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वि० पू० ४०० वर्ष वर्ष ]
आणा
रहा हूँ ।
शान्तिचंद्र -आजकल आप क्या लिख रहे हैं ? कान्तिचंद्र — मैं प्राचीन इतिहास लिख रहा हूँ । शान्ति- - वह किस विषय का है ?
शान्ति- आपका कहना थोड़ी देर के लिये मान भी लिया जाय तो भी इतिहास के अनुसंधान वे बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं । अतः वह आदरणीय हैं ।
कान्ति - क्या पूछते हो, विषय बहुत जटिल है । शान्ति - आखिर वह है क्या ?
कान्ति - इतिहास की सामग्री शिलालेख, ताम्रपत्र, दानपत्र, सिक्का और उस समय के लिखे हुये कान्ति- मैं अपने पूर्वजों का इतिहास लिख प्रमाणिक पुरुषों के प्रन्थ ही हो सकती हैं और इनको हम ऐतिहासिक एवं प्रत्यक्ष प्रमाण मानते हैं । शान्ति - - आपका कहना ठीक है परन्तु विशाल भारत के लिये पूर्वोक्त साधन अपर्याप्त ही समझे जाते है । अतः इन प्रत्यक्ष प्रमाणों के साथ परोक्ष प्रमाण ( श्रागम उपमान और अनुमान ) मान लिये जांय तो इतिहास सर्वाग-शुद्ध बन सकता है ।
कान्ति- मैं इस बात को मानने के लिये तैयार नहीं हूँ। मेरा सिद्धान्त तो एक ही है ।
[ भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
प्रमाणवाद
शान्ति - कितनाक लिख लिया है ?
कान्ति - लिखें क्या, भाई साहब कुछ साधन ही नहीं मिलता है ।
शान्ति - फिर भी कुछ तो मिला ही होगा न ? कान्ति - बहुत कम मिला है ।
शान्ति - आपने प्राचीन ग्रन्थ पट्टावलियां या कुलगुरुओं की लिखी हुई वंशावलियों का अवलो कन किया है या नहीं ?
शान्ति - ये आपका एकान्तवाद केवल हठवाद
कान्ति-मुझे उस साहित्य पर विश्वास नहीं है। ही है । लीजिये एक उदाहरण आपके सामने उपस्थित शान्ति - किस कारण से ? कान्ति- त उस साहित्य में केवल इधर उधर की सुनी हुई बातें ही हैं।
करता हूँ। किसी गोविन्दराजा का शिलालेख वि. सं. ९८० का मिला, उसी वंश के नन्दराजा का दूसरा शिलालेख वि. सं. १०७१ का मिला। इन दोनों
शान्ति - पट्टाव लियें वंशावलिये सर्वथा निरा धार नहीं हैं, उनमें भी ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत सा तथ्य रहा हुआ है, अतः इतिहास लिखने में वे उपादेय हैं। देखिये खास इतिहास के लिखने वाले पं. गौरीशंकरजीश्रोमा क्या कहते हैं :
के बीच में ९१ वर्ष का अन्तर है जिसके लिये कोई भी साधन नहीं मिला, परन्तु वंशावलियों में गोविन्द का पुत्र चंद्र और चन्द्र का पुत्र इन्द्र लिखा मिलता है अब आप गोविंद का ९१ वर्ष राज समझेंगे या वंशा वलियों में लिखा हुआ गोविन्द का पुत्र चंद्र तथा चन्द्र का पुत्र इन्द्र और इन्द्र का पुत्र नन्द समझेंगे ?
कान्ति -- गोविन्द और नन्द के बीच ९१ वर्ष का अन्तर है जिसके लिये चाहे इतिहास में मिले या न मिले, पर अनुमान से दो राजा होना मानना ही पड़ता है इसमें कोई सन्देह नहीं है ।
शान्ति - बस, मैं भी यही कहता हूँ और इसी का नाम ही परोक्ष प्रमाण अर्थात् अनुमान प्रमाण
"इतिहास व काव्यों के अतिरिक्त वंशावलियों की कई पुस्तकें मिलती हैं X X तथा जैनों की कई एक पट्टावलियां आदि मिलती हैं । ये भी इतिहास के साधन हैं । " राजपूताना का इतिहास पृष्ठ १०"
कान्ति - कोई कुछ भी कहो, जहाँ तक ऐतिहासिक प्रमाण न मिलें वहाँ तक मैं उन्हें उपादेय नहीं समझता हूँ ।
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