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वि० पू० ४०० वा ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
आचार पतित
ओसवाल जाति की ऐतहासिकता
सवाल ये महाजन संघ का रूपान्तर नाम है। इस महाजन संघ की संस्था को आचार्य रत्नप्रभसूरि जाति
त की थी। महाजन संघ में केवल ओसवाल ही नहीं पर श्रीमाल पोरवाल आदि जातियों का भी समावश हो जाता है । अतः पहिले महाजन संघ के लिये ही लिख दिया जाता है।
१-महाजन यह शब्द सर्वत्र प्रसिद्ध है ।
२-इस महाजनसंघ संस्था के निर्वाह के लिये जहाँ २ महाजन लोग बसते है एवं व्यापार करते हैं, वहां वहां व्यापार पर प्राचीन समय से 'महाजनाउ' लागन लगाई गई है ये महाजन संस्था को साबित कर रही है कि यह संस्था बहुत प्राचीन है।
३-महाजनसंघ रूपी संस्था के अाय व्यय के हिसाब के लिये प्रामोग्राम बहियाँ चौपड़ा रहते हैं और उनका हिसाब सालों-साल होता है ।
४-महाजनों के वहां लगन शादी होती है उसमें भी संघ पूजा वगैरह दी जाती है उस समय भी 'महाजनाउ' को याद किया करते है। कहीं २ पुत्र जन्म वगैरह शुभ अवसर पर भी महाजन संस्था को कुछ न कुछ भेंट करते हैं।
५-महाजन संघ के महत्व बतलाने वाले प्राचीन अर्वाचीन कई कवित्त भी मिलते हैं।
इत्यादि प्रमाणों से महाजनसंघ की प्राचीनता प्रमाणिकता और महत्ता स्वयं-सिद्ध हो जाती है कि महाजनसंघ रूपी एक सुदृढ़ संस्था प्राचीन कालसे चली आरही है जिस का जन्म समय वि. पू. ४००वर्ष का है।
महाजन न भयो मंत्री, राज गयो रावण को, महाजन की सलाह बिन शिशुपाल नास्यो है। भयो थो भिखारी नल, हरचंद में विखो पड़यो, महाजन बासिटी बिन कौरव कुल नास्यो है। महाजन मुत्सद्दी बिन केते राज्य बदल गये, महाजन की बुद्धि बिन यादवकुल घास्यो है । महाजन दिवान राणा महाराणा ज्याके हृदय, भयो भान जाण कमल ज्यू प्रकाशो है ॥१॥ महाजन जहाँ होत तहाँ हट्टी बजार सार, महाजन जहाँ होत तहाँ नाज ब्याज गल्ला है । महाजन जहाँ तहाँ लेन देन विधि व्यवहार, महाजन जहाँ होत तहाँ सब ही का भला है । महाजन जहाँ होत तहाँ लाखन को फेरफार, महाजन जहाँ होत तहाँ हल्लन पै हल्ला है । महाजन जहाँ होत तहाँ लक्ष्मी प्रकाश करे, महाजन नहीं होत तहाँ रहवो बिन सल्ला है ॥२॥ भूखे नंगे अरु दुखीजन के सदा मां बाप हैं। अकाल के भी काल हैं और हरन दुख संताप हैं। देख नहिं सकते दुखी पशु को भी इनकी बान है । सब जीव इन को प्राणसम हैं रत्नप्रभ की शान है ॥ हैं महाजन ही महा जन सब गुणों की खान हैं। जगतसेठ नगरसेठ पंचादि पद जो महान हैं। पाये अनेकों बार बहु फिर भी न कुछ अभिमान है । ये वीर हैं गंभीर है बस रत्नसम रत्नप्रभ संतान है ।।
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