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[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
मूल-अः कृष्णः, उः शंकरः, को ब्रह्मा । एषां द्वन्द्वसमासे ओकास्ते ईशते पूज्यमानाः संतो देवत्वेन मन्यमाना सन्तश्च येभ्यस्ते ओकेशाः । ओकै :- कृष्ण, शंभु ब्रह्मभिर्देवैरीशते ये ते वा ओकेशाः । पर शासन जनाः क्षत्रिय राजपुत्रादयः । प्रतिबोध विधानात्तेषामयं ओकेशः । तस्येदमित्यण् प्रत्ययः । श्रीरत्नप्रभसूरिभिस्तेष पारतीर्थिकधर्म, निष्ठता सिद्धान्तोक्तविशुद्धजैनधर्म निष्ठायां प्रतिबोध दानेन प्रवर्त्तना कृता । तथा च श्रूयते पूर्वेहि श्रीरत्नप्रभसूरीणां गुरवः श्रीपार्श्वापत्यीय केशीकुमाराऽनगार सन्तानीयत्वेन विख्यातिमन्तो जगति जज्ञिरे । ततः प्राप्तः सूरिमंत्राः ससतंत्राः रमणीयाऽतिशय निचयाः स्वकीय निस्तुष शेमुषी प्रागभार संभारात् ज्ञातत्रिदश सूरयः श्रीमच्छ्रीरत्नप्रभसूरयः किति गते काले विहरंत: संतः श्रीओसिका नगर्या समवसृताः । तस्याँ च सर्वे लोकाः पारतीर्थिक धर्मधारिणोसंति । न कोऽपि जैनधर्मधारी । ततः साध्वाचारं प्रतिपालयद्भिः सिद्धान्तोक्त तीर्थङ्कर धर्म शुभकर्म प्ररूपणाँ कुर्वद्भिः सद्भिः श्रीरलप्रभसूरिभिः पारतीर्थिकाः नैकच्छेक विवेकिलोकाः ! प्रतिबोधितास्ततः एतेओकेशा इति विरुदो विख्यातो जातः । इति तृतीयोऽर्थः ॥
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वि० ० पू० ४०० वर्ष ]
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हिन्दी अनुवाद - अ: = कृष्ण, उः = शंकर, कः = ब्रह्मा, ये एकाक्षरी कोष से प्रसिद्ध नाम हैं ? इनका द्वन्द समास करने पर "ओक्" ऐसा शब्द बना । अब ये तीनों देव जिन मनुष्यों द्वारा ईशते = याने देव स्वरूप से पूज्यमान होते हुये ऐश्वर्य को प्राप्त हों उन मनुष्यों को श्रीकेश कहते हैं । अथवा श्रोकैः = कृष्णः, शंभु और ब्रह्मा नामक देवताओं से जो खुद ऐश्वर्य्य "धन दौलत" प्राप्त करें उन्हें प्रोकेश कहते हैं । ये सब पर शासन को धारण करने वाले क्षत्रिय राजपुत्र आदि हैं और उनका प्रतिबोध करने से यह गच्छ श्रकेश नाम से प्रसिद्ध हुआ । यहां "तस्येदम्" इस सूत्र से अण प्रत्यय होता है ये क्षत्रयादि श्री रत्नप्रभसूरि द्वारा उनके पारतीर्थिक धर्म की निष्ठा से सिद्धान्तों से कहे हुए विशुद्ध जैनधर्म की निष्ठा में प्रतिबोध देने से प्रधतित हुए | जैसे सुना जाता है कि :
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"प्राचीन काल में श्री रत्नप्रभसूरि के गुरु श्री पार्श्वनाथ सन्तानीय केशीकुमार अनगार के सन्तानीय पणे से जगत् में प्रसिद्धि को प्राप्त हुए । उनसे सूरि मंत्र को प्राप्त कर, सर्व तन्त्र स्वतंत्र, रमणीय अतिशय समूह वाले, स्वकीय निर्मल बुद्धि से बृहस्पति तक को नीचा दिखाने वाले सूरीश्वर श्रीरत्नप्रभसूरि कुछ समय बीत जाने पर विहार करते हुए श्रीओसिकानगरी को आए । वहाँ सब मनुष्य पारतीर्थिक धर्म को धारण करने वाले थे, जैन धर्मी कोई नहीं था । तत्र साधु के सदाचार को पालने वाले, सिद्धान्त कथित तीर्थकरों के धर्म की शुभ-शुद्ध प्ररूपणा को करने वाले महात्मा श्रीरत्नप्रभसूरिजी ने पारतीर्थिक धर्मी अनेक विचारशील क्षत्रिय लोगों को प्रतिबोध दिया। उसी दिन से ये श्रोकेश गच्छ है" ऐसा विरुद विश्व में विख्यात हुआ । यह इसका तीसरा अर्थ है ।
खुलासा - ओक - का अर्थ एकाक्षरी कोष द्वारा कृष्ण, शंभु और ब्रह्मा होता है, उनसे ऐश्वर्य प्राप्ति करने वाले क्षत्रिय आदि अन्य धर्मावलम्बी ओकेश कहाए और उनके प्रतिबोध देने से श्रीरत्नप्रभसूरि का गच्छ भी ओकेश नाम से प्रसिद्ध होगया ।
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