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वि० पू० ४०० वर्ष ं ]
आचार पति
है
साहब आपका कहना सत्य है । हॉलये क्या पर मेरी खुद की ही यही यी । आप तो क्या पर ब्रह्माजी भी कर जाति देते कि ओसवालों की उत्पत्ति विक्रम से मैंने वर्ष पूर्व हुई तो मैं कदापि नहीं मानता। पर श्राप के साथ वार्तालाप होने से यह निशंक हो चुका है कि पट्टावलियों के अनुसार ओसवालों की उत्पत्ति बि० पू० ४०० वर्षों में हुई है और इसके विषय में पदावलियों और वंशावलियों में जो लिखा है उसमें शंका करने की जरूरत भी नहीं है, क्योंकि उन त्यागी संयमी महात्माओं को असत्य लिखने का कोई भी कारण नहीं था अतः वह सत्य ही है। दूसरी बात यह भी है कि यदि पट्टावली और वंशावलियों को न माना जाय तो इस विषय के लिये हमारे पास दूसरा साधन ही क्या है ? आज हम देखते हैं तो किसी
सवाल के पास ४ पुश्त, किसी के पास ८ पुश्त और किसी के पास १० पुश्त से आगे के नाम तक भी नहीं मिलते हैं तो उनके पूर्वजों ने देशसमान और धर्म की क्या क्या सेवायें की उनका तो पता ही क्या चलता है । यही कारण है कि ओसवाल समाज के नररत्नों ने देश की बड़ी बड़ी सेवायें कीं और अपना तन, मन र धन अर्पण किया, पर आज संसार में उनका कहीं पर मान या स्थान नहीं है। इसका मूल कारण पट्टावलियों का अनादर करना ही हैं। उनके बिना हम जनता को क्या बता सकते हैं ?
एक विद्वान ने ठीक कहा है कि जिस किसी जाति को नष्ट करना है तो पहिले उसका इतिहास नष्ट कर दो, वह स्वयं नष्ट हो जायगी, इस युक्ति के अनुसार ओसवाल जाति के नष्ट होने में मुख्य कारण अपना इतिहास न जानना ही है। खैर, एक बात और पूछनी है और वह यह है कि ओसवाल जैसी बुद्धिशाली और समझदार जाति ने इस पथ
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[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
का अवलम्बन क्यों किया होगा कि वह अपने इतिहास के लिये इस प्रकार उदासीन रहे ।
शान्ति - इसमें मुख्य कारण नये नये गच्छ एवं समुदाय तथा आपसी भेद का ही है।
कान्ति- - पर उन्होंने ऐसा क्यों किया और इसमें उनका क्या स्वार्थ था ।
शान्ति - नये नये गच्छवालों को अपने उपा सक बनाने थे। जब तक उनका प्राचीन इतिहास न भुला दिया जाय तब तक वे उन नूतन गच्छधारियों के भक्त बन ही नहीं सकते थे । अतः उन्होंने कई श्रोसवालों के इतिहास को ही नष्ट कर दिया । जैसे आदित्यनाग ( चोरडियादि ) वाप्पनाग ( बापनादि ) संचेति आदि १८ गोत्र और उनकी सैंकड़ों शाखा उपशाखाओं का इतिहास २४०० वर्ष जितना प्राचीन है जिसको ८००-१००० वर्ष में बतला दिया जिसमें भी ८००-१००० वर्ष में उनके पूर्वजों ने जो कार्य किये उसका नाम निशान भी नहीं, केवल एक उत्पत्ति के लिये कल्पना का कलेवर बतला कर बिचारे भद्रिक लोगों के प्राचीन इतिहास का खून कर दिया और भविष्य के लिये उनको कदाग्रह की शकल में ऐसा जकड़ दिया कि वे शोध-खोज एवं निर्णय तक भी नहीं कर सके। दूसरे एक समुदाय भेद भी ऐसा पड़ गया कि उनके उपासक अपने पूर्वजों का नाम लेने में भी पाप समझते हैं । कारण, उन्होंने अनेक मंदिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई, अनेक बार तीर्थयात्रा के संघ निकाल यात्रा की इत्यादि । यह वर्तमान मंदिर मूर्ति नहीं मानने वालों के लिये उनकी मान्यता से खिलाफ है इत्यादि कारणों से सवाल जाति का इतिहास नष्ट-भ्रष्ट हो गया ।
कान्ति-भाई साहब यह तो बड़ा भारी कृतघ्नीपना है । कारण, एक साधारण उपकार को भी भूल जाय उसे कृतघ्नी कहते हैं तो जिन महापुरुषों ने
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