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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ] [वि० पू० ४०० वर्ष महाजनसंघ उपकेशवश और प्रोसवाल जाति की प्राचीनता के विषय वंशावलियों के कतिपय प्रमाणा १-विक्रमपूर्व ९७ वर्ष के समय में जिन १८ गोत्रों का उल्लेख मिलता है उसी १८ गोत्रों की वंशावलियों में प्रत्येक गोत्रों के स्थापक वीरात् ७० वर्षे प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का ही नाम बतलाया जाता है । शायद इसका यह कारण हो कि महाजन सङ्घ के आदि संस्थापक आचार्य रत्नप्रभसूरि थे अतः उन परमोपकारी प्राचार्यश्री की स्मृति के लिये सर्वत्र अर्थात् क्या उपकेशवंश के अठारह गोत्रों के और क्या ओसवाल जाति के आदि पुरुष रत्नप्रभसूरि ही को बतलाया गया हो तो यह यथार्थ ही है क्योंकि उपकेशवंश अठारह गोत्र और ओसवाल जाति यह कोई अलग अलग नहीं है पर ये सबके सब उस महाजनस के रूपांतर नाम एवं उसकी शाखा प्रतिशाखा रूप हैं अतः उनके आदि में रत्नप्रभसूरि का नाम लेना या लिखना यह उनका कृतज्ञपना ही है। अब थोड़े से प्रमाण वंशावलियों के बतला देते हैं कि श्रोसवाल जाति कितनी प्राचीन है ? १-उपकेशपुर में श्रेष्ठिगोत्रीय राव जगदेव ने वि० सं० ११९ में चंद्रप्रभ का मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा प्राचार्य यक्षदेवसूरि ने की। २-खतरीपुर में तप्तभट्ट गोत्रीय शाह नोढ़ा जैतल ने वि० सं० १२२ में श्री शत्रुजय का विराट् सङ्घ निकाला जिसमें आचार्य यक्षदेव आदि बहुत से साधु साध्वी थे।। ३-वजयपट्टन में वाप्पनाग गोत्रीय मंत्री सज्जन ने वि० सं० ११९ में भगवान महावीर का मंदिर बनाया जिसकी प्र० यक्षदेवसूरि ने की । जिसमें मंत्रीश्वर ने सवालाख रुपपे खर्च किये । ४-धेनपुर में भाद्रगोत्रीय मंत्री मेहकरण ने वि० सं० ३०९ में आचार्य रत्नप्रभसूरि की अध्यक्षता में तीर्थों की यात्रा के लिये एक बड़ा भारी सङ्घ निकाला जिसमें एक लाख यात्रियों की संख्या थी। ५-उपवेशपुर में श्रीष्टिगोत्रीय राव जल्हणदेव ने वि० सं० २०८ में आचार्य रत्नप्रभसूरि के उपदेश से महावीर मंदिर में अठाई महोत्सव किया। जिसमें संघ को आमंत्रण कर एकत्र किया, सात दिन तक स्वामी वात्सल्य और एक दिन नगर सहरनी की और आये हुये स्वधर्मी भाइयों को पहरामणि में वस्त्र वगैरह के साथ एक एक सोना मोहर भी दी, इस सुअवसर पर प्राचार्य अपने विद्वान शिष्यों में से पांचों को पंडित पद, १२ को वाचनाचार्य पद ४ को उपाध्याय पद प्रदान किया। ६-भिन्नमाज नगर में सुचंति गोत्रीय शाह पेथड़ हरराज ने वि० सं० ३५८ में प्राचार्य श्री देवगुप्तसूरि के उपदेश से भगवान ऋषभदेव का मन्दिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा देवगुप्तसूरि ने की। ७-मांडव्यपुर में कुलभद्रा गोत्रीय शाह नाथा खेमा ने आचार्य सिद्धसूरि के उपदेश से देवाधिदेव ऋषभनाथ के मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया जिसकी प्रतिष्ठा वि० सं० ३७७ में प्राचार्य सिद्धसूरि द्वारा करवाई। ८-सालणपुर में श्रष्टि गोत्रीय मंत्री उहड़ ने महावीर का मंदिर बनाया जिसकी प्रतिष्ठा ३९३ में आचार्य सिद्धसूरि ने करवाई। १५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.janelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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