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________________ वि० ० पू० ४०० वर्ष | [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास "महाजन संघ उपकेशवँश और सवाल जाति की उत्पत्ति विषय पावल्यादि ग्रन्थों के प्रमाण O १ - हिमवन्त पट्टावली -- जैनपट्टावलियों में यह हिमवन्त पट्टावली सबसे प्राचीन पट्टावली है। इसके रचियता आचार्य हिमवन्तरि हैं । आपश्री का नामोल्लेख श्रीनन्दी सूत्र की स्थविरावली में मिलता है"जेसिमो अणुओगो पयरइ अजवि अड्डभरहम्मि, बहुनयर निग्गयजसे ते वन्दे खंदिलायरिए । ततो हिमवन्त महन्त विकमे थिइ परकमणंते, सझायणंतधरे हिमवन्त वंदिमोसिरसा || कलियसुय अणुओगस्स धारए धारएव पुव्वणं, हिमवन्त खमासमणे वन्दे गागज्जुणापरिए || आचार्य हिमवन्तरि आर्य खन्दिल के पट्टधर थे । अतः इतिहास के लिए प्रस्तुत पट्टावली बड़ी उपयोगी है । इसमें वर्णित घटनाओं में किसी प्रकार की शंका नहीं है फिर भी समय के लिए संशोधन की आवश्यकता है। "जसमद्दो मुणि पवरो, तप्पयसोहंकरो परो जाश्रो । अहमणंदोमगहे, रज्जंकुणइ तयाअइलोही || सुट्ठिय सुपडिबुद्धे, अज्जे दुन्ने वि ते नम॑सामि । भिक्खुराय - कलिंगा - हिवेण सम्माणिए जिट्ठे || हमवन्त पट्टावली वीर निर्वाण संवत् और जेनकाल गणना पृष्ट १६२ यशोभद्रसूरि नन्दराजा, श्रार्य सुस्थीसूरि, महाराजाभिक्षुराज ( खारवेल) वग़ैरह जो पट्टावली की उपरोक्त गाथा में वर्णन है वह सब उड़ीसा की खंडगिरिपहाड़ी की हस्ती गुफा से प्राप्त महामेघबाहन चक्रवर्ती महाराजा खारवेल के शिलालेख से ठीक मिलता है । अतः इस पट्टावली की सत्यता में थोड़ी भी शंका को स्थान नहीं मिलता है । " वी० नि० जै० का० पृष्ठ १८०" प्रस्तुत हेमवंत पट्टावली को प्रखर इतिहासवेत्ता पं० मुनिश्री कल्याणविजयजी महाराज ने स्वरचित "वीर निर्वाण संवत् और जैनकालगणना" नामक प्रबन्ध में स्थान दिया है और उस पट्टावली के आधार पर लिखा है कि: " मथुरा निवासी ओशवंशशिरोमणि श्रावक पोलाक ने गंधहस्ती विवरण सहित उन सर्व सूत्रों को ताड़पत्रआदि में लिखवा कर पठन-पाठन के लिये निग्रन्थों को अर्पण किया । इस प्रकार जैनशासन की उन्नति करके स्थविर आर्यस्कंदिल विक्रम संवत् २०२ में मथुरा में ही अनशन करके स्वर्गवासी हुए " वी० नि० काला० पृष्ठ १८० प्रस्तुत लेख में गन्धहस्ती विवरण के लिये लिखा है वह विवरण यद्यपि वर्तमान में उपलब्ध नहीं है, पर यत्र-तत्र कई शास्त्रों में इसके अस्तित्व के प्रमाण श्रवश्य मिलते हैं यथा: वि० [सं० ९३३ में आचार्यशीलांगसूरि हुये हैं श्रापने श्रीआचारांगसूत्र पर टीका बनाई है जिसके प्रारम्भ में आप लिखते हैं कि : शस्त्र परिक्षा विवरण मति, बहु गहनं च गंधहस्तिकृतम् । तस्मात् सुखबोधार्थ, गृहम्यहबञ्जसा सारम् ॥ Jain Educareinternational For Private & Personal Use Only "श्रीश्राचारंगसूत्रटीका" www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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