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वि० पू० ४०० वर्ष]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
श्रावके गंधहस्तीजीए करेला विवरणो सहित ते सगला सूत्रो ताड़पत्र आदिक पर लिखावी ने स्वाध्याय करवा माटे निग्रन्थों ने समरपन करिया ए रीते श्री जिनशासन नी प्रभावना करीने श्रीआर्यस्कंदिल स्थविर विक्रमअर्कना वे सो वे मां वर्ष मां मथुरा नगरी मां अनशन करीने स्वर्गे गया"।
___ आंचलच्छ पटावली पृष्ट १६ श्रीमान् चन्दनमलजी नागोरी ने ता० २०-११-१९२५ के जैनपत्र जो भावनगर से प्रकाशित होता है उस में वि० सं० २०९ में आदित्यनाग गोत्रीय श्रीमान् साशाह के श्रीश@जय तीर्थ की यात्रा निमित्त निकाले हुये संघ के विषय में एक विस्तृत लेख लिखा है, इससे हमारी उपरोक्त हेमवंतपट्टावली की बात
और भी पुष्ट हो जाती है। ____ श्रीमान् मनोहरसिंहजी डांगी ने 'श्रोसवाल सुधारक' नामक अखबार के ता० २०-६-३६ के अंक में प्रस्तुत 'भैंसाशाह के संघ का वर्णन' वाला लेख निकाला है। डांगीजी ने भैंसाशाह का आदित्यनाग गोत्र और इसकी चोरडिया शाखा तथा वि० सं० ११०८ में चौरडियों से गदइया शाखा निकली लिखी है पर इसकी उत्पत्ति के विषय में भूल भी की है।
वि० सं० २०२ में श्रादित्यनाग गोत्र से चोरडिया जाति का नाम-संस्करण हुआ, यह उल्लेख वंशावलियों में मिलता है, अतः वि० सं० २०९ में भैंसाशाह ने तीर्थाधिराज श्रीशधुंजय का विराटसंघ निकाला हो तो यह संभव हो सकता है।
__ ओसवालों की उत्पत्ति का समय वि० सं० २२२ का जनप्रवाद सर्वत्र प्रसिद्ध है। आप किसी भी ओसवाल को पूछेगे तो वह फौरन जवाब देगा कि ओसवालों की उत्पत्ति बीयेबावीस में हुई, कई कुलगुरुओं की वंशावलियों में भी बीयेबावीस तथा भाटों की विरुदावलियों में भी ओसवालोत्पति का समय बीयेबावीस का ही लिखा मिलता है और इस विषय के कई कवित्त भी मिलते हैं। आभा नगरी थी आव्यो, जग्गो जग में भाण । साचल परचो जब दीयो, जब शीश चड़ाई आण।। जुग जीमाड्यो जुगत सु, दीधो दान प्रमाण । देशल सुत जग दीपता, ज्यारी दुनिया माने कॉण ॥ चूप धरी चित भूप, सेना लई आगल चाले । अरबपति अपार, खडबपति मिलीया माले ॥ देरासर बहु साथ, खरच सामो कौण भाले। घन गरजे बरसे नहीं, जगो जुग वरसे अकाले ॥ यति सती साथे घणा, राजा राणा बड़ भूप । बोले भाट विरुदावली, चारण कविता चूप ॥ मिलीया सेवग सांमटा, पूरे संख अनूप । जग जस लीनो दान दे यो जग्गो संघपति भूप ॥ दान दियी लख गाय, लखवलि तुरंग तेजाला । सोनो सौ मण सात, सहस मोतियन की माला॥ रूपा तो नहीं पार, सहस करहा कर माला । बीयेबावीस भल जागियो, यो ओसवाल भूपाला ॥
इस कवित्त को इतना प्राचीन तो नहीं समझा जाता है कि घटना समय में बना हुआ हो, फिर भी इसको बिल्कुल निराधार भी नहीं कहा जा सकता है । कारण, यह कवित्त भी किसी हकीकत पर से ही बना होगा। इस कवित्त में भाट भोजकों को दान देने में संघपति ने दान में करोड़ों का द्रव्य व्यय किया है जिसको देख कर किसी को श्राश्चर्य एवं शंका करने की आवश्यकता नहीं है। कारण, इस उपकेश वंश को वरदान था कि "उपकेशे षहुलंद्रव्यं" उपकेश वंश वाले ज्यों २ शुभ कार्यों में द्रव्य व्यय करते रहेंगे
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