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________________ ओसवाल जाति की ऐतिहासिकता ] [२० पू० ४०० वर्ष कान्ति-हमारे पितामह के समय का उनका कान्ति-इसमें शंका का क्या फोटू मेरे पास मौजूद है । देख लीजिये। खुर्शीनाम मौजूद है। उकेश, शान्ति-- उमरावसिंह के पिता का क्या नाम है ? शान्ति-शायद कोई तुम्हारे पितामह ने :कान्ति-रामसिंह। से वैसे ही लिख दिया हो। कान्ति-वाह भई तुम भी कमाल करते है शान्ति-क्या सबूत ? कहीं ये बातें कल्पना से लिखी जाती हैं ? हमारे कान्ति -- उन्होंने एक सुनार स सान का कठा पितामह ने अपने पितामह के कथनानुसार ठीक ठीक खरीद की थी उसके रुपये सुनार की बही में नाम लिखा है। मंडे हुये थे, जिसके रुपये ब्याज सहित मैंने हाल ही शान्ति-आपके पितामह के पितामह को कैसे में चुकाये हैं। मालूम हुआ हंगा? शान्ति-रामसिंह के पिता का क्या नाम ? ___कान्ति-वाह ! यह भी कोई पूछने की बात है ? कान्ति-छत्रसिंह। उन्हें अपने पिता से मालूम हुआ होगा। शान्ति-क्या प्रमाण है ? शान्ति--तो तुम्हारे कहने का अभिप्राय यह है कान्ति-उन्होंने एक तालाब पर छत्री बनाई कि वंशपरम्परा से खुशीनामे का ज्ञान चला पाया है। थी जिसका शिलालेख आज भी मौजूद है। कान्ति-हाँ, बस अब तुम समझ गये । शान्ति- छत्रसिंह के पिता का क्या नाम था ? शान्ति-मैं तो समझ गया मेहरवान! पर आप अभी नहीं समझे हैं। कान्ति-लक्ष्मणसिंह। कान्ति-क्यों ? शान्ति - क्या सबूत ? शान्ति-क्योंकि वंशपरम्परा के ज्ञान से लिखी कान्ति-आप तीर्थों की यात्रा पधारे थे उस समय हुई अपनी वंशावली में तो आपको सन्देह नहीं है, पंडों को कुछ दान दिया था, वह पंडों की बही में परन्तु गुरु परम्परा के ज्ञान से लिखी हुई पट्टाउसी समय का लिखा हुआ मिलता है। वलियों और वंशावलियों में आपको सन्देह है। ___ शान्ति-लक्ष्मणसिंह के पिता का क्या नाम कान्ति-सत्य है भाई साहब ! यह मेरा मिथ्या था ? भ्रम था । वास्तव में पट्टावलियाँ और वंशावलिय कान्ति-सुन्दरसिंह। माननीय ग्रन्थ हैं। यह मेरी भूल थी कि मैं इस शान्ति-क्या सबत ? साहित्य पर सन्देह करता था। कान्ति-इसके लिये ऐतिहासिक प्रमाण तो शान्ति-कान्ति ! एक तुम ही नहीं पर ऐसे कोई नहीं हैं परन्तु हमारे पितामह ने अपनी याद. वर्तमान शिक्षा पाये हुये अर्द्धदग्ध बहुत से लोग भ्रम दाश्त से जैसा कि उन्होंने अपने पितामह से सुना था में पड़े हुये हैं। फिर भी उनमें विशेषता यह है कि एक खुर्शीनामा बनाया था। उसमें लक्ष्मणसिंह के दूसरे के प्रमाणों को मानते नहीं और आपके पास पिता का नाम सुन्दरसिंह लिखा है। प्रमाण नहीं । और कह देते हैं कि फलां ग्रन्थ पट्टा___ शान्ति-इस खुर्शीनामा में आपको किसी प्रकार वलियों को हम महीं मानते हैं। ऐसे अर्द्ध दग्ध की शंका तो नहीं है न ? मनुष्यों को कैसे समझाया जाय ? Jain Education International For Private & Personal Use Only १२५ www.jantipary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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