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________________ [ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास वि० पू० ४०० वर्ष । नासवालों की उत्पत्ति वि. पू० ४०० क्यों ? दूसरे भी कई प्रमाण हो सकते हैं। आनाम हुई। एसा मेरा खयाल है। कान्ति -- मैं तो केवल अनुमान से ही कहता हूँ। ___ कान्ति-क्या बात करते हो ? क्या ओसवाल शान्ति-- अनुमान आप अपने काम की रुकावट जाति की उत्पत्ति विक्रम पूर्व ४०० वर्ष में हुई है ? में ही मानते हो या सब बातों के लिये ? मैंने तो आज ही यह बात आपके मुंह से सुनी है ? कान्ति-कुछ विचार कर कहा कि सब के लिये । शान्ति -हाँ, मैं ठीक कहता हूँ। शान्ति-भला आपका काम रुक जाता है जब कान्ति ---इसके लिये आपके पास क्या प्रमाण हैं? तो आप अनुमान से मान लेते हो, तब हमारे महान शान्ति-यह लीजिये पटावलियां वंशावलियां संयमी पुरुषों के लिखे हुये प्रन्थ पट्टावल्यादि को वगैरह वगैरह बहुत प्रमाण हैं। मानने में आप हिचकिचाते हो । इसको पक्षपात कहते ___ कान्ति - मैं आपसे पहिले ही कह चुका हूँ कि हैं या हठधर्मीपना ? मुझे इस साहित्य पर विश्वास नहीं हैं। ____ कान्ति-पर वे सैंकड़ों वर्षों की पुरांणी बातें बाद शान्ति-भाई साहब ! आप अपनी शिक्षा से में किस आधार पर लिखी होंगी ? लाचार हैं वरना यह कभी नहीं कहते । कारण, मैं शान्ति-पहले के लोग सब ज्ञान को कण्ठस्थ आपको अभी सममा चुका हूँ कि पट्टावलियां और रखते थे और गुरु परम्परा से वह ज्ञान सैंकड़ों वर्षों वंशावलियां इतिहास के खास साधन हैं और यही तक उसी रूप में चला आता था । जब बुद्धि की मंदता हमको बतला रहे हैं कि ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति हुई तो पुस्तकों में लिखा गया, जैसे हमारे धर्म के मूल उपकेशपुर में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि द्वारा वि०पू० ४०० आगम भगवान महावीर के कहे हुये हैं और उस वर्ष में हुई। फिर आप नहीं मानते हो इसका क्या ज्ञान को करीब १००० वर्ष तक साधु कंठस्थ ही याद कारण है ? रखते रहे। जब स्मरण-शक्ति मंद पड़ने लगी तो उन्होने __कान्ति-ओसवाल ज्ञाति की उत्पत्ति उपकेशपुर पुस्तकों पर लिख लिये। इसी तरह पट्टावल्यादि प्रन्थों में प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के द्वारा हुई, इसमें तो किसी को भी समझ लीजिये। प्रकार की शंका नहीं है, पर इसका समय वि० पू० कान्ति-आपके दबाव और आगम के नाम ४०० वर्ष का मानने में जरा दिल हिचकिचाता है। पर मैं मान तो लेता हूँ, पर मेरी अन्तरात्मा इस बात हां, इस जाति की उत्पत्ति विक्रम की दशवीं शताब्दी को मंजूर नहीं करती है । के आस-पास हुई होगी ऐसा विद्वानों का खयाल है शान्ति--खैर, इस विषय को तो मैं आपको जिसको मैं भी ठीक समझता हूँ। फिर आगे चल कर समझाऊंगा पर पहिले आप से शान्ति-इसके लिये आपके पास क्या प्रमाण है? यह पूछ लेता हूँ कि आपके पिता का क्या नाम है ? कान्ति-प्रमाण तो मेरे पास कुछ भी नहीं है कान्ति-मेरे पिता का नाम है केशरीसिंह । पर इस समय के पूर्व इस जाति के अस्तित्व का शान्ति -क्या सबूत ? शिलालेखादि कोई भी प्रमाण नहीं मिलता है। कान्ति -दुकान पर मौजूद बैठे हैं आप देख लें। __ शान्ति-जब आपके पास प्रमाण ही नहीं हैं, शान्ति-केशरीसिंहजी के पिता का क्या नाम है ? तो फिर आप दशवीं शताब्दी कैसे कह सकते हो ? कान्ति-उमरावसिंह ? और प्रमाण के लिये केवल शिलालेख का ही आग्रह शान्ति-क्या प्रमाण है ? wwwmarriwwwwwww Jain Educa88ernational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003211
Book TitleBhagwan Parshwanath ki Parampara ka Itihas Purvarddh 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatnaprabhakar Gyan Pushpamala Falodi
Publication Year1943
Total Pages980
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size32 MB
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