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आचार्य रत्नप्रभसूरि अपने जीवन में चौदह लक्ष घरों वालों को नये जैन बना कर वीरात् ८४ वर्ष
माघशुक्लपूर्णिमा को श्री शत्रुजयतीर्थ पर स्वर्गवास किया । पृष्ठ १२०
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भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास
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उपकेशपुर की पहाड़ी पर राजा उत्पलदेव के बनाया हुआ पार्श्वनाथ के मन्दिर की सूरिजी ने प्रतिष्टा करवाई। उस मूर्ति को हटाकर जैनेत्तरों ने उसके स्थान पर देवी की मूर्ति रखदी है और पाश्वमूर्ति को देहरी के पिछले भाग में एक ताक पर रखदी है । पृष्ठ १११