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ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ]
I: पू० ४०० वर्ष मांस मदिरा और व्यभिचार-सेवी नरक के अभि- की इतनी आग्रह है तो मैं इस म. मुख हो रहे थे उनको दुर्व्यसनों से छुटवा कर करवा कर सर्व-साधारण की सेवा में रखा सन्मार्ग पर लाये और स्वर्ग मोक्ष के अधिकारी कान्ति-अच्छा इस सम्बाद को ' बनाये और केवल उन पर ही नहीं परन्तु उनकी वंश- खर्चा का क्या इन्तजाम हैं ? परम्परा आज तक के लोगों पर बड़ा भारी उपकार शान्ति - खर्चा का आप कुछ भी विचार न है, उनको भूल जाना तो एक जबर्दस्त कृतघ्नीपना करें। कार्य करने वाले हों तो समाज में द्रव्य की है। आपका कहना ठीक है कि इस समाज का पतन कुछ भी कमी नहीं है । व्यर्थ तो हजारों लाखों का प्रायः इस कृतघ्नीपना से हुआ और हो रहा है। पानी हो रहा है, तो इस छोटे से काम के लिये ऐसी ___ शान्ति --अरे भाई ! तुम्हारे जैसे लिखे-पढ़े कौन सी बात है। आदमी का एक घंटा पहिले यह हाल था तो अप- कान्ति-जेब में हाथ डाल कर २०) नोट ठित लोगों का तो कहना ही क्या।
निकाल कर दे दिये और कहा कि अधिक खर्चा कान्ति--मेहरबान ! आपका कहना सत्य है लगेगा तो मैं दूसरे मास की तनख्वाह आने पर दे पर अब इस वार्तालाप को ज्यों का त्यों छपवा कर दूंगा । आप इसको अवश्य मुद्रित करवा कर हाथोंजनता के हाथों में रख देना अच्छा, है क्योंकि आज- हाथ भेंट दें। कल के लिखे-पढ़े लोगों के इस प्रकार बात समझ शान्ति-पर आप तकलीफ क्यों उठाते हो ? में आजायगी तो साँप की भांति निर्माल कांचली उतार इतना सा खर्चा तो मैं भी कर सकूँगा। के दर फेंकने में उसके थोड़ी भी देर नहीं लगेगी । हा, कान्ति--आपने तो मुझे समझाने में कितना हमारी शिक्षा कितनी भी बुरी हो, पर हम को ठीक
लाभ कमाया है इतना लाभ तो मुझे भी लेने दीजिये समझाने वाले हों और हम समझ जायं, तो असत्य त्याग और सत्य ग्रहण करने में हठ-धर्मी कभी नहीं शान्ति-अच्छा भाई जै जिनेन्द्र की. अब मैं करते हैं। कारण, हम न तो रूढ़ि के गुलाम हैं और जाता हूँ। आपका समय लिया इसके लिये क्षमा करना। न कल्पित परम्परा के दास ही हैं। हम हैं सत्य के कान्ति-जै जिनेन्द्र भाई साहब! आप ने तो आज शोधक और सत्य के उपासक ।।
मेरे पर बहुत उपकार किया है कि मैं कृतघ्नीत्व के शान्ति--अच्छा भाई कान्तिचन्द्र, आप से समुद्र में डूब रहा था आपने बाह पकड़ कर मेरा वार्तालाप करने में मुझे बड़ा ही आनन्द आया और उद्धार किया है जिसको मैं कभी भूल नहीं सकता हूँ।
आपके दिल ने बड़ा भारी पलटा खाया जिससे मैं खैर फिर कभी कृपा कर इस प्रकार वार्तालाप का अपने परिश्रम को भी सफल समझता हूँ और आप लाभ देना ।
१-वि० १० वीं शताब्दी का इतिहास इतना अँधेरे में नहीं है। यदि ओसवाल जाति १० वीं शता में बनी होती तो तत्कालीन साहित्य में उसका वर्णन अवश्य होता, क्योंकि उस समय घटित साधारण घटनाओं का उल्लेख होने पर भी एक जबरदस्त घटना ( लाखों मनुष्यों का धर्म परिवर्तन ) का साहित्य में नाम निशान तक न होना, यह सूचित करता है कि ओसवाल जानि वहुत समय पूर्व बन चुकी थी।
२- जैन शिलालेख का समय प्रायः वि० १० वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है परन्तु यह जाति इससे वहुत पूर्व बन चुकी थी फिर उसका शिलालेख कैसे मिल सकता है । अतः यह जाति बहुत प्रचीन है।
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