का पट्ट महोत्सव किया और आपके अध्यक्षत्व में सम्मेतशिखर तीर्थ का सङ्घ निकाल साधर्मी भाइयों को पहिरामणी दी जिसमें एक लक्ष द्रव्य सुकृत कार्यों में व्यय किया। आपके पुत्र बनवीर और बनवीर के पुत्र वस्तुपाल तथा वस्तुपाल का पुत्र चन्दकरण हुआ, इसने वि० सं० ६०४ में भिन्नमाल नगर में भगवान पार्श्वनाथ का मंदिर कराया जिसकी प्रतिष्ठा उपगच्छीय सिद्धसूरि ने करवाई।
१२--श्रादित्यनागगोत्रे चोरड़िया शाखा में वि० सं०५१३ में शा० धरमण माधु सलखणादि ने नागपुर में श्रीपार्श्वनाथ का मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य देवगुप्तसूरि ने करवाई और श्रापके अध्यक्षत्व में श्रीशत्रुजयादि तीर्थों का सङ्घ निकाला, इन शुभ कार्यों में इन वीरों ने पांच लक्ष द्रव्य व्यय किया।
१३--वाप्पनागगोत्रे वि० सं० ५८९ में शा० हापु वीरमदेव तोला जागरूपादि ने शत्रुजयादि तीर्थों का सङ्घ निकाला स्वामिवात्सल्य कर साधर्मी भाइयों को मोदक में एक एक सुवर्णमुद्रिका और वस्त्रादि की पहिरामणि दी इस सङ्घ में मुख्य नायक आचार्य कक्कसूरि थे।
१४-चोरडिया जाति से डीडवाना में एक लालाशाह से लालोडिया शाखा निकली । उन लालाशाह ने वि० सं० ६७९ में बड़े भयंकर दुष्काल में मनुष्यों को अन्न और पशुओं को घास देने में अपनी लाखों रुपयों की सम्पत्ति प्रदान कर दी। उस दिन से शाह लाला की संतान 'लालोडिया' नामक शाखा से प्रसिद्ध हुई । लालाशाह के तीसरी पुस्त में जघडूशाह बड़ा ही नामी उदार पुरुष हुआ।
१५--तप्तभट ( तातेड़ )-वि० सं० ५११ नागपुर में शाह रघुवीर हरचंद ने आचार्यदेवगुप्तसूरि के उपदेश से शत्रुजयादि तीथों का सङ्घ निकाला जिसमें सवालक्ष द्रव्य व्यय किया। साधर्मी भाइयों को सोने मोहरों की पहिरामणी दी और तीन बड़े यज्ञ भी किये तथा प्राचार्यश्री को नागपुर में चतुर्मास करवा कर अपनी ओर से महा महोत्सव पूर्वक श्री भगवती सूत्र बंचा कर श्री सङ्घ को महाप्रभाविक आगम सुनाया। जिसमें आपने कई लक्ष द्रव्य व्यय किया।
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