________________
वि० पू० ४०० वर्ष ]
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
इस प्रकार उएश उकेश और उपकेशवंश के नाम की उत्पत्ति हुई और जैसे उपकेशपुर के साथ उपकेशवंश का सम्बन्ध है वैसे ही उपकेशपुर और उपकेशवंश के साथ उपकेशगच्छ का भी घनिष्ट सम्बन्ध है। इसका समय महाजन संघ की उत्पत्ति से दो तीन शताब्दियों का समझा जा सकता है। कारण, महाजनसंघ के नाम के बाद ३०३ वर्षों में तो १८ गौत्र होने का प्रमाण मिलता है। अतः महाजनसंघ एवं उपकेशवंश को इस समय से पूर्व बना होना मानना न्यायसंगत और युक्तियुक्त है ।
उपकेश गच्छ उपकेशवंश की मूल उत्पत्ति खास तौर तो टपकेशपुर से ही हुई है और इसके प्रतिबोधक आचार्य रत्नप्रभसूरि ही थे। ये बात स्वाभाविक है कि जहाँ लाखों मनुष्यों को मांस मदिरा श्रादि कुव्यसन छुड़ा कर जैनधर्म में दीक्षित करने पर उन को बार २ उपदेश करने के लिये जाना आना पड़ता ही है। बस, रत्नप्रभसूरि या उनकी संतान उपकेशपुर या उसके आस पास अधिक विहार करने से इस समूह का नाम उएश उकेश और उपकेशगच्छ हो गया जैसे कोरंटपुर से कोरँटगच्छ संखेश्वरपुर से सँखेश्वरगच्छ, वल्लभी से वल्लभीगच्छ, वायटगाँव से वायटगच्छ, और सँडेरा से सँडेरागच्छ इत्यादि, इसी माफिक उपकेशपुर से उपकेशगच्छ हुआ।
प्रोसवाल __ ओसवाल-यह उपकेशवॅश का अपभ्रंश है क्योंकि विक्रम की ग्यारहवीं शताब्दी के आस पास उपकेशपुर का अपभ्रंश ओसियां हुआ, तब से ही उपकेशवॅश का नाम ओसवाल हो गया और ऐसा होना असंभव भी नहीं है जैसे जावलीपुर का जालौर, नागपुर का नागौर, मॉडव्यपुर का मॅडोर, हर्षपुर का हरवाला, कर्चरपूर का कुचेरा, किराटकूप का कराडू, आदि अपभ्रंश हुआ है वैसे ही उपकेशपुर का ओसियां
हुआ है।
श्रोसवालों के लिये शिलालेख देखा जाय तो विक्रम की तेरहवीं शताब्दी पूर्व का कोई भी नहीं मिलता है । यदि मिलते भी हैं तो विक्रम की तेरहवीं शताब्दी के, वे भी बहुत कम सँख्या में। इसका यही कारण हो सकता है कि इस जाति का मूलनाम उपकेशवँश था बाद उसका अपभ्रंश ओसवाल होने पर भी पिछले लोगों ने प्रन्थों में एवं शिलालेखों में बीसवीं शताब्दी तक जहाँ तहाँ उपकेशवँश का ही प्रयोग किया है, जैसे पोरवाल जाति का प्रचलित नाम पोरवाल होने पर भी शिलालेखों में आज भी उनको प्राग्वट ही लिखे जाते हैं । इसी प्रकार ओसवालों को समझ लेना चाहिये। यों तो ये ग्रन्थ ही इस जाति की प्राचीनता साबित कर रहा है, परन्तु उन पदावलियों वंशावलियों के अलावा वर्तमान ऐतिहासिक साधनों के आधार पर अच्छे अच्छे विद्वान लोगों ने इस जाति की प्राचीनता के लिये जो अभिप्राय दिया है उसको मैं यहाँ उद्धृत कर देता हूँ।
wwwvvvvvv
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org